विकसित देश
चर्चा में क्यों?
अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीयों से 2047 तक, जब देश स्वतंत्रता के 100 वर्ष मानएगा, “पंचप्रण” (पांच प्रतिज्ञाओं) को अपनाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि पहला संकल्प भारत के लिए अगले 25 वर्षों में एक विकसित देश बनना है।
एक “विकसित” देश क्या है?
- विभिन्न वैश्विक निकाय और एजेंसियां देशों का अलग-अलग वर्गीकरण करती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की ‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएं’ देशों को तीन व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत करती है: विकसित अर्थव्यवस्थाएं, संक्रमण में अर्थव्यवस्थाएं और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं।
- विचार “देश की बुनियादी आर्थिक स्थितियों को प्रतिबिंबित करना” है, और श्रेणियां “क्षेत्रीय वर्गीकरणों के साथ कड़ाई से संरेखित नहीं हैं”। ऐसा नहीं है कि सभी यूरोपीय देश “विकसित” हैं, और सभी एशियाई देश “विकासशील” हैं।
- आर्थिक स्थितियों के आधार पर देशों को वर्गीकृत करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र विश्व बैंक के वर्गीकरण (चयनित देशों के साथ चार्ट 3) का उपयोग करता है, जो प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) (वर्तमान अमेरिकी डॉलर में) के आधार पर होता है।
- लेकिन संयुक्त राष्ट्र के “विकसित” और “विकासशील” के नामकरण का उपयोग कम होता जा रहा है, और अक्सर इसका विरोध किया जाता है।
विकसित देश:
- एक विकसित देश औद्योगीकृत होता है, जिसमें जीवन की उच्च गुणवत्ता, विकसित अर्थव्यवस्था और कम औद्योगिक राष्ट्रों के सापेक्ष उन्नत तकनीकी अवसंरचना होती है।
- जबकि विकासशील देश वे हैं जो औद्योगीकरण की प्रक्रिया में हैं या पूर्व-औद्योगिक और लगभग पूरी तरह से कृषि प्रधान हैं।
- आर्थिक विकास की मात्रा के मूल्यांकन के लिये सबसे आम मानदंड हैं:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या एक वर्ष में किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य।
- उच्च सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय (प्रति व्यक्ति अर्जित आय की राशि) वाले देशों को विकसित माना जाता है।
- तृतीयक और चतुर्थ क्षेत्र का प्रभुत्त्व:
- जिन देशों में तृतीयक (मनोरंजन, वित्तीय और खुदरा विक्रेताओं जैसी सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियाँ) और उद्योग के चतुर्थ क्षेत्र (ज्ञान आधारित गतिविधियाँ जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास, साथ ही परामर्श सेवाएँ और शिक्षा) का प्रभुत्त्व होता है उन्हें विकसित के रूप में वर्णित किया गया है।
- उत्तर-औद्योगिक अर्थव्यवस्था:
- इसके अलावा, विकसित देशों में आम तौर पर अधिक उन्नत औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएँ होती हैं, जिसका अर्थ है कि सेवा क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र की तुलना में अधिक धन प्रदान करता है।
- मानव विकास सूचकांक:
- अन्य मानदंड बुनियादी ढाँचे के मापन, जीवन स्तर के सामान्य मानक और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) हैं।
- चूँकि एचडीआई जीवन प्रत्याशा और शिक्षा के सूचकांकों पर ध्यान केंद्रित करता है तथा किसी देश में प्रति व्यक्ति शुद्ध संपत्ति या वस्तुओं की सापेक्ष गुणवत्ता जैसे कारकों को ध्यान में नहीं रखता है।
- यही कारण है कि कुछ सबसे उन्नत देश जिनमें जी7 सदस्य (कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके, यूएस और यूरोपीय संघ) और अन्य शामिल हैं, एचडीआई में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं तथा स्विट्ज़रलैंड जैसे देश एचडीआई में उच्च रैंक पर हैं।
- अन्य मानदंड बुनियादी ढाँचे के मापन, जीवन स्तर के सामान्य मानक और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) हैं।
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
भारत की स्थिति:
- भारत इस समय विकसित देशों के साथ-साथ कुछ विकासशील देशों से भी काफी पीछे है।
- सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भारत छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत बांग्लादेश से भी पीछे है।
- इसके अलावा, चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में 5 गुना है और ब्रिटेन की लगभग 33 गुना है।
- इस असमानता का मानचित्रण करने के लिये और भारत और अन्य देशों के स्कोर से तुलना करने के लिये हम मानव विकास सूचकांक (HDI) को देखते हैं,
- भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।
- भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा वर्ष 1947 में लगभग 40 वर्ष से बढ़कर अब लगभग 70 वर्ष हो गई है।
- भारत ने प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक तीनों स्तरों पर शिक्षा के नामांकन में भी काफी प्रगति की है।
- एक विकसित देश कहलाने के लिये भारत को प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि एक इकाई के रूप में लोग अधिक मायने रखते हैं।
- प्रति व्यक्ति आय में असमानता अक्सर विभिन्न देशों में जीवन की समग्र गुणवत्ता में दिखाई देती है।
SOURCE –INDIAN EXPRESS
PAPER-G.S.3