कोयला संयंत्रों के लिए प्रदूषण–नियंत्रण प्रौद्योगिकियों को स्थापित करने में बढ़ाया गया समय चिंता का विषय है:
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने, कोयला संयंत्रों को उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रदूषण–नियंत्रण प्रौद्योगिकियों को स्थापित करने की बाध्यता की समय सीमा, तीसरी बार बढ़ा दी है। इस फैसले की पर्यावरण और स्वच्छ-ऊर्जा कार्यकर्ताओं द्वारा आलोचना की जा रही है।
- मंत्रालय ने पहली बार दिसंबर 2015 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और पारा (Hg) के नियंत्रण के लिए उत्सर्जन मानदंड निर्दिष्ट किए तथा इन प्रदूषकों के उत्सर्जन को रोकने के लिए उपकरण स्थापित करने हेतु थर्मल पावर प्लांट संचालकों को दिसंबर 2017 तक का समय दिया गया।
- फिर समय सीमा को 2022 तक बढ़ा दिया गया था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बिजली संयंत्र, जो कुछ सबसे खराब प्रदूषण के क्षेत्र में स्थित है, को 2020 की एक सख्त समय सीमा दी गई थी।
- हालांकि, गैर-अनुपालन और देश में कहीं और संयंत्रों द्वारा सीमित प्रगति के कारण मार्च 2021 में एक नया विस्तार हुआ, जिसके बाद 5 सितंबर 2022 को अधिसूचना ने इसे 2025 तक बढ़ा दिया।
- पर्यावरणविदों का कहना है कि फ़्लू गैस डी–सल्फराइज़ेशन उपकरण की स्थापना के लिए कई समय विस्तार दिए गए हैं, लेकिन बिजली संयंत्रों द्वारा मानदंडों को शिथिल बनाने या समाप्त करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
- पर्यावरण वकील और वन और पर्यावरण के लिए कानूनी पहल (LIFE) के संस्थापक ऋत्विक दत्ता ने कहा, “तथ्य यह है कि एक और विस्तार दिया गया है जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उत्सर्जन मानदंड कभी लागू नहीं होंगे। सभी बिजली संयंत्रों को दिसंबर 2017 तक उत्सर्जन मानकों का लक्ष्य हासिल करना था, सभी लक्ष्य से चूक गए।”
Note: यह सूचना प्री में एवं मेंस के GS -3, के “पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण और गिरावट” वाले पाठ्यक्रम से जुड़ा हुआ है।