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‘उपभोक्ता सशक्तिकरण सप्ताह’

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उपभोक्ता मामले विभाग ने आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में प्रगतिशील भारत के 75 साल और यहां के लोगों, संस्कृति और उनकी उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का जश्न मनाने के लिए 14 मार्च, 2022 को “उपभोक्ता सशक्तिकरण सप्ताह” शुरू किया।

ग्राम पहुंच कार्यक्रमों के जरिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, भारतीय मानक चिह्नों, हॉलमार्क वाले आभूषण, सीआरएस चिह्न की विशेषताओं और डिब्बाबंद वस्तुओं पर देखे जाने वाले विवरण, उचित वजन और माप के उपयोग के बारे में जागरूकता पैदा की और उपभोक्ताओं को राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नंबर 14404 या 1800-11-4000 पर उपभोक्ता शिकायत दर्ज करने के बारे में जानकारी दी।

उपभोक्ता संरक्षण कानून, 2019

अधिनियम के प्रमुख प्रावधान

  • उपभोक्ता की परिभाषा
    उपभोक्ता वह व्यत्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या कमर्शियल उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके, टेलीशॉपिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग या सीधे खरीद के जरिये किया जाने वाला सभी तरह का ऑफलाइन या ऑनलाइन लेन-देन शामिल है।
    इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के  निम्नलिखित अधिकारों को स्पष्ट किया गया है-

    • ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना जो जीवन और संपत्ति के लिये जोखिमपूर्ण है।
    • वस्तुओं या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना।
    • प्रतिस्पर्द्धी मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना।
    • अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करना।
  • ई-कॉमर्स एवं अनुचित व्यापार अभ्यासों पर नियम
    सरकार इस अधिनियम के तहत उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 को अधिसूचित करेगी जो निम्नलिखित हैं-

    • ई-कॉमर्स संस्थाओं को उपभोक्ताओं को रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी, गांरटी, डिलीवरी, शिपमेंट और भुगतान के तरीके, शिकायत निवारण तंत्र, भुगतान संबंधी विधियों की सुरक्षा और उत्पत्ति के स्थान से संबंधित जानकारी देना आवश्यक है।
    • इन प्लेटफॉर्मों को 48 घंटे के अंदर किसी भी उपभोक्ता की शिकायत को सुनना होगा और शिकायत प्राप्त करने के एक महीने के भीतर शिकायत का निवारण करना होगा तथा इस हेतु शिकायत अधिकारी की भी नियुक्त करनी होगी।
    • उपभोक्ता संरक्षण (ई.कॉमर्स) नियम, 2020 अनिवार्य है, सलाहकारी नहीं।
    • ये नियम ई-कॉमर्स कंपनियों को अनुचित मूल्य के माध्यम से अनुचित लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किये जाने वाले वस्तु या सेवाओं की कीमत में हेरफेर करने से भी रोकते हैं।
  • भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माना
    केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिये मैन्युफैक्चरर या एन्डोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकता है। दोबारा अपराध की स्थिति में यह जुर्माना 50 लाख रुपए तक बढ़ सकता है। मैन्युफैक्चरर को दो वर्ष तक की कैद की सजा भी हो सकती है जो हर बार अपराध करने पर पाँच वर्ष तक बढ़ सकती है।
  • उत्पाद की ज़िम्मेदारी (Product Libility)
    उत्पाद की जिम्मेदारी का अर्थ है- उत्पाद के मैन्युफैक्चरर, सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की जिम्मेदारी। यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह किसी खराब वस्तु या सेवा के कारण होने वाले नुकसान या क्षति के लिये उपभोक्ता को मुआवज़ा दे। मुआवज़े का दावा करने के लिये उपभोक्ता को विधेयक में उल्लिखित खराबी या दोष से जुड़ी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा।
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) का गठन
    केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, संरक्षण और उन्हें लागू करने के लिये केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में CCPA की एक अन्वेषण शाखा (इन्वेस्टिगेशन विंग) होगी, जो ऐसे उल्लंघनों की जाँच या इन्वेस्टिगेशन कर सकती है।
  • उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन (CDRCs) का गठन
    जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों (Consumer Disputes Redressal Commissions- CDRCs) का गठन किया जाएगा। एक उपभोक्ता निम्नलिखित के संबंध में आयोग में शिकायत दर्ज करा सकता है:

    • अनुचित और प्रतिबंधित तरीके से व्यापार।
    • दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएँ।
    • अधिक कीमत वसूलना या गलत तरीके से कीमत वसूलना।
    • ऐसी वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिये पेश करना जो जीवन और सुरक्षा के लिये जोखिमपूर्ण हो सकती हैं।

अनुचित कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ शिकायत केवल राज्य और राष्ट्रीय CDRCs में फाइल की जा सकती है। जिला CDRC के आदेश के खिलाफ राज्य CDRC में सुनवाई की जाएगी। राज्य CDRC के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय CDRC में सुनवाई की जाएगी। अंतिम अपील का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा।

उपभोक्ता अधिकार

उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिये कानून द्वारा दिये गए अधिकार

  • सुरक्षा का अधिकार
  • सूचना का अधिकार
  • चयन का अधिकार
  • क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार

उपभोक्ताओं के शोषण का कारण :

  • सीमित सूचना
  • सीमित आपूर्ति
  • सीमित प्रतिस्पर्द्धा
  • साक्षरता की कमी

उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ

  • उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल, खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है।
  • कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पड़ता है। ये मुकदमे अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने में काफी समय लेते है।
  • अधिकांश खरीदारी के समय रसीद नहीं मिलने से प्रमाण जुटाना कठिन हो जाता है।
  • बाजार में अधिकांश खरीदारी छोटे फुटकर दुकानों से होती है।
  • बाजारों के कार्य करने के लिये नियमों और विनियमों का प्राय: पालन नहीं होता है।

भारत में प्रमाणीकरण चिन्ह

भारतीय संसद ने कई बार विभिन्न एजेंसियों द्वारा प्रबंधित उत्पाद प्रमाणीकरण की एक व्यापक प्रणाली को संचालित करने के लिए कई कानून बनाए हैं। इनमें से कुछ चिन्ह ऐसे उत्पादों के विनिर्माण के लिए या भारतीय बाजार के लिए अनिवार्य हैं, जबकि कुछ केवल परामर्श के तौर पर हैं। सभी औद्योगिक मानकीकरण और औद्योगिक उत्पाद प्रमाणीकारण भारत के राष्ट्रीय मानक संगठन ‘भारतीय मानक ब्यूरो’ द्वारा शासित होते हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों (जैसे कृषि उत्पादों) के लिए मानकों को अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा विकसित और प्रबंधित किया जाता है।

आईएसआई चिन्ह

आईएसआई (भारतीय मानक ब्यूरो का पिछला नाम), भारत में औद्योगिक उत्पादों के लिए एक प्रमाणीकरण चिह्न है। भारत में बेचे जाने वाले उत्पादों को प्रमाणित करने के लिए आईएसआई चिन्ह अनिवार्य है। आईएसआई संस्थान 6 जनवरी, 1947 को अस्तित्व में आया।

  • भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की भूमिका उपभोक्ता सुरक्षा के लिए उत्पादों की सर्वोत्तम गुणवत्ता बनाए रखना है।
  • भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 1986 में संसद द्वारा पारित किया गया था और बीआईएस 1 अप्रैल, 1987 को अस्तित्व में आया था।
  • यह उत्पादों की गुणवत्ता, सुरक्षा और विश्वसनीयता के लिए जाँच के बाद आईएसआई मार्क प्रमाणन को तीसरे पक्ष की गारंटी के रूप में व्यवसायों को आवंटित करता है।

FPO चिन्ह

भारत में बेचे जाने वाले सभी प्रसंस्कृत फलों के उत्पादों पर एफपीओ चिन्ह अनिवार्य है – जैसे कि डिब्बाबंद फल पेय, फ्रूट-जैम, स्क्वैश, अचार, निर्जलित फल उत्पाद।

  • यह चिन्ह गारंटी देता है कि उत्पाद एक स्वच्छ ‘खाद्य-सुरक्षित’ वातावरण में निर्मित किया गया है, इस प्रकार यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद FSSAI के दिशा-निर्देशों के अनुसार उपभोग के लिए सुरक्षित है।
  • यह मानक फल उत्पाद आदेश (Fruit Products Order) कानून द्वारा 1955 से लागू किया गया है, जिसके बाद इसे FPO नाम दिया गया है, लेकिन खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 के बाद ही इस चिन्ह को अनिवार्य किया गया है।
  • भारत में एक फल प्रसंस्करण उद्योग शुरू करने के लिए एक एफपीओ लाइसेंस आवश्यक है।

एगमार्क

AGMARK चिन्ह कृषि उत्पादों पर दिया जाता है, यह सुनिश्चित करता है कि वे भारत सरकार की एक एजेंसी, विपणन और निरीक्षण निदेशालय द्वारा अनुमोदित मानकों के अनुरूप हैं।

  • यह चिन्ह भारत में कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 (1986 में संशोधित) द्वारा कानूनी रूप से लागू किया गया है।
  • वर्तमान AGMARK मानकों में 227 विभिन्न वस्तुओं के लिए गुणवत्ता दिशा-निर्देश शामिल हैं, जिसमें विभिन्न प्रकार की दालें, अनाज, आवश्यक तेल, वनस्पति तेल, फल और सब्जियां और अर्ध-प्रसंस्कृत उत्पाद शामिल हैं।
  • एगमार्क प्रमाणन देश भर में स्थित पूरी तरह से राज्य के स्वामित्व वाली एगमार्क प्रयोगशालाओं के माध्यम से दिया जाता है, जो परीक्षण केंद्रों और प्रमाणीकरण केन्द्रों के रूप में कार्य करते हैं।

बीआईएस हॉलमार्क

यह सोने के साथ-साथ भारत में बिकने वाले चांदी के आभूषणों की एक हॉलमार्किंग प्रणाली है, जो धातु की शुद्धता को प्रमाणित करती है।

  • सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग की बीआईएस प्रणाली अप्रैल 2000 में शुरू हुई। बीआईएस ने दिसंबर 2005 में IS 2112 के तहत चांदी के आभूषणों के लिए हॉलमार्किंग की शुरुआत की।

इकोमार्क

यह प्रमाणीकरण चिह्न बीआईएस द्वारा पारिस्थितिक तंत्र पर कम से कम प्रभाव के उद्देश्य से मानकों के एक सेट के अनुरूप उत्पादों को जारी किया जाता है।

  • 1991 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य पर्यावरण के प्रभाव को कम करने के प्रति उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ाना है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S3

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