पीएम मोदी ने किया ‘अर्बन नक्सल’ की आलोचना करते हुए विकास विरोधियों से रहें सतर्क रहने पर बल देने की बात की
- पर्यावरण की आड़ में विकास कार्यों में बेवजह अड़ंगेबाजी करने वालों से बचने की सलाह देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितम्बर 2022 को कहा कि ऐसे लोग अर्बन नक्सल हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण मंजूरी के नाम पर देश में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को कैसे उलझाया जाता है, यह उन्होंने देखा है।
- गुजरात में नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध इसका उदाहरण है, जिसे अर्बन नक्सलियों और विकास विरोधियों ने कैसे सालों तक रोक रखा था। इसके खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया। इसे पर्यावरण विरोधी बताया। इससे देश का कितना पैसा बर्बाद हो गया।
- पीएम मोदी ने ये बातें गुजरात के एकता नगर में आयोजित राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों के दो दिवसीय सम्मेलन में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये कहीं।
- उन्होंने कहा कि विकास विरोधी और अर्बन नक्सल आज भी चुप नहीं हैं। उनके खेल अभी भी जारी हैं, लेकिन ऐसे लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है। हमें पर्यावरण से किसी भी तरह का समझौता किए बगैर एक समग्र दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
- पीएम ने इस दौरान अर्बन नक्सल की पूरी गैंग का पर्दाफाश किया और बताया कि देश के विकास को रोकने के इस खेल में कई ग्लोबल इंस्टीट्यूट व कई फाउंडेशन भी सक्रिय हैं, जो ऐसे विषयों को पकड़ कर तूफान खड़ा कर देते हैं। इसके बाद अर्बन नक्सल उनको मुद्दा बनाकर काम रुकवा देते हैं। इनकी साजिश इतनी गहरी होती है कि यह विश्व बैंक और न्यायपालिका तक को प्रभावित कर देते हैं।
पर्यावरण मंजूरी का मुद्दा:
- पीएम ने इस मौके पर पर्यावरण मंजूरी का भी मुद्दा उठाया और कहा कि मौजूदा समय में राज्यों में छह हजार से भी ज्यादा पर्यावरण मंजूरी के मामले लंबित हैं।
- इसी तरह फारेस्ट क्लीयरेंस के भी करीब साढ़े छह हजार प्रोजेक्ट के आवेदन लटके हैं। लेकिन आज के तकनीकी युग में क्या यह देरी सही है।
- उन्होंने कहा कि आठ साल पहले केंद्र में मंजूरी के लिए छह सौ से ज्यादा दिन लगते थे, लेकिन अब तकनीक की मदद वह सिर्फ 75 दिन में ही हम क्लीयर कर रहे हैं।
शहरी नक्सलवाद (Urban Naxalism):
- सामान्यतः यह विश्वास कि नक्सली आंदोलन पिछड़े क्षेत्रों में होता है, से उलट शहरी नक्सलवाद हमेशा से ही माओवादी रणनीति का अभिन्न हिस्सा रहा है जिसका मुख्य उपयोग उपयोग शहरी क्षेत्रों में अग्रिम संगठनों के रूप में शहरी आबादी के चुने हुए वर्गों को लामबंद करने, संगठन में बौद्धिक क्रांतिकारियों की भर्ती करने, उग्रवाद के लिए धन जमा करने और भूमिगत कैडर को पनाह देने के लिए किया जाता है।
- यह संगठन सामान्यता विचारधाराओं द्वारा संचालित होते हैं जिसमें बुद्धिजीवी कार्यकर्ता भी होते हैं जो अधिकतर मानव अधिकार के गैर सरकारी संगठनों की आड़ में काम करते हैं।
- वर्ष 2018 में 5 बड़े विचारकों की गिरफ्तारी ने शहरी नक्सलवाद को अग्रिम मोर्चे पर ला दिया है। गिरफ्तार 5 लोगों में पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव सुधा भारद्वाज और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता अरुण प्रिया भी हैं जिन्हें भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार किया गया है। इन्हें ‘विधि विरुद्ध क्रियाकलाप निवारण अधिनियम– 1967 (UAPA)’ के तहत गिरफ्तार किया गया है।
- उल्लेखनीय है कि शहरी नक्सलवाद कोई रातों–रात नहीं फैला है, बल्कि यह सीपीआई(माओ) की विस्तृत नीति का हिस्सा है जिसे 2014 में ‘शहरी क्षेत्रों में हमारा काम‘ में नक्सलवाद ने अपनी रणनीति का हिस्सा माना है।
Note: यह सूचना मेंस के GS -3, के “चरमपंथ के प्रसार और विकास के बीच संबंध” वाले पाठ्यक्रम से जुड़ा हुआ है।