जोरों–शोरों से चल रही त्योहार जल्लीकट्टू की तैयारियां
- दक्षिण भारत का एक खास त्योहार जल्लीकट्टू की तैयारियां जोरों–शोरों से चल रही है। बता दें कि जल्लीकट्टू, राज्य में जानवरों को वश में करने वाला प्रसिद्ध खेल है।
- सांड की तेज दहाड़ यानी सेरियाडिक्कुथु ध्वनि पहला संकेत है कि वह लड़ाई के लिए तैयार है। साल 2006-07 से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जल्लीकट्टू से जुड़े मामले न्यायनिर्णय के लिए अदालतों में पहुंचने लगे थे।
- राजशेखरन एक पक्ष बन गए और उन्होंने खुद को हर उस मामले का पक्षकार बना लिया, जो इस वार्षिक आयोजन से संबंधित था।
- वह कहते हैं ‘देशी नस्लों को बचाने के लिए जल्लीकट्टू अहम है’। लोग बैल के बछड़ों को बूचड़खानों में बेच देते थे। वे कहते हैं कि कठिन कानूनी लड़ाई ने लोगों को देशी नस्लों के महत्व को और भी बेहतर समझा है।
जल्लीकट्टू क्या है?
- जल्लीकट्टू का अभ्यास तमिलनाडु में पोंगल उत्सव के एक भाग के रूप में किया जाता है, जो आमतौर पर जनवरी में होता है। बता दें कि पहले जल्लीकट्टू को केवल पुरुषों के लिए एक वीरतापूर्ण खेल के रूप में माना जाता था।
- जल्लीकट्टू तमिलनाडु में एक मजबूत खेल के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह सालों से इस बहस में उलझा हुआ है कि इसे जारी रखा जाना चाहिए या नहीं।
- सुप्रीम कोर्ट ने सांडों को काबू करने के खेल ‘जल्लीकट्टू‘ और बैलगाड़ी दौड़ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है।