प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी अमेरिकी सरकार द्वारा अपने कुछ करीबी सहयोगियों को दिया जाने वाला दर्जा है।
मुख्य बिंदु
- अमेरिकी सरकार उन देशों को प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा देती है जो उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य नहीं हैं, लेकिन अमेरिका के सशस्त्र बलों के साथ रणनीतिक संबंध रखते हैं।
- प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा में स्वचालित रूप से अमेरिका के साथ कोई पारस्परिक रक्षा समझौता शामिल नहीं है।
इतिहास
- प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा 1987 में बनाया गया था।
- ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, इज़रायल, जापान और दक्षिण कोरिया पहले पांच देश थे जिन्हें प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा मिला।
प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी होने के लाभ
- रक्षा विभाग (DoD) के साथ सहकारी अनुसंधान में प्रवेश
- कुछ आतंकवाद विरोधी अभ्यासों में भागीदारी
- प्राथमिकता के आधार पर सैन्य अधिशेष की सुपुर्दगी
- विकास परियोजनाओं के लिए उपकरण और सामग्री के ऋण
- कुछ रक्षा उपकरण खरीदने के लिए अमेरिकी वित्त पोषण का उपयोग करने की अनुमति
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का शीघ्र निर्यात प्रसंस्करण
कोलंबिया के लिए प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा
10 मार्च को, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन ने घोषणा की कि वह कोलंबिया को एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी के रूप में नामित करना चाहते हैं। यह अमेरिका और कोलंबिया के बीच घनिष्ठ संबंधों को प्रदर्शित करता है।
‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (नाटो) :
- यह सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है।
- वर्तमान में इसमें 30 सदस्य देश शामिल हैं, जिसमें उत्तरी मैसेडोनिया वर्ष 2020 में गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य बन गया है।
नाटो की उत्पत्ति :
- वर्ष 1949 में जब नाटो का उदय हुआ तो उसके स्व-घोषित मिशन के तीन बिंदु थे:
- सोवियत विस्तारवाद को रोकना।
- महाद्वीप पर एक मज़बूत उत्तरी अमेरिकी उपस्थिति के माध्यम से यूरोप में राष्ट्रवादी सैन्यवाद के पुनरुद्धार के लिये मना करना।
- यूरोपीय राजनीतिक एकीकरण को प्रोत्साहित करना।
- स्पष्ट रूप से नाज़ी (हिटलर) पीड़ा और द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत नाटो की स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण कारक थी।
- हालाँकि नाटो का दावा है कि यह केवल ‘आंशिक सच’ है कि पूर्ववर्ती सोवियत संघ के खतरे का मुकाबला करने के लिये सैन्य सहयोग और सामूहिक रक्षा पर ज़ोर दिया गया था।
- उदाहरण के लिये संधि के अनुच्छेद-5 में घोषणा की गई है कि उनमें से एक या अधिक (नाटो सदस्यों) के खिलाफ किसी भी प्रकार के सशस्त्र हमले को उन सभी के खिलाफ हमला माना जाएगा” और इस तरह के हमले के बाद प्रत्येक सहयोगी ऐसी कार्रवाई करेगा जैसा वह आवश्यक समझता है, जिसमें सशस्त्र बल का उपयोग भी शामिल है।
- उस समय का व्यापक संदर्भ यह था कि वर्ष 1955 में एक समय जब शीत युद्ध गति प्राप्त कर रहा था, सोवियत संघ ने मध्य एवं पूर्वी यूरोप के समाजवादी गणराज्यों को वारसॉ संधि (1955) में शामिल किया, जिसमें अल्बानिया (जिसे वर्ष 1968 में वापस ले लिया गया) बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया आदि शामिल थे।
- संधि में अनिवार्य रूप से एक राजनीतिक-सैन्य गठबंधन को नाटो के प्रत्यक्ष रणनीतिक प्रतिकार (Strategic Counterweight ) के रूप में देखा गया।
- उस समय नाटो का ध्यान इस तथ्य पर केंद्रित था कि पूर्वी जर्मनी, जर्मनी के सोवियत कब्ज़े वाले क्षेत्र (Soviet Occupied-Territory of Germany) का हिस्सा था, जर्मनी का संघीय गणराज्य मई 1955 तक नाटो में शामिल हो गया और रूस को अपनी सीमा पर एक मज़बूत व पुनर्जीवित पश्चिम जर्मनी को लेकर चिंता होने लगी।
- एक एकीकृत, बहुपक्षीय, राजनीतिक और सैन्य गठबंधन के रूप में वारसॉ पैक्ट का उद्देश्य पूर्वी यूरोपीय राजधानियों को रूस के अधिक निकट लाना था जिन्हें शीत युद्ध के दौरान दशकों तक प्रभावी बनाया गया था।
- वास्तव में संधि ने सोवियत संघ को भी यूरोपीय उपग्रह के राज्यों में नागरिक विद्रोह और असंतोष को रोकने का विकल्प प्रदान किया जिसमें 1956 में हंगरी, 1968 में चेकोस्लोवाकिया और 1980-1981 में पोलैंड शामिल थे।
- 1980 के दशक के अंत तक जो कुछ भी उभरकर सामने आया उसने अधिकांश पूर्वी यूरोपीय संधि (वारसॉ पैक्ट) सहयोगियों में अपरिहार्य आर्थिक मंदी के भारी दबाव तथा सैन्य सहयोग की क्षमता के अंतर को संपूर्ण क्षेत्र में रणनीतिक रूप से कम कर दिया।
- इस प्रकार सितंबर 1990 में यह शायद ही आश्चर्य की बात थी कि पूर्वी जर्मनी पश्चिम जर्मनी के साथ फिर से जुड़ने के लिये हुई संधि से बाहर हो गया और जल्द ही चेकोस्लोवाकिया, हंगरी और पोलैंड सभी वारसॉ संधि से हट गए।
- वर्ष 1991 की शुरुआत में सोवियत संघ के विघटन के बाद संधि को आधिकारिक तौर पर भंग कर दिया गया था।
नाटो द्वारा किये गए विस्तार का दौर :
- जब सोवियत संघ, रूस और पूर्व सोवियत गणराज्यों में विभाजित हो गया तो नाटो, परिस्थितियों और आशावाद से उत्साहित होकर वैश्विक शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में करने की दिशा में आगे बढ़ा।
- अमेरिका के कार्यकाल के दौरान नाटो द्वारा पूर्व वारसॉ संधियों में शामिल देशों को अपने में शामिल करने के लिये बातचीत और विस्तार के क्रमिक दौर में शुरू किये गए।
- इस पुनर्मिलन के बाद जबकि जर्मनी ने नाटो की सदस्यता बरकरार रखी, चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड वर्ष 1999 में गठबंधन में शामिल हो गए लेकिन यह क्रम वही समाप्त नहीं हुआ। वर्ष 2004 मे बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया संधि में शामिल हुए।
- वर्ष 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया ने इस पर हस्ताक्षर किये, वर्ष 2017 में मोंटेनेग्रो ने तथा वर्ष 2020 में उत्तर मैसेडोनिया ने इस ब्लॉक में प्रवेश किया।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.1PRE