पिछले साल जब चीन ने अचानक ही क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग पर पाबंदी का एलान कर दिया था तो पड़ोसी देश कज़ाख़स्तान में ये इंडस्ट्री तेज़ी से फलने-फूलने लगी।
आज की तारीख़ में मध्य एशिया का ये देश क्रिप्टो माइनिंग के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है लेकिन बेहसाब बिजली खपत करने वाले इस इंडस्ट्री के डेटा सेंटर्स कज़ाख़स्तान में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स पर दबाव बढ़ा रहे हैं। प्रदूषण बढ़ रहा है और कार्बन उत्सर्जन भी।
क्रिप्टो माइनिंग क्या चीज़ है, ये कैसे होता है। दरअसल, क्रिप्टो माइनिंग वो प्रक्रिया है जिससे कई तरह के क्रिप्टोकरेंसियों का कारोबार चलता है, चाहे वो बिटकॉइन हो या इथेरियम हो या फिर लाइटकॉइन।
ये एक तरह की डिजिटल मुद्रा है और किसी भी सरकार या किसी बैंक का इस पर कोई अख़्तियार नहीं है।
इसके बदले बहुत बड़े कम्प्यूटर नेटवर्क के सहारे हरेक भुगतान और ट्रांसफर को वेरिफ़ाई किया जाता है। इसके लेन-देन (ट्रांजैक्शंस) का हिसाब-किताब इतना जटिल होता है कि इसके लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर नेटवर्क की ज़रूरत होती है।
प्रोत्साहन के रूप में ये सिस्टम उन लोगों को इनाम देता है जो इस प्रक्रिया में बिटकॉइन से अपना योगदान देते हैं।
मोल्दिर और उनके जैसे अन्य कारोबारियों के बूते कज़ाख़स्तान अमेरिका के बाद बिटकॉइन माइनिंग के कारोबार में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग के वैश्विक नेटवर्क में आज कज़ाख़स्तान की हिस्सेदारी 18 फ़ीसदी के क़रीब है और इसी बूते ये धंधा फल-फूल रहा है।
कज़ाख़स्तान में क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग की शुरुआत साल 2019 में हुई थी। इसकी दो प्रमुख वजहें बताई जाती हैं। पहली ये कि सस्ती बिजली की आपूर्ति और दूसरा दोस्ताना सरकारी नीतियां।
लेकिन साल 2021 में अचानक जब चीन ने अपने यहां क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग पर पाबंदी लगा दी तो कज़ाख़स्तान में ये कारोबार बिजली की रफ़्तार से परवान चढ़ने लगा।
देश में कंपनियों की बाढ़ आ गई और उसके साथ ही बड़ी संख्या में कम्प्यूटर मशीनें आईं।
कज़ाख़स्तान में पहले से मौजूद क्रिप्टो माइनिंग सेंटर इस बढ़ी हुई डिमांड को पूरा कर पाने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए नए खिलाड़ियों के लिए बाज़ार में मौका पैदा हो गया।
पर्यावरण के नुक़सान का मुद्दा
लेकिन ऐसा नहीं है कि कज़ाख़स्तान की इस कामयाबी से मुल्क में हर कोई खुश ही है। पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग अक़सर ही इन क्रिप्टोकरेंसी माइंस में खपत हो रही बेहिसाब बिजली को लेकर आलोचना करते रहते हैं।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी बिटकॉइन इलेक्ट्रिसिटी कंज़म्पशन इंडेक्स चलाता है। इसके मुताबिक़ बिटकॉइन की माइनिंग में यूक्रेन या नॉर्वे की कुल बिजली खपत से ज़्यादा बिजली खर्च होती है।
ये मालूम नहीं है कि इसमें कितनी बिजली ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से मिलती है लेकिन डाना येरमोलिनोक जैसी पर्यावरणदियों का कहना है कि कज़ाख़स्तान जैसे देशों में केवल दो फ़ीसदी बिजली ही ग़ैरपरंपरागत स्रोतों से हासिल होती है।
वो बताती हैं, “यहां मुख्य रूप से कोयला ही ऊर्जा का स्रोत है। ख़ासकर गर्मी पैदा करने और बिजली बनाने के काम में।”
कज़ाख़िस्तान
कज़ाख़िस्तान (क़ज़ाख़ : Қазақстан / Qazaqstan, रूसी : Казахстан / Kazakhstán) यूरेशिया में स्थित एक देश है। क्षेत्रफल के आधार से ये दुनिया का नवाँ सबसे बड़ा देश है। एशिया में एक बड़े भूभाग में फैला हुआ यह देश पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के उपरांत इसने सबसे अंत में अपने आपको स्वतंत्र घोषित किया। सोवियत प्रशासन के दौरान यहाँ कई महत्वपूर्ण परियोजनाएँ संपन्न हुईं, जिसमें कई रॉकेटों का प्रक्षेपण से लेकर क्रुश्चेव का वर्ज़िन भूमि परियोजना शामिल हैं। देश की अधिकाँश भूमि स्तेपी घास मैदान, जंगल तथा पहाड़ी क्षेत्रों से ढकी है। यहाँ के मुख्य निवासी क़ज़ाख़ लोग हैं जो तुर्क मूल के हैं। अपने इतिहास के अधिकांश हिस्से में कज़ाख़स्तान की भूमि यायावर जातियों के साम्राज्य का हिस्सा रही है। इसकी राजधानी सन १९९८ में अस्ताना को बनाई गई।
जो सोवियत कालीन राजधानी अल्माती से बदलकर बनाई गई थी। यहां की क़ाज़ाक़ भाषा और रूसी भाषा मुख्य- और राजभाषाएँ हैं।
SOURCE-BBC NEWS
PAPER-G.S.3