देश के 25 उच्च न्यायालयों में हर साल 7.5 लाख तक रिट याचिकाएं होती हैं दाखिल, इनमें जनहित याचिकाएं भी शामिल
- संविधान में लोगों को सीधे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का अधिकार दिया गया है। मौलिक अधिकारों और अन्य राहतों के लिए सीधे हाई कोर्ट जाने का चलन बढ़ा है।
- इसका पता हाई कोर्ट में लंबित मुकदमो को देखने से चलता है जिसके मुताबिक हाई कोर्ट में कुल दाखिल होने वाले मुकदमो में एक बड़ा हिस्सा रिट याचिकाओं का है।
- देश के 25 उच्च न्यायालयों में हर साल 7.5 लाख तक रिट याचिकाएं दाखिल होती हैं इनमें जनहित याचिकाएं भी शामिल हैं। हाई कोर्ट में कुल करीब 60 लाख मुकदमे लंबित हैं जिनमें दस फीसद से ज्यादा हिस्सा रिट याचिकाओं का है।
- हाई कोर्ट में रिट याचिकाओं की अच्छी खासी हिस्सेदारी लोगों में अधिकारों को लेकर आयी जागरूकता की ओर तो इशारा करती है लेकिन हर छोटी बड़ी मांग के लिए सीधे हाई कोर्ट में रिट दाखिल करने से मुकदमो की संख्या में बेवजह की बढ़ोत्तरी होती है और इससे निचली अदालत से हाई कोर्ट पहुंचने वाली अपीलों की सुनवाई में देरी होती है।
- संविधान में पांच तरह की रिट दी गई हैं जिनके लिए नागरिक सीधे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से राहत पा सकते हैं।
- मूल रूप से रिट याचिका मौलिक अधिकारों को लागू कराने और उनके उल्लंघन पर दाखिल की जाती है
- लेकिन संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में रिट मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य राहतों के लिए भी दाखिल की जा सकती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सिर्फ मौलिक अधिकारों के हनन पर ही रिट याचिका सुनता है।
- रिट याचिकाएं याचिकाएं टैक्स एंड ड्यूटीज, शिक्षा, सर्विस के मामले और बंदी प्रत्यक्षीकरण में दाखिल हो रही हैं।
- हाई कोर्ट में पिछले छह सालों में दाखिल हुई रिट याचिकाओं को देखें तो पता चलता है कि सबसे ज्यादा रिट याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल हुईं। इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस दौरान कुल 1171884 मुकदमे दाखिल हुए जिसमें 541501 रिट याचिकाएं थीं। यानी कुल दाखिल मुकदमो में 46.21 फीसद हिस्सा रिट याचिकाओं का था।