केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने परियोजना विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में कई बदलाव किए हैं। ये प्रस्ताव और परिवर्तन दो कार्यालय ज्ञापनों और दो अधिसूचनाओं के रूप में आए जो 11 से 12 अप्रैल 2022 के बीच जारी किए गए।
मुख्य बिंदु
- 39 प्रकार की विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी (environmental clearance) अनिवार्य है। विकासात्मक परियोजनाओं में जल विद्युत, खनन, ताप विद्युत आदि शामिल हैं।
- 2006 में जारी पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment – EIA) अधिसूचना द्वारा मंजूरी प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार की गई है।
रणनीतिक राजमार्गों की छूट में प्रस्तावित बदलाव
11 अप्रैल 2022 को जारी अपनी मसौदा अधिसूचना में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने देश भर में राजमार्ग परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया से छूट देने का प्रस्ताव दिया था जो भारत के रणनीतिक हितों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि परियोजना के प्रस्तावकों को पर्यावरण की रक्षा के लिए मानकों के एक सेट का पालन करना होगा। इसके अलावा, इस अधिसूचना में प्रस्तावित किया गया है कि 15 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट जो मुख्य रूप से ठोस अपशिष्ट और बायोमास पर काम करते हैं और सहायक ईंधन के रूप में कोयले, पेट्रोल या लिग्नाइट का 15% तक उपयोग करते हैं, उन्हें मंजूरी के बिना उनकी क्षमता 25 मेगावाट तक बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए। यह मसौदा अधिसूचना उन मछुआरों के लिए बंदरगाहों के विस्तार को छूट देने पर भी विचार कर रही है जो कम प्रदूषण क्षमता वाली नौकाओं का उपयोग कर रहे हैं। यह हवाई अड्डों के भीतर टर्मिनल भवनों के विस्तार की भी अनुमति देता है, बशर्ते वे अधिक जमीन न लें। यह मसौदा अधिसूचना इसके प्रकाशन की तारीख से 60 दिनों की अवधि के लिए जनता की प्रतिक्रिया के लिए खोली गई है।
जलविद्युत, परमाणु परियोजनाओं के संबंध में प्रस्तावित परिवर्तन
12 अप्रैल 2022 को पनबिजली और परमाणु परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी की वैधता बढ़ाने के लिए एक और अधिसूचना जारी की गई थी, क्योंकि वन मंजूरी में देरी, स्थानीय मुद्दों, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास जैसे विभिन्न मुद्दों के कारण अक्सर उनके कार्यान्वयन में देरी होती है। ऐसी परियोजनाओं के लिए, पर्यावरण मंजूरी की वैधता आमतौर पर 10 वर्ष होती है। हालांकि, इस नई अधिसूचना के तहत नदी घाटी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी 13 साल और परमाणु परियोजनाओं के लिए 15 साल तक वैध होगी। खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत, खनन पट्टों को 50 वर्षों तक और खनन पट्टों के लिए पर्यावरण मंजूरी वैधता 30 वर्षों के लिए दी जाती है।
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन
- इतिहास : भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता सर्वप्रथम वर्ष 1976-77 में तब महसूस की गई, जब ‘योजना आयोग’ (वर्तमान नीति आयोग) ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को नदी-घाटी परियोजनाओं की पर्यावरणीय दृष्टि से जाँच करने को कहा।
- पहली पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना वर्ष 1994 में तत्कालीन पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (वर्तमान पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय) द्वारा प्रख्यापित की गई थी।
- इस अधिसूचना के माध्यम से किसी भी निर्माण गतिविधि के विस्तार या आधुनिकीकरण या अधिसूचना की अनुसूची 1 में सूचीबद्ध नई परियोजनाओं की स्थापना के लिये पर्यावरण मंज़ूरी (EC) को अनिवार्य बना दिया गया।
- कानून : भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन संबंधी प्रक्रिया को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 द्वारा वैधानिक रूप से समर्थन प्राप्त है, जिसमें आकलन की पद्धति और प्रक्रिया पर विभिन्न प्रावधान शामिल हैं।
पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना में 2006 का संशोधन
- परियोजना मंज़ूरी प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण : इसके तहत विकासात्मक परियोजनाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया :
- श्रेणी ‘A’ (राष्ट्रीय स्तरीय मूल्यांकन) : इन विकासात्मक परियोजनाओं का मूल्यांकन ‘प्रभाव आकलन एजेंसी’ और ‘विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ द्वारा किया जाता है।
- श्रेणी ‘B’ (राज्य स्तरीय मूल्यांकन) : इस श्रेणी की विकासात्मक परियोजनाओं को ‘राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण’ (SEIAA) और राज्य ‘स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति’ (SEAC) द्वारा मंज़ूरी प्रदान की जाती है।
- विभिन्न चरणों की शुरुआत : संशोधन के माध्यम से पर्यावरण प्रभाव आकलन में चार चरणों की शुरुआत की गई; स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, जन सुनवाई और मूल्यांकन।
- श्रेणी ‘A’ परियोजनाओं को अनिवार्य पर्यावरणीय मंज़ूरी की आवश्यकता होती है, अतः इस प्रकार उन्हें स्क्रीनिंग प्रक्रिया से नहीं गुज़रना पड़ता है।
- श्रेणी ‘B’ परियोजनाएँ एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया से गुज़रती हैं और उन्हें ‘B1’ (अनिवार्य रूप से पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता) और ‘B2’ (पर्यावरण प्रभाव आकलन की आवश्यकता नहीं) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- अनिवार्य मंज़ूरी वाली परियोजनाएँ : खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी अवसंरचना (सड़क, राजमार्ग, बंदरगाह और हवाई अड्डे) जैसी परियोजनाओं और बहुत छोटे इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित विभिन्न छोटे उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.3