नीलांबुर से वन उत्पादों का एक नया ब्रांड लॉन्च किया गया है। नीलांबुर आदिवासियों द्वारा एकत्रित गए लघु वनोपज जैसे जंगली शहद का विपणन अब अदावी ब्रांड के तहत किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- National Bank for Agriculture and Rural Development (NABARD) और जन शिक्षण संस्थान (JSS) ने संयुक्त रूप से नीलांबुर में आयोजित एक आदिवासी उत्सव में अदावी ब्रांड लॉन्च किया है।
- JSS और नाबार्ड ने गोत्रमृत परियोजना के कार्यान्वयन में सहयोग किया, जिसमें अदावी ब्रांड भी शामिल है।
- आदिवासी उत्सव के दौरान नाबार्ड और JSS द्वारा ‘दिशा’ नामक एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था।
इस ब्रांड के तहत क्या प्रचारित किया जाएगा?
प्रारंभिक चरण में, अदावी ब्रांड शुद्ध जंगली शहद, जंगली शतावरी, और आंवले के विभिन्न अचार और आम को बढ़ावा देगा।
उत्पादों को गोत्रमृत सोसाइटी द्वारा बेचा जाएगा, जिसकी स्थापना नीलांबुर आदिवासियों ने की थी। इस नई योजना के तहत, अदावी उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए, विशेष रूप से विदेशी बाजारों में बेहतर और व्यापक बाजारों का प्रस्ताव दिया गया है।
जन शिक्षण संस्थान (Jan Shikshan Sansthan)
JSS योजना, जिसे पहले श्रमिक विद्यापीठ के नाम से जाना जाता था, 1967 से गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा देश में लागू की गई है। जुलाई 2018 में, इसे शिक्षा मंत्रालय से कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। जेएसएस न्यूनतम बुनियादी ढांचे और लागत के साथ लाभार्थियों के दरवाजे पर व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है। JSS न केवल व्यावसायिक कौशल प्रदान करते हैं बल्कि जीवन कौशल भी प्रदान करते हैं जो लाभार्थियों को दैनिक जीवन में मदद कर सकते हैं।
नाबार्ड एक विकास बैंक है जो प्राथमिक तौर पर देश के ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु वित्त प्रदान करने के लिये शीर्ष बैंकिंग संस्थान है। इसका मुख्यालय देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में अवस्थित है। कृषि के अतिरिक्त यह छोटे उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं ग्रामीण परियोजनाओं के विकास के लिये उत्तरदायी है। यह एक सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत की गई थी।
कार्य
- नाबार्ड के कार्यक्रमों का उद्देश्य ग्रामीण भारत में विशिष्ट लक्ष्य उन्मुख विभागों (Specific Goal Oriented Departments) के माध्यम से वित्तीय समावेशन को सशक्त करना है जिसे व्यापक रूप में तीन शीर्ष भागों वित्तीय, विकास एवं निरीक्षण में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- यह ग्रामीण आधारभूत संरचना के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- यह ज़िला स्तरीय ऋण योजनाएँ (district level credit plans) तैयार करता है ताकि उपरोक्त लक्ष्यों को प्राप्त करने में बैंकिंग उद्योगों को निर्देशित एवं प्रेरित किया जा सके।
- यह कोऑपरेटिव बैंकों एवं क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निरीक्षण करता है और साथ ही उन्हें CBS प्लेटफॉर्म (Core Banking Solution) से जुड़ने में सहयोग करता है।
- CBS प्लेटफॉर्म अर्थात् कोर बैंकिंग सॉल्यूशन ब्रांचों का नेटवर्क है जो ग्राहकों को उनके अकाउंट्स के संचालन में समर्थन करता है और CBS नेटवर्क पर मौजूदा बैंकों की किसी भी ब्रांच से बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य केंद्र सरकार की विकास योजनाओं की डिज़ाइनिंग एवं उनके क्रियान्वयन में निहित है।
- यह हस्तकला शिल्पकारों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है एवं इन वस्तुओं की प्रदर्शनी हेतु एक मार्केटिंग प्लेटफॉर्म विकसित करने में उनकी मदद करता है।
- नाबार्ड में कई अंतर्राष्ट्रीय भागीदार हैं जिसमें प्रमुख वैश्विक संगठन एवं विश्व बैंक से संबद्ध संस्थान शामिल हैं जो कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नवाचार कर रहे हैं।
- ये अंतर्राष्ट्रीय भागीदार संगठन वित्तीय सहायता एवं सलाहकारी सेवाएँ प्रदान करने में एक प्रमुख सलाहकार की भूमिका निभाते हैं ताकि विभिन्न कृषि प्रक्रियाओं के अनुकूलन एवं ग्रामीण लोगों के उत्थान को सुनिश्चित किया जा सके।
इतिहास
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु संस्थागत ऋण का महत्त्व सरकार के नियोजन के प्रारंभिक दौर से ही स्पष्ट हो जाता है। इसी क्रम में वर्ष 1979 में तात्कालिक योजना आयोग के सदस्य श्री बी. सिवरामन की अध्यक्षता में भारत सरकार के आग्रह पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिये संस्थागत ऋण की व्यवस्था की समीक्षा करने हेतु एक समिति का गठन किया।
- समिति द्वारा ग्रामीण विकास से जुड़े ऋण संबंधी मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने हेतु संगठनात्मक उपकरण की आवश्यकता रेखांकित किया गया।
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में नाबार्ड की स्थापना की गई।
- इसकी आरंभिक पैड अप कैपिटल (Paid Up Capital) 100 करोड़ रुपए थी जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक एवं भारत सरकार की हिस्सेदारी 50:50 थी।
- नाबार्ड की स्थापना से पहले RBI भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ऋण सुविधा प्रदान करने हेतु शीर्ष निकाय था।
- इसके परिणामस्वरूप भारत में कृषि और ग्रामीण विकास के संदर्भ में एक शीर्ष विकास वित्तीय संस्थान के रूप में नाबार्ड की स्थापना की गई।
- नाबार्ड की भूमिका मुख्य रूप से कृषि एवं ग्रामीण विकास के क्षेत्र में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की भूमिका का ही विस्तार है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक की तीन संस्थाओं के कार्यों को नाबार्ड को हस्तांतरित कर दिया गया है। ये तीन संस्थाएँ हैं:
- कृषि ऋण विभाग (Agricultural Credit Department – ACD) : भारतीय रिज़र्व बैंक अपने कृषि ऋण विभाग (ACD) के माध्यम से सहयोगियों को लघु अवधि के लिये पुनर्वित्त की सुविधा प्रदान करता है।
- ग्रामीण योजना एवं क्रेडिट सेल (Rural Planning and Credit Cell – RPCC) : यह वर्ष 1979 से ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional Rural Banks-RRBs) के साथ सहयोग कर रहा है।
- कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (Agricultural Refinance and Development Corporation – ARDC) : भारतीय रिज़र्व बैंक ने वर्ष 1963 में एक पुनर्वित्त एजेंसी के रूप में कार्य करने के लिये कृषि पुनर्वित्त कॉरपोरेशन (Agricultural Refinance Corporation-ARC) की स्थापना की। इस एजेंसी का कार्य कृषि विकास के लिये निवेश ऋण की आवश्यकताओं को पूरा करना है।
- वर्ष 1975 में कृषि क्षेत्र में विकास एवं संवर्द्धन को बढ़ावा देने के लिये ARC का नाम बदलकर कृषि पुनर्वित्त एवं विकास कॉरपोरेशन (ARDC) कर दिया गया था।
- नाबार्ड (संशोधन) विधेयक, 2017 (वर्ष 2018 में पारित) :
- उपरोक्त संशोधन अधिनियम द्वारा केंद्र सरकार को नाबार्ड की अधिकृत पूंजी को 5000 करोड़ रुपए से 30000 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का अधिकार दिया गया है।
- नाबार्ड की पूंजी में बढ़ोतरी : 1981 के अधिनियम के तहत नाबार्ड की पूंजी 100 करोड़ रुपए तक हो सकती है। इस पूंजी को केंद्र सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व बैंक के साथ परामर्श करके आगे 5000 करोड़ तक बढ़ाया जा सकता हैं। यह अधिनियम केंद्र सरकार को नाबार्ड की पूंजी को 30000 करोड़ रुपए तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
- केंद्र सरकार को भारतीय रिज़र्व बैंक के हिस्से का हस्तांतरण : 1981 के अधिनियम के तहत केंद्र सरकार एवं रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया दोनों के पास नाबार्ड की शेयर पूंजी का कम-से-कम 51% हिस्सा होना चाहिये। अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार के पास अकेले नाबार्ड की शेयर पूंजी का 51% हिस्सा होना चाहिये। अधिनियम भारतीय रिज़र्व बैंक की शेयर पूंजी को केंद्र सरकार को हस्तांतरित करता है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) : वर्ष 1981 अधिनियम के तहत नाबार्ड 20 लाख रुपए तक के निवेश वाले उद्यमों को मशीनरी और संयंत्रों के लिये ऋण एवं दूसरी सुविधाएँ देता है। संशोधित अधिनियम मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में 10 करोड़ रुपए तक के और सेवा क्षेत्र में 5 करोड़ रुपए तक के निवेश वाले उद्योगों को इसमें शामिल करता है।
- वर्ष 1981 अधिनियम के तहत लघु उद्यमों के विशेषज्ञों को नाबार्ड के निदेशक बोर्ड और सलाहकार परिषद में शामिल किया जाता है। इसके अतिरिक्त लघु स्तरीय, छोटे एवं विकेंद्रित क्षेत्रों को ऋण देने वाले बैंक नाबार्ड से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। अधिनियम इन प्रावधानों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को शामिल करता है।
नाबार्ड और RBI
- भारतीय रिज़र्व बैंक देश का केंद्रीय बैंक है जो बैंकिंग व्यवस्था को विनियमित करता है और यह नाबार्ड के अंतर्गत शामिल है एवं बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत परिभाषित विभिन्न संस्थाओं/बैंकों का पर्यवेक्षक है।
- कई विकासात्मक एवं विनियामक कार्यों को RBI एवं नाबार्ड के समन्वय से किया जाता है। RBI, नाबार्ड के निदेशक बोर्ड के लिये तीन निदेशकों की नियुक्ति करता है।
- नाबार्ड, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं राज्य कोऑपरेटिव बैंक द्वारा नई शाखाओं को खोलने एवं निजी बैंको के लाइसेंस के मुद्दों पर भारतीय रिज़र्व बैंक को अनुशंसा करता है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.3