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थोक मूल्‍य सूचकांक आधारित मुद्रास्‍फीति में गिरावट जारी

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जनवरी, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरान मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 12.96 प्रतिशत (अंतिम) रही। यह नवम्‍बर 2021 के 14.87 प्रतिशत तथा दिसम्‍बर, 2021 के 13.56 से निरंतर गिरावट है। जनवरी, 2022 में पिछले वर्ष की इस अवधि की तुलना में मुद्रास्फीति की ऊंची दर मुख्‍य रूप से खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस, मूल धातुओं, रसायनों तथा रासायनिक उत्‍पादों, खाद्य सामग्रियों आदि की कीमत में वृद्धि के कारण हुई।

उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने जनवरी, 2022 (अंतिम) और नवम्‍बर, 2021 (अंतिम) के लिए भारत में थोक मूल्य सूचकांक संख्याएं जारी कर दी है। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के अंतिम आंकड़े देश भर में संस्थागत स्रोतों और चुनी हुई विनिर्माण इकाइयों से प्राप्त आंकड़ों के साथ संकलित किए जाते हैं और हर महीने की 14 तारीख (या अगले कार्य दिवस) को जारी किए जाते हैं। 10 सप्ताह के बाद अंतिम सूचकांक को अंतिम रूप दे दिया गया है और अंतिम आंकड़े जारी कर दिए गए हैं

प्राथमिक वस्तुएं (भारांक 22.62 प्रतिशत) : इस प्रमुख समूह का सूचकांक जनवरी, 2022 में (-1.67 प्रतिशत) गिरकर 165.0 प्रतिशत (अंतिम) हो गया जो दिसम्‍बर, 2021 के दौरान 167.8 (अंतिम) था। दिसम्‍बर, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरान खनिजों (11.08 प्रतिशत) तथा अखाद्य वस्तुओं (0.37 प्रतिशत) की कीमतों में वृद्धि हुई। दिसम्‍बर, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 में खाद्य पदार्थों (-2.61 प्रतिशत) तथा कच्चे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस की कीमतों में (-5.11 प्रतिशत) की गिरावट आई।

ईंधन एवं बिजली (भारांक 13.15 प्रतिशत) : इस प्रमुख समूह का सूचकांक दिसम्‍बर, 2021 के 128.2 प्रतिशत (अंतिम) की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरान (3.9 प्रतिशत) बढ़कर 133.2 प्रतिशत (अंतिम) हो गया। दिसम्‍बर, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 में बिजली की कीमत में (15.94 प्रतिशत) तथा खनिज तेलों की कीमत में (0.83 प्रतिशत) की वृद्धि हुई। कोयला की कीमत में बदलाव नहीं हुआ।

विनिर्मित उत्पाद (भारांक 64.23 प्रतिशत) : इस प्रमुख समूह के सूचकांक में दिसम्‍बर, 2021 के 136.4 प्रतिशत (अंतिम) की तुलना में जनवरी, 2022 में (0.51 प्रतिशत) की वृद्धि हुई और यह 137.1 प्रतिशत (अंतिम) हो गया। दिसम्‍बर, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरान विनिर्मित उत्पादों के लिए 22 एनआईसी दो अंकीय समूहों में से 18 समूहों में वृद्धि हुई, जबकि तीन समूहों में मूल्‍यों में गिरावट देखी गई। कीमतों की बढोतरी में मुख्य रूप से मूल धातुओं, मोटर वाहन, ट्रेलरों तथा सेमी ट्रेलरों, मशीनरी तथा उपकरण, कपड़ा तथा रसायन तथा रासायनिक उत्‍पादों का योगदान रहा। कुछ समूहों में देखी गई गिरावट में लकड़ी तथा लकड़ी मैन्‍युफैक्‍चर, कॉर्क, तम्‍बाकू उत्‍पाद तथा फार्मासिक्‍युटल, औषधीय रसायन तथा वनस्‍पति उत्‍पाद शामिल है। दिसम्‍बर, 2021 की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरा बेव्रिजिज़ उत्‍पादन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक (भारांक 24.38 प्रतिशत) : खाद्य सूचकांक, जिसमें प्राथमिक वस्तु समूह की ‘खाद्य वस्तुएं’ और विनिर्मित उत्पाद समूह के ‘खाद्य उत्पाद’ शामिल हैं, में गिरावट आई है और यह दिसम्‍बर, 2021 के 169.0 से गिरकर जनवरी, 2022 में 166.3 हो गई। डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर दिसम्‍बर, 2021 के 9.24 प्रतिशत की तुलना में मामूली रूप से बढ़कर जनवरी, 2022 में 9.55 प्रतिशत हो गई।

थोकमूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI)

  • यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक (Inflation Indicator) है।
  • इसे वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के आर्थिक सलाहकार (Office of Economic Adviser) के कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • इसमें घरेलू बाज़ार में थोक बिक्री के पहले बिंदु किये जाने-वाले (First point of bulk sale) सभी लेन-देन शामिल होते हैं।
  • इस सूचकांक की सबसे प्रमुख आलोचना यह है कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है।
  • वर्ष 2017 में अखिल भारतीय WPI के लिये आधार वर्ष 2004-05 से संशोधित कर 2011-12 कर दिया गया है।

मुद्रास्फीति

  • जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन पैदा होता है तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कीमतों में इस वृद्धि को मुद्रास्फीति कहते हैं। भारत अपनी मुद्रास्फीति की गणना दो मूल्य सूचियों के आधार पर करता है- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI)।
  • मुद्रास्फीति मुख्यतः दो कारणों से होती है, मांगजनित कारक एवं लागतजनित कारक।
  • अगर मांग के बढ़ने से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह मांगजनित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation) कहलाती है।
  • अगर उत्पादन के कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो वह लागतजनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) कहलाती है।

मुद्रास्फीति के प्रभाव (Effects of Inflation)

  • निवेशकर्त्ताओं पर
    निवेशकर्त्ता दो प्रकार के होते है। पहले प्रकार के निवेशकर्त्ता वे होते है जो सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते है। सरकारी प्रतिभूतियों से निश्चित आय प्राप्त होती है तथा दूसरे निवेशकर्त्ता वे होते है जो संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्से खरीदते है। मुद्रास्फीति से निवेशकर्त्ता के पहले वर्ग को नुकसान तथा दूसरे वर्ग को फायदा होगा।
  • निश्चित आय वर्ग पर
    निश्चित आय वर्ग में वे सब लोग आते हैं जिनकी आय निश्चित होती है जैसे- श्रमिक, अध्यापक, बैंक कर्मचारी आदि। मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें बढ़ती है जिसका निश्चित आय वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • ऋणी एवं ऋणदाता पर
    जब ऋणदाता रुपए किसी को उधार देता है तो मुद्रास्फीति के कारण उसके रुपए का मूल्य कम हो जाएगा। इस प्रकार ऋणदाता को मुद्रास्फीति से हानि तथा ऋणी को लाभ होता है।
  • कृषकों पर
    मुद्रास्फीति का कृषक वर्ग पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि कृषक वर्ग उत्पादन करता है तथा मुद्रास्फीति के दौरान उत्पाद की कीमतें बढ़ती हैं। इस प्रकार मुद्रास्फीति के दौरान कृषक वर्ग को लाभ मिलता है।
  • बचत पर
    मुद्रास्फीति का बचत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं पर किये जाने वाले व्यय में वृद्धि होती है। इससे बचत की संभावना कम हो जाएगी। दूसरी ओर मुद्रास्फीति से मुद्रा के मूल्य में कमी होगी और लोग बचत करना नहीं चाहेंगे।
  • भुगतान संतुलन
    मुद्रास्फीति के समय वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि होती है। इसके कारण हमारे निर्यात महँगे हो जाएंगे तथा आयात सस्ते हो जाएंगे। निर्यात में कमी होगी तथा आयत में वृद्धि होगी जिसके कारण भुगतान संतुलन प्रतिकूल हो जाएगा।
  • करों पर
    मुद्रास्फीति के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में बहुत अधिक वृद्धि होती है। सरकार अपने व्यय की पूर्ति के लिये नए-नए कर लगाती है तथा पुराने करों में वृद्धि करती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के कारण करों के भार में वृद्धि होती है।
  • उत्पादकों पर
    मुद्रास्फीति के कारण उत्पादक तथा उद्यमी वर्ग को लाभ होता है क्योंकि उत्पादक जिन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं उनकी कीमतें बढ़ रही होती हैं तथा मज़दूरी में भी वृद्धि कीमतों की तुलना में कम होती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति से उद्यमी तथा उत्पादकों का फायदा होता है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S,3

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