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सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS):

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सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS):

चर्चा में क्यों है?

  • रविवार (9 जून) शाम को शपथ ग्रहण समारोह के बाद नरेंद्र मोदी 3.0 मंत्रालय की रूपरेखा स्पष्ट होती जा रही है।
  • हालांकि विभागों का आवंटन जल्द ही पता चल जाएगा, लेकिन उम्मीद है कि भाजपा – जिसके पास लोकसभा में 240 सीटें हैं – अपने गठबंधन सहयोगियों को गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मामलों के चार बड़े विभाग नहीं सौंपेगी, ताकि वह सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) पर अपना नियंत्रण बनाए रख सके।

विभिन्न कैबिनेट समितियां क्या होती हैं?

  • एक बार जब केंद्रीय मंत्रिमंडल शपथ ले लेता है और मंत्रियों के विभागों का बंटवारा हो जाता है, तो अगला कदम हाई-प्रोफाइल कैबिनेट समितियों का गठन होगा।
  • प्रधानमंत्री कैबिनेट के चुने हुए सदस्यों के साथ इन समितियों का गठन करते हैं और इन समितियों को विशिष्ट कार्य सौंपते हैं। प्रधानमंत्री समितियों की संख्या में बदलाव कर सकते हैं और उन्हें सौंपे गए कार्यों में संशोधन कर सकते हैं।
  • प्रत्येक समिति की सदस्य संख्या दो से आठ तक होती है। आमतौर पर इन समितियों के सदस्य केवल कैबिनेट मंत्री ही होते हैं। हालांकि, गैर-कैबिनेट मंत्रियों का समितियों में सदस्य या विशेष आमंत्रित सदस्य होना असामान्य नहीं है।
  • यदि प्रधानमंत्री स्वयं ऐसी किसी समिति के सदस्य हैं, तो वे उस समिति के प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं।
  • ये समितियां उनके सामने लायी गयी मुद्दों का समाधान करती हैं और मंत्रिमंडल के विचारार्थ प्रस्ताव तैयार करती हैं तथा उन्हें सौंपे गए मामलों पर निर्णय लेती हैं। हालांकि मंत्रिमंडल को ऐसे निर्णयों की समीक्षा करने का अधिकार है।
  • पिछली मंत्रिमंडल में आठ कैबिनेट समितियां कार्यरत रही हैं – कैबिनेट की नियुक्ति समिति, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति, राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति, निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS), संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति, रोजगार और कौशल विकास पर कैबिनेट समिति, और आवास पर कैबिनेट समिति।
  • उल्लेखनीय है कि निवेश और रोजगार संबंधी समितियां 2019 में मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई नवीनताएं थीं। आवास संबंधी कैबिनेट समिति और संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति को छोड़कर सभी समितियों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति इतना महत्वपूर्ण क्यों है?

  • प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) में वित्त, रक्षा, गृह और विदेश मंत्री इसके सदस्य हैं। यह राष्ट्रीय सुरक्षा निकायों में बहस, चर्चा और नियुक्तियों के लिए जिम्मेदार है। महत्वपूर्ण नियुक्तियों, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों, भारत के रक्षा व्यय के संबंध में प्रमुख निर्णय CCS द्वारा लिए जाते हैं।
  • रक्षा संबंधी मुद्दों से निपटने के अलावा, CCS कानून और व्यवस्था तथा आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विदेश मामलों से संबंधित नीतिगत मामलों पर भी विचार-विमर्श करती है। यह परमाणु ऊर्जा से संबंधित मामलों पर भी विचार करती है।
  • CCS का इतना अधिक महत्व होने के कारण ही यह अपेक्षा की जा रही है कि भाजपा अपने सहयोगी दलों, की ओर से इन महत्वपूर्ण विभागों को छोड़ने के दबाव का विरोध करेगी।

क्या गठबंधन सहयोगी कभी CCS का हिस्सा रहे हैं?

  • सबसे उल्लेखनीय उदाहरण 1996 की एचडी देवगौड़ा सरकार थी, जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बनी थी। उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे देवगौड़ा ने 1 जून को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव रक्षा मंत्री बने, पी चिदंबरम, जिन्होंने उस साल की शुरुआत में तमिल मनीला कांग्रेस का गठन किया था, वित्त मंत्री बने और सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता गृह मंत्री बने।
  • 2001 में, जब वाजपेयी एनडीए सरकार के मुखिया थे, समता पार्टी के संस्थापक जॉर्ज फर्नांडिस को रक्षा मंत्री नियुक्त किया गया और वे तीन साल तक इस पद पर बने रहे। वास्तव में, भाजपा के नेतृत्व वाली दूसरी और तीसरी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री के रूप में, उन्होंने कारगिल युद्ध और पोखरण में परमाणु परीक्षणों की देखरेख की।
  • हालांकि, यूपीए सरकार में कांग्रेस ने CCS के सभी पद अपने पास रखे थे, और मोदी सरकार में भाजपा के पास ये सभी चार पद हैं।

 

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