चुनावी वादे के संदर्भ में अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सहमत: सर्वोच्च न्यायालय
- सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि वह इस मुद्दे को देखने और सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार के मामले में 2013, जिसने “मुफ्त की संस्कृति” के संदर्भ में निर्देश देने से इनकार कर दिया था, के फैसले पर फिर से विचार करने के लिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के नेतृत्व में एक नई तीन–न्यायाधीशों की पीठ का गठन करेंगे।
सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार का मामला – 2013
- उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने तब माना था कि चुनावी घोषणापत्र में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादे, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम– 1951, की धारा-123 के तहत ‘भ्रष्ट प्रथाओं‘ के रूप में नहीं होंगे।
- यह भी फैसला सुनाया था कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यह तय नहीं कर सकते कि सरकारें अपना पैसा कैसे खर्च करती हैं, और यह कि अदालत इस बारे में दिशानिर्देश या कानून नहीं बना सकती कि चुनावी वादों की अनुमति दी जानी चाहिए।
- इसके अलावा, चुनाव आयोग घोषणा पत्र को विनियमित करने के लिए अनुच्छेद 324 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता है।
Note: यह सूचना प्री में एवं मेंस के GS -2 , के “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम एवं सर्वोच्च न्यायालय” वाले पाठ्यक्रम से जुड़ा हुआ है।