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गुरुदेव टैगोर

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुदेव टैगोर को उनकी जयंती पर नमन किया है।

एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा है :

“मैं गुरुदेव टैगोर को उनकी जयंती पर नमन करता हूं। अपने विचारों और सुकृत्यों से वे लाखों लोगों को प्रेरित करते रहते हैं। उन्होंने हमें अपने राष्ट्र, संस्कृति और लोकाचरण पर गर्व करना सिखाया। उन्होंने शिक्षा, विद्या-ग्रहण और सामाजिक अधिकारिता पर बल दिया। भारत के विषय में उनकी परिकल्पना को पूरा करने के लिये हम दृढ़-प्रतिज्ञ हैं।”

रबीन्द्रनाथ ठाकुर (बांग्ला : রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया। टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां गाँधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। टैगोर ने गाँधीजी को महात्मा का विशेषण दिया था। एक समय था जब शान्तिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस समय गाँधी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।

जीवन के अन्तिम समय ७ अगस्त १९४१ से कुछ समय पहले इलाज के लिए जब उन्हें शान्तिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हाँ पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा।

आमार सोनार बांङ्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं

  • १९१३ ई. में रविंद्र्नाथ ठाकुर को उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
  • १९१५ ई. में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया था। १९१९ ई. में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह उपाधि लौटा दी थी।

मुख्य लेख : रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

  • गीतांजलि
  • पूरबी प्रवाहिन
  • शिशु भोलानाथ
  • महुआ
  • वनवाणी
  • परिशेष
  • पुनश्च
  • वीथिका शेषलेखा
  • चोखेरबाली
  • कणिका
  • नैवेद्य मायेर खेला
  • क्षणिका
  • गीतिमाल्य
  • कथा ओ कहानी
  • गोमती

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1

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