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इमैनुएल मैक्रों

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24 अप्रैल 2022 को, फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) ने मरीन ले पेन को पराजित किया।

मुख्य बिंदु

  • मरीन ले पेन एक दक्षिणपंथी नेता हैं जिन्हें मैक्रों ने हराया था।
  • मैक्रों पिछले 20 वर्षों में फिर से निर्वाचित होने वाले पहले फ्रांसीसी राष्ट्रपति हैं।
  • चुनाव का मतदान केवल 72% से कम था जो 1969 के बाद सबसे कम है।
  • 30 लाख से अधिक लोगों ने खाली या खराब वोट डाला था।
  • मैक्रों को 5 फीसदी वोट मिले जबकि ले पेन को 41.5 फीसदी वोट मिले।

इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron)

14 मई, 2017 से, इमैनुएल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अपनी अध्यक्षता के दौरान, उन्होंने कराधान, श्रम कानूनों और पेंशन में कई सुधारों की देखरेख की है। उनके द्वारा अक्षय ऊर्जा संक्रमण के क्षेत्र में भी काफी कार्य किया गया। उनके द्वारा प्रस्तावित ईंधन कर के परिणामस्वरूप 2018 में येलो वेस्ट विरोध प्रदर्शन हुए थे। 2020 से, वह COVID-19 महामारी और टीकाकरण के रोलआउट के लिए फ्रांस की प्रतिक्रिया का नेतृत्व कर रहे हैं। अपनी विदेश नीति में, उन्होंने यूरोपीय संघ में सुधार की मांग की और जर्मनी और इटली के साथ द्विपक्षीय संधियों पर भी हस्ताक्षर किए। उन्होंने सीरिया के गृह युद्ध में फ्रांसीसी भागीदारी जारी रखी, उन्होंने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के खिलाफ भी कड़ी आलोचना की।

फ़्रांस के राष्ट्रपति चुनाव

फ़्रांस यूरोप महाद्वीप में पड़ता है। आबादी सात करोड़ के करीब है। ये दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी इकॉनमी है। पहले छह हैं – अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम और भारत।

  • इतिहास की बात करें तो, फ़्रांस पहले और दूसरे विश्वयुद्ध का विजेता रह चुका है।
  • ये यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल के पांच परमानेंट मेंबर्स में से एक है। फ़्रांस परमाणु-शक्ति से संपन्न है।
  • फ़्रांस, यूरोपियन यूनियन और नेटो का फ़ाउंडिंग मेंबर भी है। दोनों संगठन रूस-यूक्रेन युद्ध की सबसे अहम कड़ी हैं।

आपने फ़्रांस की अहमियत समझी। अब नए निज़ाम की चुनौतियों का ज़िक्र कर लेते हैं।

नए राष्ट्रपति को मोटा-मोटी दो मोर्चों पर दम लगाना होगा।

पहला मोर्चा रूस-यूक्रेन युद्ध का है। इस लड़ाई के चलते यूक्रेन के लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। इंफ़्रास्ट्रक्चर को भारी नुकसान पहुंचा है। फ़्रांस शुरुआत से ही इस हमले को रोकने की कोशिश कर रहा है। मैक्रों कई दफ़ा रूसी राष्ट्रपति पुतिन से बात कर चुके हैं। मगर बात नहीं बनी है। जो कोई भी राष्ट्रपति पद पर बैठेगा, उसे ये संकट विरासत में मिलने वाला है।

दूसरा मोर्चा कोरोना महामारी से जुड़ा है। इस समय दुनियाभर के देश पोस्ट-कोविड दौर का स्वागत कर रहें है। साथ में उनके सामने। मसलन, सप्लाई चेन की समस्या। अगर आपको ध्यान हो तो ब्रिटेन में ट्रक ड्राइवर्स की कमी के चलते सप्लाई चेन ठप पड़ गई थी। तब सरकार ने सेना को उतारा था।

कोविड के बाद कई देशों में ग्रेट रेजिग्नेशन भी देखने को मिला। कोविड प्रोटोकॉल्स की बंदिशें हटने के बाद नौकरी के अवसर अचानक से बढ़े। लोग अपनी शर्तों पर काम करना पसंद करने लगे थे। बड़ी संख्या में लोगों ने नौकरियां बदली। इसके चलते बहुत सारी कंपनियों में योग्य लोगों की कमी हुई।

फ़्रांस भी इस समस्या से जूझ रहा है। नए राष्ट्रपति को पोस्ट-कोविड इकॉनमी कि चिंता भी करनी होगी।

इनके अलावा, महंगाई, धार्मिक कट्टरता और प्रवासियों की बढ़ती संख्या भी इस चुनाव में अहम मुद्दा बनकर उभरे हैं।

अब राष्ट्रपति की योग्यता की बात। इस चुनाव में कौन खड़े हो सकते हैं?

  • उसके पास फ़्रांस की नागरिकता हो।
  • उम्र 18 साल या उससे ऊपर हो।

किसी अदालत द्वारा अयोग्य घोषित नहीं किया गया हो।

  • अपना बैंक अकाउंट हो।
  • उम्मीदवार को कम-से-कम 500 चुने हुए प्रतिनिधियों के दस्तख़त भी चाहिए। दस्तख़त करने वाले सांसद और मेयर हो सकते हैं। इसके बिना उम्मीदवार की दावेदारी खारिज कर दी जाती है।
  • फ़्रांस में राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच बरस का होता है। 2000 के साल से पहले तक कार्यकाल सात बरस का होता था।
  • राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान किसी दूसरे पद पर काम नहीं कर सकते।
  • फ़्रांस में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता करती है। जनता राष्ट्रपति के नाम पर वोट डालने के लिए जाती है। पार्टी के नाम पर नहीं।
  • राष्ट्रपति चुनाव के तुरंत बाद नेशनल असेंबली के लिए चुनाव कराया जाता है। फ़्रांस में दो सदनों वाली व्यवस्था है। नेशनल असेंबली निचला सदन है। ऊपरी सदन को सेनेट के नाम से जाना जाता है। नेशनल असेंबली, सेनेट की तुलना में अधिक शक्तिशाली है।

चूंकि राष्ट्रपति पद और नेशनल असेंबली के सदस्यों का चुनाव कुछ ही समय के अंतराल पर होता है। इसलिए, नेशनल असेंबली चुने गए राष्ट्रपति के प्रति वफ़ादार रहती है।

अब राष्ट्रपति की शक्तियों के बारे में जान लेते हैं। ऑफ़िस में रहने के दौरान क्या-क्या करना होता है?

फ़्रांस में प्रेसिडेंशियल और पार्लियामेंट्री, दोनों सिस्टम काम करता है। यानी, राष्ट्रपति भी और प्रधानमंत्री भी। जैसा कि भारत में है। दोनों में एक बारीक अंतर है। भारत में राष्ट्रपति के पास सिम्बॉलिक शक्तियां हैं। लेकिन फ़्रांस में इसका उलटा है। वहां राष्ट्रपति कार्यपालिका और सेना के अध्यक्ष होते हैं। और, वे सही मायनों में इन शक्तियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। राष्ट्रपति विदेश नीति भी तय कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें संसद की सहमति की ज़रूरत नहीं होती।

  • राष्ट्रपति को नेशनल असेंबली भंग करने का अधिकार है।
  • राष्ट्रपति अपनी पसंद के व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित करते हैं। और, चाहें तो पद से बर्खास्त भी कर सकते हैं।
  • विदेश में राजदूत नियुक्त करने या उन्हें वापस बुलाने का अधिकार है।
  • राष्ट्रपति कैबिनट मीटिंग की अध्यक्षता करते हैं।

अपनी मर्ज़ी से संसद की असाधारण बैठक बुला सकते हैं।

  • बिना संसद को बताए विदेश में सेना तैनात कर सकते हैं।
  • फ़्रांस में परमाणु हथियार तैनात करने का अधिकार भी सिर्फ़ राष्ट्रपति के पास है।
  • राष्ट्रपति चाहें तो किसी सज़ायाफ़्ता मुज़रिम की सज़ा माफ़ कर सकते हैं। लेकिन इसके अमल के लिए प्रधानमंत्री और न्यायमंत्री की मंज़ूरी ज़रूरी होती है।
  • फ़्रांस के संविधान का आर्टिकल 16 राष्ट्रपति को असीमित शक्तियां अख़्तियार करने का अधिकार देता है। अगर देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर ख़तरा आए आर्टिकल 16 को लागू किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियां राष्ट्रपति में निहित हो जातीं है।

आर्टिकल 16 लागू करने से पहले राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री, नेशनल असेंबली और सेनेट के अध्यक्ष और संविधान परिषद से सलाह-मशविरा करना होता है। इसके बाद पूरे देश को बताना होता है। 30 और 60 दिनों में संविधान परिषद इसकी।

समीक्षा करता है। इस मुद्दे पर कि आर्टिकल 16 को बढ़ाने की ज़रूरत है या नहीं।

आधुनिक फ़्रांस के इतिहास में सिर्फ़ एक बार आर्टिकल 16 को लागू किया गया है। अप्रैल 1961 से सितंबर 1961 के बीच। दरअसल, अल्जीरियन वॉर के दौरान फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति चार्ल्ड डि गॉल का तख़्तापलट करने की साज़िश रची गई थी। तब आर्टिकल 16 लाया गया था।

  • राष्ट्रपति को सिर्फ़ असाधारण परिस्थितियों में ही महाभियोग के जरिए पद से हटाया जा सकता है। हालांकि, पद पर रहने के दौरान उनके ऊपर किसी तरह का मुकदमा नहीं चल सकता।

ये तो हुई राष्ट्रपति की शक्तियां। अब चुनाव का प्रोसेस समझते हैं।

कौन वोट डाल सकते हैं?

  • उम्र 18 साल से ऊपर हो।
  • वोटिंग रजिस्टर में नाम दर्ज़ हो।

किसी अदालत ने उसे अयोग्य ना ठहराया हो।

फ़्रांस में इवीएम का इस्तेमाल नहीं होता। पोलिंग स्टेशन पर वोटर को लिफ़ाफ़ा दिया जाता है। वोटर को अपनी पसंद के कैंडिडेट का नाम लिफ़ाफ़े के अंदर डालना होता है। फिर उसे बैलेट बॉक्स में रखना होता है। उसके बाद वोटर अपने नाम के आगे दस्तख़त करता है। वहां मौजूद अधिकारी कहता है – वोटेड और, इस तरह वोटर का वोट दर्ज़ कर लिया जाता है।

आमतौर पर वोटिंग सुबह आठ बजे से शुरू होकर शाम के सात बजे तक चलती है। बड़े शहरों में वोटिंग की डेडलाइन शाम के आठ बजे तक की होती है।

फ़्रांस में राष्ट्रपति पद का चुनाव दो चरणों में होता है।

पहले चरण में सारे योग्य उम्मीदवार खड़े होते हैं। सिस्टम ऐसा है कि पहले ही चरण में कोई भी कैंडिडेट चुनाव जीत सकता है। बशर्ते उसे 50 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिलें हों। अभी तक के इतिहास में ऐसा नहीं हुआ है।

अगर पहले चरण में कोई विजेता नहीं मिलता, तब दूसरे चरण का चुनाव कराया जाता है। इसमें पहले चरण के दो टॉप कैंडिडेट हिस्सा लेते हैं। वोटर इन दो कैंडिडेट्स के बीच चुनाव करते हैं। जिसे ज़्यादा वोट मिले, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। दोनों फेज़ की वोटिंग के बीच दो हफ़्ते का समय होता है।

इस बार के चुनाव में पहले चरण की वोटिंग 10 अप्रैल को हुई। इसमें पहले दो नंबर पर इमैनुएल मैक्रों और मरीन ला पेन का नाम आया। मैक्रों को लगभग 28 प्रतिशत, जबकि मरीन को 23 प्रतिशत वोट मिले। दूसरे चरण की वोटिंग 24 अप्रैल को कराई जाएगी।

अब सवाल ये आता है कि, दो राउंड में वोटिंग क्यों?

आधुनिक फ़्रांस और फ़्रांसीसी संविधान के जनक जनरल चार्ल्स डि गॉल राजनीतिक पार्टियों को संदेह की नज़र से देखा करते थे। वो चाहते थे कि राष्ट्रपति ऐसा हो जिसे किसी पार्टी का बैकअप नहीं चाहिए। गॉल दूसरे विश्वयुद्ध में फ़्रांस की जीत के नायक थे। विश्वयुद्ध के बाद उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया था। लेकिन फ़्रांस की दशा और दिशा देखकर वापस लौटे। राष्ट्रपति बने और फिर उन्होंने आधुनिक फ़्रांस की नींव रखी। फ़्रांस का मॉडर्न पोलिटिकल सिस्टम काफी हद तक गॉल के दिमाग की उपज है।

दो राउंड की वोटिंग के पीछे एक और धारणा चलती है। कहा जाता है कि पहले राउंड में वोटिंग दिल से होती है। जबकि

दूसरे राउंड में दिमाग से। पहले राउंड में उम्मीदवारों की संख्या ज़्यादा होती है। जैसे कि इस बार पहले राउंड में 12 उम्मीदवार खड़े थे। वोटर्स के पास चुनाव के मौके अधिक थे। लेकिन दूसरे राउंड में उनके पास दो ही उम्मीदवार होंगे। उन्हें उनमें से कम बुरे का चुनाव करना होगा।

चुनाव में खर्चा कितना किया जा सकता है?

फ़्रांस में खर्चे को लेकर मामला बड़ा गंभीर है। पहले राउंड तक उम्मीदवार अपने कैंपेन पर लगभग 160 करोड़ रुपये तक खर्च कर सकते हैं। अगर दूसरे राउंड में पहुंच गए तो 185 करोड़ रुपये तक।

अगर लिमिट पार किया तो अदालती कार्रवाई झेलनी पड़ती है।

2012 के राष्ट्रपति चुनाव में लिमिट से ज़्यादा पैसे के इस्तेमाल के लिए निकोलस सरकोज़ी को एक साल की सज़ा सुनाई गई थी। सरकोज़ी सज़ा के ख़िलाफ़ अपील कर रहे हैं।

निजी कंपनियां किसी भी तरह का डोनेशन नहीं दे सकतीं। जबकि आम लोग पूरे चुनाव में साढ़े चार लाख से अधिक का दान नहीं कर सकते।

अब ये जान लेते हैं कि इस बार के चुनाव में किसकी दावेदारी सबसे मज़बूत है?

जैसा कि हमने बताया, पहले राउंड की वोटिंग के बाद दो कैंडिडेट बचे हैं।

मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों। और, पिछले चुनाव में उनसे हारने वालीं मरीन ला पेन।

मैक्रों 44 बरस के हैं। राजनीति में आने से पहले इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर काम करते थे। उन्हें लिबरल माना जाता है। मैक्रों लेबर कोड, वेल्थ टैक्स और नेशनल रेलवे कंपनी के लिए सुधारवादी उपाय लेकर आए। हालांकि, उन्हीं के कार्यकाल में बड़ी संख्या में प्रोटेस्ट भी हुए हैं।

पहले राउंड की वोटिंग से पहले तक मैक्रों ने एक भी रैली नहीं की थी। लेकिन नतीजों के बाद उनका प्लान बदला है। मैक्रों सुदूर इलाकों के दौरे कर रहे हैं। उन इलाकों में जा रहे हैं, जहां उनको सबसे कम वोट मिले हैं।

मैक्रों की तुलना में मरीन दक्षिणपंथी हैं। उनकी उम्र 53 साल है। वो तीसरी बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहीं है। मरीन फ़्रांस में प्रवासियों की एंट्री के ख़िलाफ़ रहीं है। उन्हें नाज़ीवाद के समर्थक के तौर पर देखा जाता है। मरीन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति भी सहानुभूति रखतीं है।

2017 के राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे राउंड में मैक्रों को 66 फीसदी से अधिक वोट मिले थे। नतीजा लगभग एकतरफ़ा रहा था। लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा रहने वाला है। पहले राउंड में बाहर होने वाले उम्मीदवारों के कोर वोटर्स किस तरफ़ जाएंगे, नतीजा काफी हद तक इस पर निर्भर करेगा।

SOURCE-DANIK JAGRAN

PAPER-G.S.3

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