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“भारतीय संस्कृति में मानवीय जिजीविषा” पुस्तक

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भारत के राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविन्द ने आज (मार्च 9, 2022) राष्ट्रपति भवन में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध संकलन “भारतीय संस्कृति में मानवीय जिजीविषा” की पहली प्रति आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मेमोरियल ट्रस्ट की अध्यक्ष एवं निबंध संकलन की संपादक डॉ अपर्णा द्विवेदी से प्राप्त की।

भारतीय परंपरा में आधुनिकता और आधुनिकता में परंपरा के अप्रतिम द्रष्टा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भाषा विज्ञान, समालोचना, सांस्कृतिक विमर्श, उपन्यास तथा निबंध के क्षेत्र में नए मार्ग प्रशस्त किए। संत कबीर को महान साहित्यिक कवि के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के सानिध्य में उनके योगदान ने हमारी साहित्यिक विरासत को समृद्ध किया है।

इस अवसर पर अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में राष्ट्रपति ने कबीर जैसे कवियों के कृतित्व के प्रसार में आचार्य द्विवेदी के योगदान को सराहा। साथ ही उन्होंने जन-संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी के प्रसार पर बल दिया।

हजारी प्रसाद द्विवेदी

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (Acharya Hazari Prasad Dwivedi) एक भारतीय साहियकार थे। जिनकी हिंदी के साथ-साथ बांग्ला और अंग्रेजी भाषाएं भी आती थी लेकिन उन्होंने साहित्यिक रचनाएं हिंदी भाषा में ही की। इनके आलोक पर्व नामक निबंध पर इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 को बलिया उत्तर प्रदेश में हुआ। इनका परिवार पंडित होने के कारण संस्कृत में निपुण था इनके पिताजी पंडित अनमोल द्विवेदी एक संस्कृत के विद्वान थे। इनका बचपन में नाम वैद्यनाथ द्विवेदी रखा गया था। साल 1927 में हजारी जी का विवाह भगवती देवी से हुआ।

साहित्यिक परिचय- द्विवेदी जी ने बाल्‍यकाल से ही श्री व्‍योमकेश शास्‍त्री से कविता लिखने की कला सीखनी आरम्‍भ कर दी थी। शान्ति-निकेतन पहँचकर इनकी प्रतिभा और अधिक निखरने लगी। कवीन्‍द्र रवीन्‍द्र का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा। बँगला साहित्‍य से भी ये बहुत प्रभावित थे। ये उच्‍चकोटि के शोधकर्त्‍ता, निबन्‍धकार, उपन्‍यासकार एवं आलोचक थे। सिद्ध साहित्‍य, जैन साहित्‍य एवं अपभ्रंश साहित्‍य को प्रकाश में लाकर तथा भक्ति-साहित्‍य पर उच्‍चस्‍तरीय समीक्षात्‍मक ग्रन्‍थें की रचना करनके इन्‍होंने हिन्‍दी साहित्‍य की महान् सेवा की। बैसे तो द्विवेदी जी ने अनेक विषयों पर उत्‍कृष्‍ट कोटि के निबन्‍धों एवं नवीन शैली पर आधरित उपन्‍यासों की रचना की है। पर विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्‍मक निबन्‍धों की रचना करने में ये अद्वितीय रहे। द्विवेदी जी ‘उत्‍तर प्रदेश ग्रन्‍थ अकादमी’ के अध्‍यक्ष और ‘हिन्‍दी संस्‍थान’ के उपाध्‍यक्ष भी रहे। कबीर पर उत्‍कृष्‍ट आलोचनात्‍मक कार्य करने के कारण इन्‍हें ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक प्राप्‍त हुआ। इसके साथ ही ‘सूर-साहित्‍य’ पर ‘इन्‍दौर साहित्‍य समिति’ ने ‘स्‍वर्ण पदक’ प्रदान किया।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1PRE

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