भारतीय कुश्ती संघ सहित 15 खेल संघों को NHRC का नोटिस:
- भारतीय कुश्ती संघ सहित अन्य खेल संघों में खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न रोकने संबंधी कानून के पालन में ढिलाई पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने 15 खेल संघों सहित खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी नोटिस जारी किया है।
- यौन उत्पीड़न रोकने संबंधी कानून (प्रिवेंशन आफ सेक्सुअल हैरेसमेंट एक्ट, 2018) के तहत खेल संघों में आंतरिक शिकायत समिति के गठन और कार्यवाही को लेकर चार सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है।
मानव अधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट:
- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने उन मीडिया रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया है, जिनमें बताया गया है कि भारतीय कुश्ती संघ में आंतरिक शिकायत समिति ही नहीं है, जबकि इसे कानूनन अनिवार्य किया गया है।
- आयोग ने कहा है कि सिर्फ भारतीय कुश्ती संघ ही नहीं, बल्कि 30 भारतीय खेल संघों में से करीब 15 में समिति गठित न होने की जानकारी सामने आई है। यदि यह रिपोर्ट सही है तो स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि इसका असर खिलाड़ियों के विधिक अधिकार और सम्मान पर भी पड़ेगा।
- इस पर आयोग ने खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय के सचिव, भारतीय खेल प्राधिकरण सहित विभिन्न संघों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में आंतरिक शिकायत समिति के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
- आयोग के इस कदम की प्रासंगिकता इसलिए भी अधिक है, क्योंकि महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष व सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए हैं और उन पर कार्रवाई की मांग को लेकर कई दिनों से पहलवानों का धरना जंतर-मंतर पर चल रहा है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग:
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 12 अक्टूबर, 1993 को हुआ था।
- आयोग का अधिदेश, मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 द्वारा यथासंशोधित मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में निहित है।
- राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है जिन्हें अक्टूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था।
- यह आयोग, मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति भारत की चिंता का प्रतीक अथवा संवाहक है।
- मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 (1)(घ) में मानव अधिकारों को संविधान द्वारा गारंटीकृत अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में समाविष्ट तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय व्यक्ति के अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है।