Current Affairs – 10 December, 2021
रॉयल गोल्ड मेडल 2022
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रसिद्ध वास्तुकार श्री बालकृष्ण दोषी से बात की है और उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल 2022 से सम्मानित किए जाने पर बधाई दी है।
एक ट्वीट में, प्रधानमंत्री ने कहा;
“प्रसिद्ध वास्तुकार श्री बालकृष्ण दोषी जी से बात की और उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल 2022 से सम्मानित किये जाने पर बधाई दी। वास्तुकला की दुनिया में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा। अपनी रचनात्मकता, विशिष्टता और विविध प्रकृति के लिए उनके कार्यों की विश्व स्तर पर सराहना की जाती है।”
भारतीय वास्तुकार बालकृष्ण दोषी को ब्रिटेन का रॉयल गोल्ड मेडल 2022 के लिए चुना गया है। इस सम्मान के लिए चुने जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी। पीएम ने कहा कि वास्तुकला की दुनिया में दोषी का योगदान यादगार है।
रॉयल गोल्ड मेडल वास्तुकला के लिए दुनिया के सर्वोच्च सम्मानों में से एक है। रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (आरआईबीए) ने घोषणा की। मोदी ने ट्वीट किया, ‘प्रतिष्ठित वास्तुकार बालकृष्ण दोषी जी से बात की और उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल 2022 से सम्मानित किए जाने पर बधाई दी।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि वास्तुकला की दुनिया में उनका योगदान ऐतिहासिक है। उनके कार्यों को उनकी रचनात्मकता, विशिष्टता और विविध प्रकृति के लिए विश्व स्तर पर सराहा जाता है।
94 साल के दोषी का वास्तुकला क्षेत्र में 70 साल का करियर
आरआईबीए ने गुरुवार को दोषी को सम्मानित किए जाने का एलान करते हुए कहा कि 70 साल के करियर और 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के साथ, 94 वर्षीय दोषी ने अपने अभ्यास और अपने शिक्षण दोनों के माध्यम से भारत और उसके क्षेत्र के क्षेत्रों में वास्तुकला की दिशा को प्रभावित किया है। रॉयल गोल्ड मेडल को व्यक्तिगत रूप से महारानी एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा स्वीकृत किया जाता है। इसे ऐसे व्यक्ति या लोगों के समूह को दिया जाता है, जिनका वास्तुकला के विकास में महत्वपूर्ण योगदान हो।
जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में पढ़े
1927 में पुणे में फर्नीचर निर्माताओं के एक बड़े परिवार में जन्मे बालकृष्ण दोषी ने जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में अध्ययन किया था। उन्होंने पेरिस में वरिष्ठ डिजाइनर (1951-54) के रूप में जेले कॉर्बूसियर के साथ चार साल तक काम किया था।
आईआईएम अहमदाबाद के निर्माण में लुई कान के सहयोगी रहे
दोषी ने वास्तुविद लुई कान के साथ भारतीय प्रबंधन संस्थान (iim), अहमदाबाद के निर्माण के लिए एक सहयोगी के रूप में काम किया। उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक कान के साथ सहयोग किया।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1 PRE
श्री सी. राजगोपालाचारी की जयंती
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री सी. राजगोपालाचारी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (दिसम्बर १०, १८७८ – दिसम्बर २५, १९७२) भारत के वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे राजाजी नाम से भी जाने जाते हैं। वे स्वतन्त्र भारत के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। १० अप्रैल १९५२ से १३ अप्रैल १९५४ तक वे मद्रास प्रान्त के मुख्यमंत्री रहे। वे दक्षिण भारत के कांग्रेस के प्रमुख नेता थे, किन्तु बाद में वे कांग्रेस के प्रखर विरोधी बन गए तथा स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की। वे गांधीजी के समधी थे। (राजाजी की पुत्री लक्ष्मी का विवाह गांधीजी के सबसे छोटे पुत्र देवदास गांधी से हुआ था।) उन्होंने दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत कार्य किया।
भारतीय राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजा जी को 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। भारत रत्न पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे। वह विद्वान और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी थे। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। वह तमिल और अंग्रेज़ी के बहुत अच्छे लेखक थे। ‘गीता’ और ‘उपनिषदों’ पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं। इनके द्वारा रचित चक्रवर्ति तिरुमगन के लिये उन्हें सन् १९५८ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया।[1] यह गद्य में रामायण कथा है। उनकी लिखी अनेक कहानियाँ उच्च स्तरीय थीं। ‘स्वराज्य’ नामक पत्र उनके लेख निरंतर प्रकाशित होते रहते थे। इसके अतिरिक्त नशाबंदी और स्वदेशी वस्तुओं विशेषकर खादी के प्रचार प्रसार में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
ग्लोबल मिथेन इनिशिएटिव स्टीयरिंग लीडरशिप
ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव (जीएमआई) की स्टीयरिंग लीडरशिप बैठक को वर्चुअल तौर पर आयोजित किया गया। इस ग्लोबल इनिशिएटिव के वाइस चेयरमैन के तौर पर कोयला मंत्रालय के अपर सचिव श्री वी.के. तिवारी ने प्रतिभागियों को मीथेन के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में भारत द्वारा किए जा रहे उपायों के बारे में बताया। मीथेन का उत्सर्जन एक बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि यह कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25-28 गुना हानिकारक प्रभाव वाली ग्रीनहाउस गैस है।
ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव (जीएमआई) एक स्वैच्छिक सरकारी तथा एक अनौपचारिक अंतरराष्ट्रीय साझेदारी है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा सहित 45 देशों के सदस्य हैं। विकसित तथा कमजोर अर्थव्यवस्थाओं वाले विकासशील देशों के बीच साझेदारी के माध्यम से एंथ्रोपोजेनिक मीथेन उत्सर्जन में वैश्विक कमी लाने के उद्देश्य से इस फोरम का गठन किया गया है।
फोरम को 2004 में गठित किया गया था। इसकी स्थापना के बाद से भारत इस फोरम का सदस्य है। भारत ने संयुक्त राज्य अमरीका के साथ स्टीयरिंग लीडरशिप में पहली बार वाइस-चेयरमैन का कार्य अपने हाथ में लिया है। स्टीयरिंग लीडरशिप की अध्यक्षता का जिम्मा कनाडा है।
निकट भविष्य में अगले दौर की बैठक के आयोजन सहित कई निर्णय लिए गए। कनाडा तथा अमरीका दोनों ने मीथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने और उसका दोहन करने में भारत द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1PRE
‘इंडियन फुटवियर साइजिंग सिस्टम’
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने चेन्नई स्थित केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (सीएलआरआई) के परामर्श से अब तक के पहले ‘इंडियन फुटवियर साइजिंग सिस्टम’ के विकास की पहल की है जिससे कि फुटवियर के लिए स्थानीय जनसंख्या की आवश्यकता को कवर करने के लिए जरूरी फुटवियर आकार के रेंज की पहचान की जा सके और अच्छी फिटिंग वाले तथा स्वस्थ फुटवियर उपलब्ध कराने के लिए टिकाऊ जूते बनाने के अनुपातों तथा नियमों को परिभाषित की जा सके।
फुटवियर के आकार और फिटिंग के लिए वर्तमान भारतीय मानक आईएस 1638:1969 विनिर्देश यूरोपीय तथा फ्रांसिसी मानकों पर आधारित है। इस मानक के लिए भारतीय पांवों की जनसांख्यिकीय, मानवशास्त्रीय विशेषताओं को समायोजित करने के लिए संशोधन करने की आवश्यकता है जिसका परिणाम एक अधिक आरामदायक और व्यक्ति विशेष के लिए स्वस्थ फुटवियर के रूप में सामने आ सके।
चूंकि बच्चों, किशोरों और वयस्कों (पुरुष तथा महिलाओें दोनों ही) के लिए शारीरिक रचना और फुटवियर की कार्यात्मक आवश्यकताएं जनसांख्यिकी पर निर्भर होती हैं, इसलिए भारतीय आबादी के लिए विशिष्ट रूप से सही फुटवियर का डिजाइन एवं निर्माण करना आवश्यक है।
इस परियोजना में एंथारोपोमीट्रिक सर्वे, सांख्यिकीय विश्लेषण तथा भारतीय फुट साइजिंग प्रणाली का विकास शामिल है तथा इसमें फुट बायोमैकेनिक्स और चाल अध्ययन, सामग्रियों की पहचान, अंतिम फैब्रिकेशन, डिजाइन पैटर्न तथा आराम मानकों का विकास, पहनने का परीक्षण, विनिर्देश का सृजन सम्मिलित है।
विभाग ने इस परियोजना को पूरी करने के लिए 10.80 करोड़ रुपये के व्यय को मंजूरी दी है।
यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत को साकार करने के लिए आवश्यक प्रमुख उत्पादों के स्वदेशीकरण की दिशा में क्षेत्र, जेंडर, उम्र, स्वास्थ्य स्थिति के कारण सभी भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए सटीक माप करने के लिए प्रेरित करेगी।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1PRE
सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में 9,802 करोड़ रुपये की सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना (Saryu Canal National Project) का उद्घाटन करेंगे।
सरयू नहर परियोजना (Saryu Canal Project)
- सरयू नहर परियोजना उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी है।
- इससे उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा, बस्ती, श्रावस्ती, बलरामपुर, संत कबीर नगर, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर और महाराजगंज के 25-30 लाख किसानों को लाभ होगा।
- इस नहर से 04 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की सुविधा होगी, साथ ही क्षेत्र के कई बाढ़ संभावित क्षेत्रों में बाढ़ के खतरे को कम किया जा सकेगा।
- इस परियोजना के तहत सिंचित क्षेत्र 04 लाख हेक्टेयर होगा।
परियोजना के तहत जुड़ी नदियाँ
इस परियोजना के तहत पांच नदियों घाघरा, राप्ती, बाणगंगा, सरयू और रोहिणी को जोड़ा गया है।
नहर की लंबाई
नहर की कुल लंबाई 6,600 किलोमीटर है और इन्हें 318 किलोमीटर लंबी मुख्य नहर से जोड़ा गया है।
परियोजना का इतिहास
- 68 करोड़ रुपये की लागत से दो जिलों में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए 1978 में इस परियोजना को छोटे पैमाने पर शुरू किया गया था।
- वर्ष 1982 में इसका विस्तार नौ जिलों में किया गया और इसका नाम बदलकर सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना कर दिया गया।
- इस परियोजना की लागत 2021 तक बढ़कर 9,802 करोड़ रुपये हो गई।
सरयू नदी (Saryu River)
सरयू नदी उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में नंदा कोट पर्वत के दक्षिण में एक पहाड़ी से निकलती है। यह कपकोट, सेराघंट और बागेश्वर कस्बों से होकर बहती है और अंत में पंचेश्वर में शारदा नदी में गिरती है, जो भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। इसके बाद यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में घाघरा नदी में मिल जाती है। लोअर घाघरा को सरयू नदी के नाम से भी जाना जाता है, खासकर जब यह अयोध्या शहर से होकर बहती है। रामायण में इस नदी का कई बार उल्लेख किया गया है।
SOURCE-DANIK JAGRAN
PAPER-G.S.1
ओलाफ शोल्ज
8 दिसंबर, 2021 को जर्मनी की संसद ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के नौवें चांसलर के रूप में।
मुख्य बिंदु
- एंजेला मर्केल के 16 साल के कार्यकाल के बाद जर्मनी के लिए इसने एक नए युग की शुरुआत की है।
- ओलाफ शोल्ज़ की सरकार ने जर्मनी के आधुनिकीकरण और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने की उच्च आशाओं के साथ कार्यभार संभाला है।
- स्कोल्ज़ को चांसलर के पद के लिए सांसदों द्वारा 395-303 से वोट दिया गया था।
- ओलाफ के तीन दलीय गठबंधन ने संसद के 736 सीटों वाले निचले सदन में 416 सीटें जीती हैं।
जर्मनी का चांसलर
जर्मनी के चांसलर को आधिकारिक तौर पर जर्मनी के संघीय गणराज्य का संघीय चांसलर कहा जाता है। वह जर्मनी की संघीय सरकार का प्रमुख होता है। वह युद्ध के दौरान जर्मन सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ के रूप में भी कार्य करता है। वह संघीय मंत्रिमंडल का मुख्य कार्यकारी होता है और इसकी कार्यकारी शाखा का प्रमुख होता है।
चांसलर का चुनाव कैसे होता है?
जर्मन संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार संघीय राष्ट्रपति का चयन बुंडेस्टाग (Bundestag) द्वारा चांसलर का चुनाव किया जाता है।
ओलाफ शोल्ज़ (Olaf Scholz)
एक जर्मन राजनेता हैं जो 8 दिसंबर, 2021 से जर्मनी के चांसलर के रूप में कार्यरत हैं। वह सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) के सदस्य हैं। उन्होंने इससे पहले एंजेला मर्केल के कुलपति के साथ-साथ 2018 से 2021 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने 2011 से 2018 के बीच हैम्बर्ग के प्रथम मेयर का पद भी संभाला।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1 PRE
ज्ञानपीठ पुरस्कार 2021
56वें और 57वें ज्ञानपीठ पुरस्कारों की घोषणा हाल ही में क्रमशः वर्ष 2020 और 2021 के लिए की गई।
मुख्य बिंदु
- असमिया कवि नीलमणि फूकान जूनियर (Nilmani Phookan Jr.) और कोंकणी उपन्यासकार दामोदर मौजो (Damodar Mauzo) क्रमशः 56वें और 57वें पुरस्कार के विजेता के रूप में उभरे हैं। उन्हें भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए चुना गया था।
- ज्ञानपीठ पुरस्कार (Jnanpith Award) भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जो साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए लेखकों को दिया जाता है।
- फूकन और मौजो दोनों ही साहित्य अकादमी पुरस्कार के विजेता भी हैं। वे संबंधित क्षेत्रीय साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं।
- दामोदर मौजो गोवा के मजोरदा से हैं जबकि नीलमणि फूकन असम के गुवाहाटी से हैं।
असमिया कवि नीलमणि फूकान
असमिया कवि नीलमणि फूकान को साहित्य के प्रति उनकी आजीवन भक्ति का सम्मान करते हुए सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिला।
कोंकणी लेखक दामोदर मौजो
दामोदर मौजो 77 वर्षीय कोंकणी लेखक हैं। उन्हें 57वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें सुनामी साइमन (Tsunami Simon) और कारमेलिन (Karmelin) जैसे उपन्यासों के साथ-साथ गोवा की अन्य कहानियों के लिए गया है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार (Jnanpith Award)
ज्ञानपीठ पुरस्कार सबसे पुराना और सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है। साहित्य में योगदान के लिए एक लेखक को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता है। यह पुरस्कार 1961 में स्थापित किया गया था। यह केवल उन भारतीय लेखकों को दिया जाता है जो अंग्रेजी के अलावा भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में उल्लिखित भारतीय भाषाओं में लिखते हैं।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1PRE
मानवाधिकार दिवस
प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 को मानवाधिकार पर सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया था। मानवाधिकार दिवस की आधिकारिक स्थापना 4 दिसम्बर, 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की 317वीं प्लेनरी बैठक में की गयी थी।
थीम: Reducing inequalities and advancing human rights
भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 12 अक्टूबर, 1993 को 28 सितम्बर, 1993 के मानव अधिकार सुरक्षा अध्यादेश के तहत की गयी थी। इसे मानव अधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1993 के द्वारा वैधानिक आधार प्रदान किया गया। यह आयोग जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा सम्मान इत्यादि मूलभूत मानवीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए कार्य करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस एच. एल. दत्तु हैं, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महासचिव अम्बुज शर्मा हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य
- सरकार द्वारा किये गये मानवाधिकारों के उल्लंघन की पड़ताल करना।
- मानवाधिकार से सम्बंधित कानूनी कार्यवाही में हस्तक्षेप करना।
- पीड़ितों तथा उनके परिवारों को राहत प्रदान करने के लिए अनुशंसा करना।
- संविधान द्वारा प्रदान संरक्षण की समीक्षा करना।
- मानवाधिकार से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियों इत्यादि का अध्ययन करना तथा उसके आधार पर प्रभावी क्रियान्वयन के लिए अनुशंसा करना।
- मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देना।
- समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार शिक्षा का प्रसार करना।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.2