जापान ने अपनी पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन लांच की है। इस अनावरण को देश के 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनने के लक्ष्य की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। हाइड्रोजन से चलने वाली इस ट्रेन का मार्च में परीक्षण किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
“हाइबारी” (Hybari) नामक दो कारों वाली इस ट्रेन की कीमत 35 मिलियन अमरीकी डॉलर या 4 बिलियन येन से अधिक है और यह हाइड्रोजन ईंधन भरने पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड से 140 किलोमीटर या 87 मील तक जा सकती है।
इस ट्रेन को किसने विकसित किया है?
इस ट्रेन को पूर्वी जापान रेलवे ने हिताची और टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशन के सहयोग से विकसित किया है। जापान ने अपने डीजल बेड़े को ट्रेनों के इस हाइड्रोजन संस्करण से बदलने की योजना बनाई है और जापान उन्हें निर्यात करने पर भी विचार करेगा। 2030 में, वाणिज्यिक सेवाएं शुरू होने की उम्मीद है।
किस देश ने पहली हाइड्रोजन-ईंधन वाली ट्रेन शुरू की है?
हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों में यूरोप अग्रणी रहा है। जर्मनी ने दुनिया की पहली ट्रेन 2018 में लॉन्च की थी जिसे एल्सटॉम एसए (Alstom SA) ने बनाया था। ड्यूश बाहन एजी और सीमेंस एजी द्वारा विशेष ईंधन स्टेशन और नई क्षेत्रीय ट्रेनें विकसित की जा रही हैं, और उनका परीक्षण 2024 में किया जाएगा।
निष्कर्ष
शुद्ध-शून्य ऊर्जा प्राप्त करने के लिए, जापान ने हाइड्रोजन को एक प्रमुख स्वच्छ-ऊर्जा स्रोत बना दिया है। टोयोटा अपनी दूसरी पीढ़ी की हाइड्रोजन-ईंधन वाली मिराई कारों के उत्पादन को दस गुना बढ़ाने पर विचार कर रही है, जिसमें अधिक वाणिज्यिक वाहन और ईंधन-सेल बसें सड़क पर चल रही हैं।
जापान सरकार ने 2050 तक हाइड्रोजन के उपयोग को 20 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना बनाई है। कावासाकी और इवातानी हेवी इंडस्ट्रीज जैसे ऊर्जा उद्योग ईंधन की लागत को कम करने के लिए हाइड्रोजन आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं।
जर्मनी ने सफलता पूर्वक हाइड्रोजन से चलनी वाली ट्रेन की शुरुआत 2018 में की थी। इससे प्रदूषण भी कम होगा, इसलिए इसे इको-फ्रेंडली कहा गया है। जैसा की हम जानते हैं की पूरी दुनिया में धीरे-धीरे प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है। इसलिए फ्रांस की मल्टीनेशनल कंपनी अलस्टॉम ने हाइड्रोजन से चलनी वाली ट्रेन को तैयार किया है। आइये इस लेख के माध्यम से हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन की क्या खासियत है, इसमें क्या-क्या सुविधा दी गई हैं इत्यादि के बारे में अध्ययन करते हैं।
हाइड्रोजन ट्रेन डीज़ल इंजन जैसी तकनीक का इस्तेमाल करती है। फर्क सिर्फ इंजन की बनावट और ईंधन का है। ट्रेन में डीज़ल की जगह फ्यूल सेल, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन डाले गए हैं। ऑक्सीजन की मदद से हाइड्रोजन नियंत्रित ढंग से जलेगी और इस ताप से बिजली पैदा होगी। बिजली लिथियम आयन बैटरी को चार्ज करेगी और इससे ट्रेन चलेगी। इस दौरान धुएं की जगह सिर्फ भाप और पानी ही निकलेगा। ट्रेन के आयन लिथियम बैटरी में अतिरिक्त ऊर्जा को जमा कीया जाएगा, ताकि जरुरत पढ़ने पर इस्तेमाल किया जा सके और ट्रेन आसानी से अपना सफर पूरा कर सके। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि यह किसी बैटरी से चलने वाली टॉय ट्रेन की फीलिंग देगी। मगर स्पीड के मामले में यह किसी भी आधुनिक ट्रेन से कम नहीं है।
कॉर्डिया आईलिंट ट्रेन, डीजल ट्रेन के समान हाइड्रोजन के एक टैंक फुल करने पर लगभग 1000 किलोमीटर (लगभग 620 मील) का सफर तय कर सकती है और वो भी 140 किलोमीटर प्रति घंटे (87 मील प्रति घंटे) की अधिकतम स्पीड पर। यह ट्रेन आने वाले समय में हाइड्रोजन ट्रेन के रूप में रेल नैटवर्क में एक क्रांति लेकर आएगी।
तो अब आप जान गए होंगे की यह हाइड्रोजन ट्रेन डीज़ल की बजाय हाइड्रोजन से संचालित होगी इसलिए तो इसमें धुआं नहीं निकलेगा। यह पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखते हुए कम कीमत पर यात्रा करवाने के लिए ही तैयार की गई है।
SOURCE-DANIK JAGRAN
PAPER-G.S.3