आवास और शहरी कार्य मंत्रालय 09 अप्रैल, 2022
“… स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 का लक्ष्य एक कचरा मुक्त शहर बनाना है; एक शहर, जो पूरी तरह से कचरा मुक्त हो,” – श्री नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री
भारत के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित गुजरात देश के प्रमुख राज्यों में से एक है। क्षेत्रफल के हिसाब से पांचवां सबसे बड़ा राज्य अपनी संस्कृति और विरासत के लिए प्रसिद्ध है।
देश के सबसे विकसित राज्यों में से एक होने के नाते, गुजरात के समक्ष पुराने अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियाँ हैं। राज्य हर दिन 79,000 शहरी नगरपालिका परिषदों से संग्रह किया गया लगभग 1.48 लाख टन कचरा उत्पन्न करता है।
महामारी के बीच अपशिष्ट प्रबंधन देश की एक बड़ी चुनौती है। शहरी भारत प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख मीट्रिक टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट पैदा करता है। स्वच्छ भारत मिशन – शहरी 2.0 के लक्ष्यों के तहत स्रोत पर अपशिष्ट का उचित पृथक्करण करना और शहरों में लैंडफिल के दोषपूर्ण निर्माण को समाप्त करना प्रमुख फोकस क्षेत्र हैं। 1 अक्टूबर, 2021 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉन्च किये गए राष्ट्रीय मिशन का उद्देश्य नए भारत की दृष्टि को आगे बढ़ाते हुए शहरी परिदृश्य को फिर से जीवंत बनाना है।
मिशन के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है, ‘लक्ष्य जीरो डंपसाइट’, जो शहर की 14,000 एकड़ से अधिक की भूमि पर जमा लगभग 16 करोड़ मीट्रिक टन (एमटी) पुराने अपशिष्ट डंपसाइट में सुधार करने से सम्बंधित है। पुराना अपशिष्ट न केवल आसपास के पारिस्थितिक संतुलन को अव्यवस्थित करता है, बल्कि शहरी परिदृश्य के समग्र सौंदर्यशास्त्र को भी खराब करता है।
स्वच्छ भारत मिशन – शहरी 2.0 के तहत, गुजरात में लैंडफिल से पुराने अपशिष्ट के उपचार के लिए 403.77 करोड़ रुपये की लागत वाली एक परियोजना तैयार की गई है।
गुजरात की प्रमुख क्षेत्र की भूमि को जोखिम वाले लैंडफिल से फिर से प्राप्त करने के लिए, आवास और शहरी कार्य मंत्रालय ने पुराने अपशिष्ट उपचार के लिए 144.85 करोड़ रुपये के केंद्रीय हिस्से की मंजूरी दी है। राज्य भर में कुल 148 यूएलबी ने 806 एकड़ से अधिक प्रमुख क्षेत्र की भूमि, जो 19 लाख मीट्रिक टन कचरे के नीचे दबी पडी है, को फिर से प्राप्त करने की मंजूरी के लिए प्रस्ताव दिया है। यूएलबी-राजकोट लगभग 6 लाख मीट्रिक टन पुराने अपशिष्ट का उपचार करने की कोशिश कर रहा है, जबकि सुरेंद्रनगर-वाधवन और पोरबंदर-छाया जैसे यूएलबी 9 लाख मीट्रिक टन से अधिक पुराने अपशिष्ट का एक साथ उपचार करके बड़े भूमि क्षेत्र को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। भावनगर और राजकोट के दो यूएलबी को सी और डी अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र के गठन के लिए वित्तीय सहायता मिली है, जो शहरों की सुंदरता को और बढ़ाएगी।
पुराने अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे अपरिहार्य हैं – इस बात पर विचार करते हुए, केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, ओडिशा, तमिलनाडु, दिल्ली आदि राज्यों में पुराने अपशिष्ट के उपचार के लिए लगभग 600 शहरों के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
अपशिष्ट प्रबंधन से तात्पर्य
- अपशिष्ट प्रबंधन से तात्पर्य उस संपूर्ण श्रृंखला से है जिसके अंतर्गत अपशिष्ट के निर्माण से लेकर उसके संग्रहण (Collection) व परिवहन (Transport) के साथ प्रसंस्करण (Processing) एवं निस्तारण (Disposal) तक की संपूर्ण प्रक्रिया को शामिल किया जाता है।
- उक्त प्रबंधन तंत्र के अंतर्गत विभिन्न चरणों यथा संग्रहण (Collection), परिवहन (Transport), उपचार (Treatment) और निगरानी (Monitoring) के साथ निस्तारण को भी शामिल किया जाता है।
- अपशिष्ट पदानुक्रम तीन- आर (3-r’s) का अनुसरण करता है- जो न्यूनीकरण (reduce), पुन: उपयोग (Reuse) और पुनर्चक्रण (Recycle) के रूप में संदर्भित किये जाते हैं। ये तीनों R अपशिष्ट प्रबंधन रणनीति को अपशिष्ट न्यूनीकरण के संदर्भ में उनकी वांछनीयता के अनुसार वर्गीकृत करते हैं।
अपशिष्ट प्रबंधन की प्रचलित विधियाँ
- लैंडफिल (Landfill) : यह वर्तमान में अपशिष्ट प्रबंधन हेतु प्रयोग होने वाली सबसे प्रचलित विधि है। इस विधि में शहरों के आसपास के खाली स्थानों में अपशिष्ट को एकत्रित किया जाता है। ऐसा करते हुए यह ध्यान रखा जाता है कि वह क्षेत्र जहाँ अपशिष्ट एकत्रित किया जा रहा है, मिट्टी से ढका हो ताकि संदूषण (Contamination) से बचाव किया जा सके। जानकारों का मानना है कि यदि इस विधि को सही ढंग से डिज़ाइन किया जाए तो यह किफायती साबित हो सकती है।
- इंसीनरेशन (Incineration) : इस विधि में अपशिष्ट को उच्च तापमान पर तब तक जलाया जाता है जब तक वह राख में न बदल जाए। अपशिष्ट प्रबंधन की विधि को व्यक्तिगत, नगरपालिका और संस्थानों के स्तर पर किया जा सकता है। इस विधि की सबसे अच्छी बात यह है कि यह अपशिष्ट की मात्रा को 20-30 प्रतिशत तक कम कर देता है। हालाँकि यह विधि अपेक्षाकृत काफी महँगी मानी जाती है।
- यरोलिसिस (Pyrolysis) : अपशिष्ट प्रबंधन की इस विधि के अंतर्गत ठोस अपशिष्ट को ऑक्सीजन की उपस्थिति के बिना रासायनिक रूप से विघटित किया जाता है।
अपशिष्ट प्रबंधन हेतु वैधानिक प्रयास
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 (Solid Waste Management Rules, 2016)
- नियमों के अनुसार, प्रदूषणकर्त्ता संपूर्ण अपशिष्ट को तीन प्रकारों यथा जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत करके इन्हें अलग-अलग डिब्बों में रखकर स्थानीय निकाय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता को ही देंगे।
- इसके साथ ही स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित प्रयोग शुल्क का भुगतान प्रदूषणकर्त्ता द्वारा किया जाएगा। ये शुल्क स्थानीय निकायों द्वारा निर्मित विनियमों से निर्धारित किये जाएंगे।
- इस नियम के अंतर्गत विभिन्न पक्षकारों यथा– भारत सरकार के विभिन मंत्रालयों जैसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, ज़िला मजिस्ट्रेट, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के कर्तव्यों का उल्लेख भी किया गया है।
- कंस्ट्रक्शन एवं डेमोलिशन अपशिष्ट प्रबंधन नियम
- ये नियम भवन निर्माण व उससे संबंधित सभी गतिविधियों पर लागू होते हैं, जहाँ से अपशिष्ट निर्माण होता है।
- इस नियम के अंतर्गत ये प्रावधान हैं कि जो अपशिष्ट उत्पादनकर्त्ता 20 टन प्रतिदिन व 300 टन प्रति महीने समान या उससे अधिक अपशिष्ट का निर्माण करेगा, उसे प्रत्येक निर्माण व तोड़-फोड़ के लिये स्थानीय निकाय से उपयुक्त स्वीकृति प्राप्त करनी होगी।
- ई-कचरा प्रबंधन नियम
- ई-कचरा प्रबंधन नियम (E-waste Management Rules), 2016 अक्तूबर 2016 से प्रभाव में आया है।
- ये नियम प्रत्येक निर्माता, उत्पादनकर्त्ता, उपभोक्ता, विक्रेता, अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता, उपचारकर्त्ता व उपयोग- कर्त्ताओं आदि सभी पर लागू होता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को औपचारिक रूप दिया जाएगा और श्रमिकों को ई-कचरे के प्रबंधन हेतु प्रशिक्षित किया जाएगा।
पाँच सूत्रीय कार्य-योजना
वर्तमान में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय मिशन के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने इसके लिये पाँच सूत्रीय कार्य-योजना प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है-
- वहनीय तकनीक : सर्वप्रथम नगरपालिकाओं को वहनीय तकनीक तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है जो कि भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल हो। वर्तमान में अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक अधिकांश प्रौद्योगिकी/उपकरण आयातित, महंगे हैं और अक्सर हमारी विभिन्न स्थानीय स्थितियों में अनुकूल नहीं होते हैं। भारत को अपनी जटिल शहरी संरचना के लिये सस्ती, विकेंद्रीकृत, अनुकूलित समाधान की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये जल निकायों को साफ़ करने के लिये रोबोट्स का प्रयोग किया जा सकता है।
- त्वरित खरीद प्रक्रिया : अपशिष्ट प्रबंधन में तकनीकी उन्नयन हेतु त्वरित खरीद प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है। लंबी प्रशासनिक प्रक्रिया के कारण प्रौद्योगिकी और उपकरणों की खरीद में अत्यधिक समय लग जाता है। बंबई नगरपालिका को उर्जा संयंत्र के अपशिष्ट प्रबंधन के लिये आवश्यक उपकरणों की खरीद करने में लगभग सात वर्ष का समय लग गया था।
- एकीकृत नीति : अपशिष्ट प्रबंधन हेतु एक एकीकृत नीति की आवश्यकता है। जिससे अपशिष्ट के विभिन्न प्रकारों का निस्तारण करने में सहूलियत होगी। इसके माध्यम से हजारों एकड़ भूमि लैंडफिल से मुक्त कराई जा सकती है।
- कुशल मानव संसाधन : अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्रों के संग्रह, संचालन, रखरखाव और अपशिष्ट प्रबंधन श्रृंखला को संचालित करने तथा बनाए रखने के लिये कुशल और प्रशिक्षित पेशेवर कर्मियों की नियुक्ति पर ध्यान देना होगा।
- शून्य अपशिष्ट समाज : भारत पारंपरिक रूप से एक ऐसा समाज है जहाँ वस्तुओं की बर्बादी बहुत कम है और सब कुछ पुन: उपयोग और पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है। हमें ऐसे समाज के विकास को बढ़ावा देने की ज़रुरत है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3