Current Affairs – 19 August, 2021
माउंट मणिरंग का शिखर सम्मेलन
स्वतंत्रता के 75 साल के प्रतीक ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के लिए स्मरणीय गतिविधियों के अंतर्गत भारतीय वायु सेना ने दिनांक 01 अगस्त 21 को वायु सेना स्टेशन, नई दिल्ली से एक महिला त्रि-सेवा पर्वतारोहण दल को झंडी दिखाकर रवाना किया।
टीम ने दिनांक 15 अगस्त 2021 को माउंट मणिरंग (21,625 फीट) पर सफलतापूर्वक पर्वतारोहण किया। माउंट मणिरंग हिमाचल प्रदेश की सबसे ऊंचीचोटियों में से एक है जो किन्नौर और स्पीति जिलों की सीमा पर स्थित है। चोटी के करीब मणिरंग दर्रा है, जो वाहन चलाने योग्य सड़क बनने से पहले स्पीति और किन्नौर के बीच शुरुआती व्यापार मार्गों में से एक था।
15 सदस्यीय अभियान दल का नेतृत्व भारतीय वायु सेना की विंगकमांडर भावना मेहरा ने किया। टीम के अन्य सदस्य जिन्होंने शिखर पर चढ़कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, वे हैं विंग कमांडर भावना मेहरा, लेफ्टिनेंट कर्नल गीतांजलि भट्ट, विंग कमांडर निरुपमा पांडे, विंग कमांडर व्योमिका सिंह, विंग कमांडर ललिता मिश्रा, मेजर उषा कुमारी, मेजर सौम्या शुक्ला, मेजर वीनू मोर, मेजर रचना हुड्डा, लेफ्टिनेंट कमांडर सिनो विल्सन और फ्लाइटलेफ्टिनेंट कोमल पाहुजा।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
TOPIC-GEOGRAPHY
उन्नत चैफ प्रौद्योगिकी
यह तकनीक दुश्मन के रडार से पैदा खतरों से लड़ाकू विमानों की रक्षा करेगी
- बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए उद्योग को प्रदान की गई
- भारतीय वायु सेना ने सफल उपयोगकर्ता परीक्षणों के पूरा होने के बाद शामिल करने की प्रक्रिया शुरू की
- रक्षा मंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में डीआरडीओ का एक और कदम बताया
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने दुश्मन के रडार खतरों से निपटने के लिए भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमानों की सुरक्षा के लिए एक उन्नत चैफ प्रौद्योगिकी विकसित की है। जोधपुर स्थित डीआरडीओ की रक्षा प्रयोगशाला ने वायुसेना की गुणात्मक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए, डीआरडीओ की पुणे स्थित उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (एचईएमआरएल) के सहयोग से उन्नत चैफ सामग्री और चैफ कार्ट्रिज-118/I से इसको विकसित किया है। भारतीय वायु सेना ने सफल उपयोगकर्ता परीक्षणों के पूरा होने के बाद इस तकनीक को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
आज के इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में आधुनिक रडार खतरों में प्रगति के कारण लड़ाकू विमानों की उत्तरजीविता प्रमुख चिंता का विषय है। विमान की उत्तरजीविता सुनिश्चित करने के लिए, काउंटर मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम (सीएमडीएस) का उपयोग किया जाता है जो इंफ्रा-रेड और रडार खतरों के खिलाफ निष्क्रिय जैमिंग प्रदान करता है। चैफ एक महत्वपूर्ण रक्षा तकनीक है जिसका उपयोग लड़ाकू विमानों को शत्रुतापूर्ण रडार खतरों से बचाने के लिए किया जाता है। इस तकनीक का महत्व इस तथ्य में निहित है कि हवा में तैनात बहुत कम मात्रा में चैफ सामग्री लड़ाकू विमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दुश्मन की मिसाइलों को अपने मार्ग से भटकाने के लिए प्रलोभन का काम करती है। भारतीय वायुसेना की वार्षिक रोलिंग आवश्यकता को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में उत्पादन करने हेतु उद्योग को प्रौद्योगिकी प्रदान की गई है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (अंग्रेज़ी : DRDO, डिफेंस रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट ऑर्गैनाइज़ेशन) भारत की रक्षा से जुड़े अनुसंधान कार्यों के लिये देश की अग्रणी संस्था है। यह संगठन भारतीय रक्षा मंत्रालय की एक आनुषांगिक ईकाई के रूप में काम करता है। इस संस्थान की स्थापना १९५८ में भारतीय थल सेना एवं रक्षा विज्ञान संस्थान के तकनीकी विभाग के रूप में की गयी थी। वर्तमान में संस्थान की अपनी इक्यावन प्रयोगशालाएँ हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण इत्यादि के क्षेत्र में अनुसंधान में कार्यरत हैं। पाँच हजार से अधिक वैज्ञानिक और पच्चीस हजार से भी अधिक तकनीकी कर्मचारी इस संस्था के संसाधन हैं। यहां राडार, प्रक्षेपास्त्र इत्यादि से संबंधित कई बड़ी परियोजनाएँ चल रही हैं।
विश्व-स्तरीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीय आधार स्थापित कर भारत को समृद्ध बनाना और अपनी रक्षा सेना को अंतर्राष्ट्रीय रूप से प्रतिस्पर्धी प्रणालियों और समाधानों से लैस कर उन्हें निर्णायक लाभ प्रदान करना।
इसके अलावा डीआरडीओ के ध्येय इस प्रकार से हैं :
अपनी रक्षा सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सेंसर, शस्त्र प्रणालियां, मंच और सहयोगी उपकरण अभिकल्पित करना, विकसित करना और उत्पादन के लिए तैयार करना।
संग्रामी प्रभावकारिता अधिकतम करने और सैनिकों की बेहतरी को बढ़ावा देने के लिए रक्षा सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
अवरचना तथा गुणवत्तापूर्ण प्रतिबद्ध श्रमशक्ति विकसित करना और मजबूत प्रौद्योगिकी आधार निर्मित करना।
संगठन ने अनेक उन्नत रक्षा प्रणालियां विकसित कर चुके डीआरडीओ ने रक्षा प्रौद्योगिकियों के एक व्यापक वर्णक्रम में विशेषज्ञता अर्जित कर ली है। संगठन की आधारभूत योग्यता वाले क्षेत्रों में शामिल हैं : संश्लिष्ट सेंसरों, शस्त्र प्रणालियों तथा मंचों का प्रणाली अभिकल्प एवं एकीकरण; संश्लिष्ट उच्च-स्तरीय सॉफ्टवेयर पैकेजों का विकास; कार्यात्मक सामग्रियों का विकास; परीक्षण एवं मूल्यांकन; प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं समावेशन। इसके अतिरिक्त, रक्षा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता आश्वासन एवं सुरक्षा, परियोजना एवं प्रौद्योगिकी प्रबंधन के लिए प्रासंगिक क्षेत्रों में मौलिक/प्रयुक्त अनुसंधान के लिए विशेषज्ञता तथा अवरचना भी निर्मित की गई है। यह विभिन्न प्रकार की आधूनिक सेवाओं को प्रदान करता है तथा पोजीशनिंग सिस्टम (GPS) प्रदान करता है।
संगठन
इसका मुख्यालय दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के निकट ही, सेना भवन के सामने डी आर डी ओ भवन में स्थित है। इसकी एक प्रयोगशाला महात्मा गाँधी मार्ग पर उत्तर पश्चिमी दिल्ली में स्थित है। संगठन का नेतृत्व रक्षा मंत्री, भारत सरकार, जो रक्षा मंत्रालय में सामान्य अनुसंधान और विकास के निदेशक तथा रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (डीडीआर व डी) के सचिव भी हैं, के वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा किया जाता है। मुख्यालय स्तर पर, उनकी सहायता अनुसंधान एवं विकास (सीसीआर व डी), प्रौद्योगिकी और निगमित निदेशालय के मुख्य नियंत्र द्वारा की जाती है। निगमित निदेशालय के अधिकारी, वित्तीय और संपदा प्रशिक्षण, नागरिक कार्य और संपदा, राज भाषा, विजिलेंस, इत्यादि के क्षेत्र/कार्य को तय करते हैं तथा प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला निदेशालय तथा मुख्य नियंत्रक तथा वैज्ञानिक सलाहकार से आरएम के बीच एक इंटरफेस के रूप में काम करते हैं। अतिरिक्त वित्तीय सलाहकार संगठन के उद्देश्यों के मुताबिक धनराशि की उचित उपयोगिता पर संगठन को परामर्श देता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-SCIENCE AND TEC.
अखिल भारत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक – जुलाई, 2021
मुख्य बिंदु :
- कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिए अखिल भारत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार 1986-87 = 100) माह जुलाई, 2021 में 4 अंक तथा 5 अंक बढ़ कर क्रमशः 1061 अंकों (एक हजार इकसठ) तथा 1070 अंकों (एक हजार सत्तर) के स्तर पर रहे।
- सूचकांक में इस वृद्धि का मुख्य योगदान खाद्य एवं विविध समूह का क्रमशः 78 और 1.79 अंक तथा 1.30 और 1.31 अंक रहा। यह वृद्धि मुख्यतः सब्जियां एवं फल, प्याज, बकरे का मांस, ताज़ा मुर्गी, हरी मिर्च, सरसों का तेल, दवाईयों, नाई-प्रभार, बस-किराया, धुलाई-साबुन इत्यादि की कीमतों में वृद्धि के कारण रही।
- कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति की यथार्थ दर माह जुलाई, 2021 में 92 % और 4.09% रही जो कि जून, 2021 में 3.83 % और 4.00% थी।
- खाद्य मुद्रास्फीति की यथार्थ दर माह जुलाई, 2021 में 66% और 2.74% रही जो कि जून, 2021 में 2.67% और 2.86% थी।
राज्यों में
(ए) कृषि और ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की संख्याओँ में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी पंजाब राज्य में दर्ज की गई है। (क्रमशः 13 अंक और 14 अंक)
(बी) कृषि और ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की संख्याओं में सबसे ज्यादा गिरावट तमिलनाडु राज्य में दर्ज की गई है। (क्रमशः 07 अंक और 06 अंक)
कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिए अखिल भारत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (आधार 1986-87 = 100) माह जुलाई, 2021 में 4 अंक तथा 5 अंक बढ़ कर क्रमशः 1061 अंकों (एक हजार इकसठ) तथा 1070 अंकों (एक हजार सत्तर) के स्तर पर रहे। सूचकांक में इस वृद्धि का मुख्य योगदान खाद्य एवं विविध समूह का क्रमशः 1.78 और 1.79 अंक तथा 1.30 और 1.31 अंक रहा। यह वृद्धि मुख्यतः सब्जियां एवं फल, प्याज, बकरे का मांस, ताज़ा मुर्गी, हरी मिर्च, सरसों का तेल, दवाईयों, नाई-प्रभार, बस-किराया, धुलाई-साबुन इत्यादि की कीमतों में वृद्धि के कारण रही।
विभिन्न राज्यों के सूचकांकों में वृद्धि/गिरावट भिन्न-भिन्न रही। कृषि श्रमिकों के लिए 16 राज्यों के सूचकांकों में 1 से 13 अंकों की वृद्धि रही तथा 3 राज्यों के सूचकांकों में 1 से 7 अंकों की गिरावट रही जबकि असम राज्य का सूचकांक स्थिर रहा। तमिलनाडू राज्य का सूचकांक 1249 अंकों के साथ सूचकांक तालिका में शिखर पर रहा जबकि हिमाचल प्रदेश राज्य का सूचकांक 829 अंकों के साथ सबसे नीचे रहा।
ग्रामीण श्रमिकों के लिए 15 राज्यों के सूचकांकों में 2 से 14 अंकों की वृद्धि रही तथा 3 राज्यों के सूचकांकों में 1 से 6 अंकों की की गिरावट रही जबकि असम एवं मेघालय राज्यों के सूचकांक स्थिर रहे। तमिलनाडू राज्य का सूचकांक 1235 अंकों के साथ सूचकांक तालिका में शिखर पर रहा जबकि बिहार राज्य का सूचकांक 868 अंकों के साथ सबसे नीचे रहा।
राज्य स्तर पर, कृषि श्रमिकों एवं ग्रामीण श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में पंजाब राज्य में अधिकतम वृद्धि क्रमशः 13 एवं 14 अंको की मुख्यत: गेहूं आटा, सब्जियां एवं फल, दूध, प्याज, गुड़, कमीज का कपड़ा (सूती मिल), चमड़े/प्लास्टिक के जूते इत्यादि की कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण रहीं। इसके विपरीत कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिए तमिलनाडु राज्य के उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों में अधिकतम कमी क्रमशः 7 एवं 6 अंको की मुख्यत: ज्वार, बकरे का मांस, ताज़ा मछली, प्याज, सब्जियां एवं फल, पान-पत्ता, जलावन लकड़ी इत्यादि की कीमतों में कमी के कारण रही।
कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रा स्फीति की यथार्थ दर माह जुलाई, 2021 में 3.92 % और 4.09% रही जो कि जून, 2021 में 3.83 % और 4.00% तथा गत वर्ष के इसी माह के दौरान क्रमशः 6.58% और 6.53% थी। इसी तरह, खाद्य मुद्रास्फीति की यथार्थ दर माह जुलाई, 2021 में 2.66% और 2.74% रही जो कि जून, 2021 में 2.67% और 2.86% तथा गत वर्ष के इसी माह के दौरान क्रमशः 7.83% और 7.89% थी।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (अंग्रेज़ी : consumer price index या CPI) घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे गये सामानों एवं सेवाओं (goods and services) के औसत मूल्य को मापने वाला एक सूचकांक है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की गणना वस्तुओं एवं सेवाओं के एक मानक समूह के औसत मूल्य की गणना करके की जाती है। वस्तुओं एवं सेवाओं का यह मानक समूह एक औसत शहरी उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाली वस्तुओ का समूह होता है। जनवरी २०१५ मेंआधार वर्ष में हुए सुधार के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का नवीनतम आधार वर्ष २०१२ को माना जाने लगा है। भारत में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के आँकड़े केन्द्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा मासिक आधार पर प्रतिमाह जारी किए जाते हैं। इस सूचकांक हेतु वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य संबंधी आँकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन NSSO द्वारा चुनिंदा शहरों से संग्रहित किए जाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आँकड़ों का संग्रहण डाक विभाग द्वारा किया जाता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ECONOMY
टोक्यो पैरालंपिक
ध्वजवाहक थंगावेलु मरियप्पन (Thangavelu Mariyappan) सहित भारतीय एथलीटों का पहला जत्था 18 अगस्त, 2021 को टोक्यो पैरालिंपिक के लिए रवाना हो गया है।
2020 ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक (2020 Summer Paralympics)
2020 ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक को टोक्यो 2020 पैरालंपिक खेलों के रूप में ब्रांडेड किया गया है। वे एक आगामी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय बहु-खेल पैरास्पोर्ट्स इवेंट हैं। इन खेलों का संचालन अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति द्वारा किया जाता है। इस साल 16वें ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक खेलों का आयोजन होगा। इस खेलों का आयोजन 24 अगस्त से टोक्यो में किया जायेगा और यह 5 सितंबर, 2021 को समाप्त होगा।
पृष्ठभूमि
यह खेल मूल रूप से 25 अगस्त से 6 सितंबर, 2020 के लिए निर्धारित किए गए थे। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण उन्हें स्थगित कर दिया गया था। इस साल, खेल बंद दरवाजों के पीछे आयोजित किए जाएंगे और टोक्यो क्षेत्र में आपातकाल की स्थिति के कारण मैदानों में दर्शकों को अनुमति नहीं दी गई है।
मेज़बान देश
1964 खेलों के बाद टोक्यो दूसरी बार इन खेलों की मेजबानी करेगा। कुल मिलाकर, यह जापान में आयोजित होने वाला तीसरा पैरालिंपिक होगा क्योंकि इसने 1998 के शीतकालीन पैरालिंपिक की भी मेजबानी की थी।
2020 के खेलों में बैडमिंटन और ताइक्वांडो की शुरुआत होगी।
अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (International Paralympic Committee – IPC)
IPC एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है और पैरालंपिक आंदोलन (Paralympic Movement) के लिए एक शासी निकाय है। यह पैरालंपिक खेलों का आयोजन करता है और 9 खेलों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय महासंघ के रूप में कार्य करता है। इसकी स्थापना 22 सितंबर 1989 को पश्चिम जर्मनी के डसेलडोर्फ में हुई थी। यह “पैरालिंपिक एथलीटों को खेल उत्कृष्टता प्राप्त करने और दुनिया को प्रेरक और रोमांचक बनाने में सक्षम बनाने” के मिशन के लिए काम करता है। इसका मुख्यालय बॉन, जर्मनी में है
पैरालंपिक खेल
पैरालंपिक खेल (अंग्रेज़ी : Paralympic Games) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है जिसमें शारीरिक रूप अथवा मानसिक रूप से विकलांग खिलाड़ी भाग लेते हैं। पैरालंपिक खेलों का मौजूदा ग्लैमर द्वितीय विश्व युद्ध के घायल सैनिकों को फिर से मुख्यधारा में लाने के मकसद से हुई इसकी शुरुआत में है। स्पाइनल इंज्यूरी के शिकार सैनिकों को ठीक करने के लिए खास तौर इसे शुरू किया गया था। साल 1948 में द्वितीय विश्व युद्ध में घायल हुए सैनिकों की स्पाइनल इंजुरी को ठीक करने के लिए स्टोक मानडेविल अस्पताल में काम कर रहे नियोरोलोजिस्ट सर गुडविंग गुट्टमान ने इस रिहेबिलेशन कार्यक्रम के लिए स्पोर्ट्स को चुना था। इन खेलों को तब अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स का नाम दिया गया था।
शुरुआत
साल 1948 में लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ, और इसी के साथ ही डॉक्टर गुट्टमान ने दूसरे अस्पताल के मरीजों के साथ एक स्पोर्ट्स कंपीटिशन की भी शुरुआत की। जिसे काफ़ी पसंद किया गया। फिर देखते ही देखते डॉक्टर गुट्टमान के इस अनोखे तरीके को ब्रिटेन के कई स्पाइनल इंज्यूरी युनिट्स ने अपनाया और एक दशक तक स्पाइनल इंज्यूरी को ठीक करने के लिए ये रिहेबिलेशन प्रोग्राम चलता रहा। 1952 में फिर इसका आयोजन किया है। इस बार ब्रिटिश सैनिकों के साथ ही डच सैनिकों ने भी हिस्सा लिया। इस तरह इसने पैरालंपिक खेल के लिए एक मैदान तैयार किया।
रोम ओलंपिक (1960)
वर्ष 1960 में रोम में पहले पैरालंपिक खेल हुए। इसमें सैनिकों के साथ ही आम लोग भी भाग ले सकते थे। पहले पैरालंपिक खेलों में 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। शुरुआती पैरालंपिक खेलों में तैराकी को छोड़कर खिलाड़ी सिर्फ व्हीलचेयर के साथ ही भाग ले सकते थे लेकिन 1976 में दूसरे तरह के पैरा लोगों को भी पैरालंपिक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। 1960 में रोम ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया। नियोरोलोजिस्ट डॉक्टर गुट्टमान 400 व्हीलचेयर लेकर ओलंपिक शहर में पहुंचे। जहां उन्होंने पैरा लोगों के लिए खेल का आयोजन किया। वहीं से शुरुआत हुई मॉर्डन पैरालंपिक खेलों की। ब्रिटेन के मार्गेट माघन पैरालंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले एथलीट बने। उन्होंने अर्चेरी इवेंट (तीरंदाज़ी) में गोल्ड मेडल जीता। अर्चेरी डॉक्टर गुट्टमान के ट्रीटमेंट का अहम हिस्सा था।
टोक्यो ओलंपिक (1964)
1964 में ओलंपिक जापान की राजधानी टोक्यो के पास गया और कुछ ही समय बाद जापान ने भी पैरालंपिक खेलों की मेजबानी में अहम भूमिका निभाई। ये पहला मौका था जब जापान में पैरा एथलीटों ने व्हीलचेयर के साथ कई खेलों में हिस्सा लिया था।
पैरालंपिक में भारत का प्रदर्शन
भारतीय पैरा एथलीटों को व्यक्तिगत पदक लाने में 56 साल लगे। पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल करने के लिए भारत को 112 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा।
मुरलीकांत पेटकर ने जीता पहला स्वर्ण पदक
साल 1972 हैडिलवर्ग पैरालंपिक में भारत के मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्री स्टाइल 3 तैराकी में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था। अपने फौलादी हौसले से पेटकर उन लोगों के लिए एक आदर्श बने जो किन्हीं वजहों से अक्षम हो जाते हैं। पेटकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने 1968 पैरालंपिक खेलों के टेबल टेनिस इवेंट में भी हिस्सा लिया था और दूसरे दौर तक पहुंचे थे लेकिन उन्हें यह अहसास हुआ कि वो तैराकी में ज्यादा बेहतर कर सकते हैं। पेटकर पैरा एथलीट होने से पहले भारतीय सेना के हिस्सा थे। एक फौजी होने के नाते पेटकर ने कभी हारना तो सीखा नहीं था। फिर हुआ भी कुछ ऐसा ही, तैराकी में वो सोने का तमगा जीत कर लौटे। ये भारतीय पैरा खेलों के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 1972 हैडिलवर्ग में ही भारत की ओर से तब तक सबसे ज्यादा तीन महिला ने भाग लिया था। पैरालंपिक में पहली भारतीय महिला तीरंदाज बनीं पूजा और शॉट पुट में दीपा मलिक ने अपने होने का अहसास कराया था। भारतीय पहलवान सुशील कुमार ही एकमात्र ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने ओलंपिक में दो बार पदक जीते हैं लेकिन पैरालंपिक में एक बड़ा इतिहास दर्ज है। 1984 स्टोक मैंडाविल पैरालंपिक भारत का सबसे सफल पैरालंपिक रहा था।
जोगिंदर सिंह बेदी ने रचा था इतिहास
इसमें जोगिंदर सिंह बेदी ने एक रजत और दो कांस्य पदक अपने नाम किए थे। ये कारनामा उन्होंने गोला फेंक, भाला फेंक और चक्का फेंक इवेंट में किया था। इसके साथ ही इसी साल भीमराव केसरकार ने भी भाला फेंक में रजत जीता था। 2004 एथेंस पैरालंपिक में भारत देवेन्द्र झाझरिया ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता। साथ ही राजिंदर सिंह राहेलु ने पॉवरलिफ्टिंग 56 किलोग्राम भारवर्ग में कांस्य पदक पर अपना हक जमाया। लंदन 2012 में गिरिशा नागाराजेगौड़ा ने ऊंची कूद में कमाल करते हुए रजत पदक अपने नाम किया था। ये वो भारतीय पैरा एथलीट हैं जिन्होंने अपने दमदार प्रदर्शन से देश का नाम रोशन किया।
SOURCE-DANIK JAGARAN
PAPER-G.S.1
TOPIC-CURRENT
खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन
कैबिनेट ने 11,040 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ ‘National Mission on Edible Oils — Oil Palm (NMEO-OP)’ को मंजूरी दी।
मुख्य बिंदु
- यह मंजूरी अगले पांच वर्षों में पाम ऑयल की घरेलू खेती को बढ़ावा देने के लिए दी गई है।
- इससे भारत की आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त को इस नई केंद्रीय योजना की घोषणा के बाद यह निर्णय लिया गया था।
खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Edible Oils)
खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Edible Oils) एक केंद्र प्रायोजित योजना है। 11,040 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय में से केंद्र सरकार का हिस्सा 8,844 करोड़ रुपये है। 2,196 करोड़ रुपये राज्यों द्वारा साझा किए जाएंगे। यह योजना “राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तेल पाम कार्यक्रम” (National Food Security Mission-Oil Palm Programme) में शामिल हो जाएगी। इसे आत्मनिर्भर भारत योजना के अनुरूप लॉन्च किया गया था।
मिशन का उद्देश्य
खाद्य तेल पर राष्ट्रीय मिशन 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर के अतिरिक्त क्षेत्र में ताड़ के तेल को कवर करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह 10 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास करता है।
यह योजना महत्वपूर्ण क्यों है?
वर्तमान में भारत घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए खाद्य तेलों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। इस प्रकार, उनके घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में प्रयास करना आवश्यक है। उत्पादन बढ़ाने के लिए ताड़ के तेल (palm oil) का क्षेत्रफल और उत्पादकता बढ़ाना महत्वपूर्ण हो जाता है। बढ़ते क्षेत्र के इस लक्ष्य को मिशन के जरिए हासिल किया जा सकता है। इसके अलावा, पाम ऑइल किसानों को आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुसार आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर सकता है। यह योजना केंद्र को यह सुनिश्चित करने में भी मदद करेगी कि किसान बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित न हों।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.3