कृषि क्षेत्र में भू–स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए MNCFC को उत्कृष्टता केंद्र में बदलने की योजना
- केंद्र सरकार ने डिजिटल कृषि को बढ़ावा देने की दिशा में कई पहल की हैं।
- हाल के समय में भू–स्थानिक प्रौद्योगिकी में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए, कृषि और किसान कल्याण विभाग ने कृषि संबंधी निर्णय करने के समर्थन में प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ाने की आवश्यकता को स्वीकार किया है।
- कृषि क्षेत्र में कई हितधारकों द्वारा बेहतर निर्णय लेने के लिए वैज्ञानिक सूचना उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने के लिए उपग्रहों, ड्रोन, स्मार्ट फोन, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस /मशीन लर्निंग तकनीकों के उपयोग को बढ़ाने की आवश्यकता है।
क्या किया जाना चाहिए?
- नई प्रौद्योगिकियों और डेटा संबंधी उत्पादों को अपनाना।
- हाल ही में लॉन्च किए गए भारतीय माइक्रोवेव उपग्रह आरआईएसएटी-1ए डेटा का उपयोग।
- जैव–भौतिक उत्पादों का उपयोग।
- स्वचालित फसल मानचित्रण के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग तकनीकों का बेहतर उपयोग।
- फसल स्वास्थ्य निगरानी व फसल उपज अनुमान।
- राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, निजी और स्टार्ट–अप संगठनों के साथ सहयोग।
महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC):
- कृषि मंत्रालय ने फसल का अनुमान लगाने के बारे में सुदूर संवेदी उपग्रह और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए, वर्ष 2012 में कृषि और किसान कल्याण विभाग से संबद्ध एक कार्यालय के रूप में एक विशेष संगठन ‘महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र(MNCFC)’ की स्थापना की गई थी। महान भारतीय सांख्यिकीविद् डॉ. प्रशांत चंद्र महालनोबिस के नाम पर केंद्र का उद्घाटन 23 अप्रैल, 2012 को किया गया था।
- MNCFC की स्थापना, प्रारंभ में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित अत्याधुनिक तकनीकों और पद्धतियों का उपयोग करके इन–सीज़न फसलों का पूर्वानुमान और सूखे की स्थिति का आकलन प्रदान करने के लिए की गई थी।
- MNCFC द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं में शामिल हैं:
- FASAL परियोजना के तहत देश की 8 प्रमुख फसलों के लिए राष्ट्रीय-राज्य-जिला स्तर पर कटाई-पूर्व बहु फसल उत्पादन पूर्वानुमान
- NADAMS परियोजना के तहत, उपग्रह डेटा का उपयोग करके जिला और उप-जिला स्तर सूखा संकेतक मूल्यांकन।
- KISAN परियोजना के तहत फसल बीमा (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना) के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग, जिसमें फसल हानि मूल्यांकन, क्षेत्र विसंगति और उपज विवाद समाधान, जोखिम क्षेत्र, मौसमी मानचित्रण आदि शामिल हैं।
Note: यह सूचना प्री में एवं मेंस के GS -3, के “किसानों की सहायता के लिए ई–प्रौद्योगिकी” वाले पाठ्यक्रम से जुड़ा हुआ है।