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चीन लीथियम बैटरी का सबसे बड़ा उत्पादक

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बीते एक साल में लीथियम की क़ीमतों में चार गुना से ज़्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वजह ये कि लकड़ी से भी हल्की इस धातु के बिना इलेक्ट्रिक कारें नहीं बनाई जा सकतीं। ऐसी कारें ख़ास लीथियम बैटरी से चलती हैं जिन्हें बार-बार चार्ज किया जा सकता है।

कारों के अलावा लीथियम बैटरी का इस्तेमाल फ़ोन और लैपटॉप में भी होता है और आने वाले वक्त में ग्रीन एनर्जी यानी सतत ऊर्जा स्टोर करने के लिए भी इनके इस्तेमाल की योजना है।

कई देश अब पेट्रोल-डीज़ल छोड़ ग्रीन एनर्जी की तरफ़ बढ़ने की कोशिश में हैं। यानी भविष्य में लीथियम बैटरियों का इस्तेमाल और बढ़ेगा।

भारत भी उन देशों में शामिल है। भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिए काफ़ी हद तक जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है और सरकार की योजना आनेवाले समय में ग्रीन एनर्जी को अपनाने की है। भारत चीन बड़े कारोबारी सहयोगी हैं, पर दोनों के बीच तनाव भी है। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े लीथियम बैटरी के उत्पादक चीन के साथ रिश्तों के समीकरण लीथियम बैटरी की भारत की मांग पर असर डाल सकते हैं।

लेकिन चिंता का विषय ये भी है कि दुनिया में लीथियम के भंडार सीमित हैं। 2021 में इंवेस्टमेंट बैंक यूबीएस ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक़ लीथियम के मौजूदा भंडार 2025 तक ख़त्म हो सकते हैं।

क्यों ज़रूरी है बैटरी?

सुज़ैन बाबिनिक अमेरिका के आर्गोन नेशनल लेबोरेटरी में प्रोग्राम लीड हैं। वो इलेक्ट्रिक एनर्जी को केमिकल में स्टोर करने के तरीकों पर काम करती हैं।

वो कहती हैं, “बैटरी एनर्जी स्टोर करने का एक तरह का उपकरण है। थर्मल, ग्रेविटेशनल, काइनेटिक जैसी कई तरह की एनर्जी होती है। इनके अलावा एक और तरह की एनर्जी होती है जिसे हम केमिकल एनर्जी कहते हैं। बैटरी एनर्जी को केमिकल के रूप में स्टोर कर सकती है।”

वो बताती हैं कि दुनिया की पहली बैटरी क़रीब दो सौ साल पहले बनाई गई थी। इसमें एक तरफ़ तांबे के तार थे तो दूसरी तरफ़ जस्ते के। इनके बीच में नमकीन पानी था। ये अधिक चार्ज स्टोर नहीं कर पाती थी। इसके बाद 1860 में पहली लीड-एसिड बैटरी बनाई गई। हालांकि कारों में इनका इस्तेमाल इसके दशकों बाद ही किया जा सका।

वो कहती हैं, “ये बैटरी चार्ज स्टोर करने में सक्षम थी और कम तापमान में काम कर सकती थी। सर्दियों में कार स्टार्ट करने में इनकी मदद ली जाती थी। लेकिन लीड-एसिड बैटरी आकार में बड़ी और भारी होती थी। दरअसल हेनरी फोर्ड ने सौ साल पहले जो इलेक्ट्रिक कार बनाई उसमें लीड-एसिड बैटरी का इस्तेमाल किया, लेकिन ये बड़ी थी और जरूरत के अनुसार अधिक चार्ज नहीं रख पाती थी।”

बैटरी के इतिहास में अहम मोड़ 1980 के दशक में आया जब लैपटॉप और मोबाइल फ़ोन के लिए लीथियम आयन बैटरियां बनने लगीं। पहले की बैटरियों के मुक़ाबले इनका वज़न कम था और ये अधिक चार्ज स्टोर कर पाती थीं।

वो बताती हैं, “वैज्ञानिक कंज़्यूमर इलेक्ट्रोनिक्स में इस्तेमाल होने वाली लीथियम आयन बैटरी को और बेहतर बनाना चाहते थे, ताकि इसे इलेक्ट्रिक कारों में लगाया जा सके। ये सच है कि इसके लिए कई बदलावों की ज़रूरत थी, लेकिन इससे ये उम्मीद बंधी कि इलेक्ट्रिक कारें वाक़ई में संभव हैं।”

सामान्य भाषा में समझें तो एक आम बैटरी में एक तरफ़ धातु का कैथोड होता है और दूसरी तरफ़ ग्रेफाइट का एनोड होता है। इनके बीच में इलेक्ट्रोलाइट नाम का केमिकल होता है। बैटरी चार्ज करते वक्त धातु के आयन कैथोड से एनोड की तरफ़ जाते हैं और किसी डिवाइस जुड़ने पर उल्टी दिशा में बहते हैं।

लीथियम आयन बैटरी के मामले में ये धातु लीथियम होता है जिसके आयन इलेक्ट्रोलाइट में तैरते हुए एक तरफ़ से दूसरी तरफ आते या जाते रहते हैं। और जब बैटरी के भीतर आयन मूव करते हैं तो बाहर सर्किट में इलेक्ट्रॉन भी उसी दिशा में तैरते हैं। इस तरह इलेक्ट्रिसिटी या ऊर्जा पैदा होती है।”

सुज़ैन कहती हैं कि हर बैटरी में लीथियम का ही इस्तेमाल हो ये ज़रूरी नहीं। लेकिन लीथियम आयन बेहद नन्हे होते हैं और इस कारण वो कैथोड को प्रभावित नहीं करते।

वो कहती हैं, “कैथोड की तरफ़ आने वाले आयन जितने नन्हे आकार के होंगे, उसके घनत्व में उतना ही कम बदलाव होगा। इसका असर बैटरी की ज़िंदगी पर पड़ेगा। आकार छोटा होने के कारण लीथियम आयन तेज़ी से मूव करते हैं और कैथोड को अधिक नुक़सान नहीं पहुंचाते। लेकिन अगर सोडियम या कैल्शियम का इस्तेमाल होगा, तो आयन का आकार बड़ा होने से बैटरी की ज़िंदगी कम होगी।”

यानी भविष्य में ग्रीन एनर्जी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए लीथियम बेहद महत्वपूर्ण है। और अगर ऐसा है तो सवाल ये कि क्या ये पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।

2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लीथियम का मौजूदा भंडार अगले तीन सालों में ख़त्म हो सकता है। इसका खनन तेज़ी से बढ़ रहा है और आने वाले वक्त हमें इसके और स्रोत या विकल्प तलाशने होंगे।

दुनिया में लीथियम का सबसे बड़ा भंडार चिली में है। इसके अलावा अर्जेंटीना, बोलीविया, ऑस्ट्रेलिया में भी इसका खनन होता है। चीन ने साल 2030 तक 40 फ़ीसदी इलेक्ट्रिक कारों का लक्ष्य रखा है। दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाली हर 10 लीथियम बैटरी में से चार का इस्तेमाल चीन में होता है। इसके उत्पादन में भी चीन दूसरों से आगे है। दुनियाभर के लीथियम बैटरी के कुल उत्पादन का 77 फीसदी चीन में होता है।

लिथियम

लिथियम एक रासायनिक तत्व है। साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व-वाला ठोस पदार्थ है। रासायनिक दृष्टि से यह क्षार धातु समूह का सदस्य है और अन्य क्षार धातुओं की तरह अत्यंत अभिक्रियाशील (रियेक्टिव) है, यानि अन्य पदार्थों के साथ तेज़ी से रासायनिक अभिक्रिया कर लेता है। यदी इसे हवा में रखा जाये तो यह जल्दी ही वायु में मौजूद ऑक्सीजन से अभिक्रिया करने लगता है, जो इसके शीघ्र ही आग पकड़ लेने में प्रकट होता है। इस कारणवश इसे तेल में डुबो कर रखा जाता है। तेल से निकालकर इसे काटे जाने पर यह चमकीला होता है लेकिन जल्द ही पहले भूरा-सा बनकर चमक खो देता है और फिर काला होने लगता है। अपनी इस अधिक अभिक्रियाशीलता की वजह से यह प्रकृति में शुद्ध रूप में कभी नहीं मिलता बल्कि केवल अन्य तत्वों के साथ यौगिकों में ही पाया जाता है। अपने कम घनत्व के कारण लिथियम बहुत हलका होता है और धातु होने के बावजूद इसे आसानी से चाकू से काटा जा सकता है।

SOURCE-BBC NEWS

PAPER-G.S.3

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