प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज बसव जयंती के पावन अवसर पर जगद्गुरु बसवेश्वर को श्रद्धांजलि दी।
- विदित हो की वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री द्वारा लंदन की थेम्स नदी के तट पर बसवेश्वर की प्रतिमा का अनावरण किया गया था।
- बसव जयंती वीरशैव लिंगायत हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है। लिंगायत मत के प्रसारक भगवान बसव की जयंती को कर्नाटक में बड़े की धूम-धाम से मनाया जाता है। भगवान बसव को लिंगायत परंपरा के संस्थापक संत भी कहा जाता है।
परिचय
- 12वीं सदी के एक महान भारतीय दार्शनिक, राजनेता और समाज सुधारक बसवेश्वर का जन्म कर्नाटक में 1131 ई. में हुआ था।
- यह मुख्यतः कल्याणी चालुक्य/कलचुरी वंश के शासनकाल के दौरान हिंदू शैव समाज सुधारक थे। इन्होंने भक्ति आंदोलन में ‘लिंगायत संत’ के रूप में योगदान दिया।
- शिव को एकमात्र देवता के रूप में पूजने वाला लिंगायत समुदाय भारत में एक हिंदू संप्रदाय है। इसका विशेष प्रभाव दक्षिण भारत दिखाई पड़ता है।
- इन्हें ‘भक्ति भंडारी’ (शाब्दिक रूप से ‘भक्ति के कोषाध्यक्ष’) या बसवेश्वर (भगवान बसव) के रूप में भी जाना जाता है। उनकी मृत्यु 1167 ई. में हुई।
बसवन्नाका योगदान
- बसवन्ना की प्रमुख उपदेशक कविताएँ ‘वचन’ के रूप में संकलित हैं। इन्हीं के माध्यम से इन्होंने सामाजिक जागरूकता फैलाई।
- शत-स्थल-वचन, कला-ज्ञान-वचन, मंत्र-गोप्य, घटना चक्र-वचन और राज-योग-वचन आदि महत्त्वपूर्ण लिंगायत कार्य बसवन्ना द्वारा ही शामिल किये गए है।
- इनका प्रमुख आन्दोलन ‘शरण आंदोलन’ था, जिसमें यह गौतम बुद्ध की तरह आम जनमानस को एक तर्कसंगत सामाजिक व्यवस्था में आनंदपूर्वक जीने का तरीका सिखाते थे।
- शरण आंदोलन ने सभी जातियों के लोगों को आकर्षित किया और भक्ति आंदोलन के अधिकांश प्रकारों की तरह इसके तहत भी काफी महत्त्वपूर्ण साहित्य और वचनों की रचना की गई।
- इनकी रचनाओं ने कई ‘वीरशैव संतों’ के लिये आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त किया। बसवन्ना द्वारा स्थापित ‘अनुभव मंडप’ ने सामाजिक लोकतंत्र की नींव रखी।
- इनका मानना था कि मनुष्य अपने जन्म से नहीं, बल्कि समाज में अपने आचरण से महान बनता है। इन्होंने ‘कार्य’ को पूजा और उपासना के रूप में रेखांकित करते हुए शारीरिक श्रम की गरिमा बनाए रखने पर ज़ोर दिया।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1