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Current Affairs 2 January 2022

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Current Affairs – 2 January, 2022

राष्ट्रीय वायु खेल नीति

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने लोगों से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय वायु खेल नीति (एनएएसपी) का प्रारूप जारी किया है। भारत में वायु खेलों की दुनिया में अग्रणी देशों में शामिल होने की क्षमता है। यहां एक बड़ा भौगोलिक विस्तार, विविध भौगोलिक स्थिति और अनुकूल मौसम है। देश में विशेष रूप से युवाओं की एक बड़ी जनसंख्या है। यहां रोमांचक खेलों और उड्डयन के प्रति आकर्षण में वृद्धि हो रही है। वायु खेल गतिविधियों से प्रत्यक्ष राजस्व के अतिरिक्त, विशेष रूप से देश के पहाड़ी क्षेत्रों में यात्रा, पर्यटन, अवसंरचना और स्थानीय रोजगार के विकास के मामले में कई गुना लाभ प्राप्त हो सकता है। देश भर में एयर स्पोर्ट्स हब बनाने से पूरी दुनिया के एयर स्पोर्ट्स प्रोफेशनल और पर्यटक भी यहां आएंगे।

इसलिए भारत सरकार की योजना देश के वायु खेल सेक्टर को सुरक्षित, किफायती, सुलभ, आनंददायक और टिकाऊ बनाकर इसे बढ़ावा देने की है। प्रणालियों और प्रक्रियाओं को सरल और अधिक पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है; गुणवत्ता, संरक्षा और सुरक्षा पर फोकस बढ़ाए जाने की आवश्यकता है; और बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण और जागरूकता निर्माण में निवेश को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय वायु खेल नीति (एनएएसपी 2022) का प्रारूप इसी दिशा में एक कदम है। इसका निर्माण नीति निर्माताओं, एयर स्पोर्ट्स प्रैक्टिशनर्स तथा आम लोगों से प्राप्त इनपुट के आधार पर किया गया है। यह एक उभरता क्षेत्र है और समय-समय पर इसमें संशोधन किया जाता रहेगा।

राष्ट्रीय वायु खेल नीति के प्रारूप की प्रमुख विशेषताएं हैं:

  1. एनएएसपी 2022 में एरोबेटिक्स, एरोमॉडलिंग, अमेच्‍योर-बिल्ट और प्रायोगिक विमान, बैलूनिंग, ड्रोन, ग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग और पैराग्लाइडिंग; माइक्रोलाइटिंग और पैरामोटरिंग; स्काइडाइविंग और विंटेज विमान जैसे खेल शामिल हैं।
  2. इसका विजन 2030 तक भारत को शीर्ष वायु खेल देशों में से एक बनाना है। इस मिशन का उद्देश्य भारत में एक सुरक्षित, किफायती, सुलभ, सुखद और टिकाऊ वायु खेल परितंत्र प्रदान करना है।
  3. एनएएसपी 2022 में इसके बड़े भौगोलिक विस्तार, विविध भौगोलिक स्थिति और अनुकूल मौसम स्थितियों को देखते हुए वायु खेलों के लिए भारत की विशाल क्षमता का लाभ उठाने का प्रयास किया गया है।
  4. एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एएसएफआई) को सर्वोच्च शासी निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा। प्रत्येक वायु खेल के लिए पैराग्लाइडिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया या स्काईडाइविंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया आदि जैसे एसोसिएशन दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रबंधित करेंगे।
  5. वायु खेल संघ नियामक निरीक्षण के संबंध में एएसएफआई के प्रति उत्तरदायी होंगे और अपने संबंधित वायु खेल के सुरक्षित, किफायती, सुलभ, आनंददायक और टिकाऊ संचालन प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होंगे।
  6. एएसएफआई एफएआई और वायु खेलों से संबंधित अन्य वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करेगा। वैश्विक वायु खेल आयोजनों में भारतीय खिलाड़ियों की अधिक भागीदारी और सफलता को सुगम बनाया जाएगा।
  7. वायु खेल उपकरणों के घरेलू डिजाइन, विकास और विनिर्माण को आत्मनिर्भर भारत अभियान के अनुरूप बढ़ावा दिया जाएगा।
  8. फेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनल (एफएआई), जिसका मुख्यालय स्विट्जरलैंड के लुसाने में है, वायु खेलों के लिए विश्व शासी निकाय है। भारत में सभी प्रतियोगिताएं एफएआई द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार आयोजित की जाएंगी।
  9. वायु खेलों में अपनी प्रकृति के कारण नियमित विमान उड़ाने की तुलना में उच्च स्तर का जोखिम शामिल होता है। एनएएसपी 2022 सुरक्षा में अंतरराष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों को सुनिश्चित करने पर जोर देता है।
  10. किसी वायु खेल संघ द्वारा सुरक्षा मानकों को लागू करने में विफल रहने पर वित्तीय दंड, निलंबन या बर्खास्तगी सहित ऐसे संघ के खिलाफ एएसएफआई द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
  11. वायु खेल सेवाएं प्रदान करने वाले सभी व्यक्तियों और निकायों को संबंधित वायु खेल संघों के सदस्यों के रूप में पंजीकरण करना आवश्यक होगा। वायु खेलों के लिए उपयोग किए जाने वाले प्रमुख उपकरण संबंधित एयर स्पोर्ट्स एसोसिएशन के साथ पंजीकृत किए जाएंगे, जब तक कि ऐसे उपकरण निष्क्रिय नहीं हो जाते, मरम्मत से परे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं या खो जाते हैं।
  12. डीजीसीए के डिजिटलस्काई प्लेटफॉर्म (https://digitalsky.dgca.gov.in) पर भारत का एक वायु क्षेत्र का मानचित्र प्रकाशित किया गया है। यह मानचित्र भारत के पूरे वायु क्षेत्र को रेड ज़ोन, येलो ज़ोन और ग्रीन ज़ोन में बांटता है। मार्गदर्शन के लिए एयर स्पोर्ट्स प्रैक्टिशनर इस आसानी से सुलभ मानचित्र पर भरोसा कर सकते हैं। लाल और पीले क्षेत्रों में संचालन के लिए क्रमशः केंद्र सरकार और संबंधित हवाई यातायात नियंत्रण प्राधिकरण से अनुमति की आवश्यकता होती है। 500 किलोग्राम तक वजन वाले विमानों के लिए हरे क्षेत्रों में संचालन के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
  13. एक निश्चित स्थान- उदाहरण के लिए, हिमाचल प्रदेश में बीर-बिलिंग, सिक्किम में गंगटोक, महाराष्ट्र में हडपसर या केरल में वागामोन– जैसे उक्त स्थानों को गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, राज्य सरकार और स्थानीय वायु यातायात नियंत्रण प्राधिकरण से आवश्यक अनुमतियों के साथ वायु खेलों के लिए ‘नियंत्रण क्षेत्र’ घोषित किया जा सकता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा या अन्य मानवयुक्त विमानों की सुरक्षा के लिए कोई जोखिम पैदा किए बिना ऐसे नियंत्रण क्षेत्रों में हवाई खेल के प्रति उत्साही लोगों द्वारा बाधामुक्त उड़ान को सक्षम करेगा।
  14. अत्यधिक सर्दियों के दौरान, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में वायु खेलों का स्तर कम हो जाता है और वायु खेल प्रेमी हल्के जलवायु में चले जाते हैं। एएसएफआई और वायु खेल संघ उनकी आवाजाही को भारत की तरफ मोड़ने में सक्षम बनाने के लिए एक बाधामुक्त प्रक्रिया विकसित करने की दिशा में काम करेंगे। यह भारतीय वायु खेल प्रेमियों को आगंतुक प्रोफेशनलों के अनुभव से सीखने, वैश्विक सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों से अवगत कराने और भारत में वैश्विक प्रतियोगिताओं की मेजबानी करने के अवसर पैदा करने में सक्षम बनाएगा।
  15. सरकार कुछ विशिष्ट वर्षों के लिए बिना किसी आयात शुल्क के वायु खेल उपकरणों के आयात की अनुमति देने पर विचार करेगी। पहले उपयोग में लाए गए वायु खेल उपकरण के नि:शुल्क आयात की अनुमति दी जा सकती है, जो उड़ान योग्यता के निर्धारित मानदंडों के अधीन है।
  16. स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रम में वायु खेलों को शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
  17. भारत में वायु खेलों के विकास के लिए दीर्घकालिक वित्त पोषण कॉरपोरेट निवेशकों, प्रायोजकों, सदस्यता शुल्क, स्पर्धाओं और मीडिया अधिकारों से किया जाएगा। एएसएफआई विशेष रूप से आरम्भिक वर्षों में वायु खेलों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार से वित्तीय सहायता की अपेक्षा कर सकता है।
  18. वायु खेलों को आम लोगों के लिए किफायती बनाने के लिए, सरकार जीएसटी परिषद से वायु खेल उपकरणों पर जीएसटी दर को 5 प्रतिशत या उससे कम करने पर विचार करने का अनुरोध करेगी।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1PRE

 

जिला स्तरीय शासन सूचकांक

जम्मू और कश्मीर जल्द ही जिला स्तर पर सुशासन सूचकांक रखने वाला देश का पहला केंद्र शासित प्रदेश बन जाएगा।

केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा तथा अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कार्मिक मंत्रालय में प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) के नवनियुक्त सचिव वी श्रीनिवास से इस संबंध में जानकारी मिलने के बाद बताया कि केंद्र, जम्मू-कश्मीर में जिला सुशासन सूचकांक (डीजीजीआई) स्थापित करेगा और प्रशासनिक सुधार तथा लोक शिकायत विभाग (डीएआरपीजी) केंद्र शासित प्रदेश की सरकार के सहयोग से इस कार्य को पूरा करेगा। सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस (सीजीजी) हैदराबाद के तकनीकी सहयोग से प्रस्तावित सूचकांक की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया गया है।

डीजीजीआई फ्रेमवर्क में विकास के विभिन्न पहलुओं से लिए गए 58 संकेतक हैं और जिला प्रशासन को सभी 10 क्षेत्रों जैसे कि कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र, वाणिज्य व उद्योग, मानव संसाधन विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और उपयोगिताओं, आर्थिक शासन, कल्याण एवं विकास, सार्वजनिक सुरक्षा और न्यायपालिका तथा नागरिक केंद्रित शासन में वितरित किया गया है।

इन संकेतकों को जम्मू और कश्मीर सरकार के जिला अधिकारियों, शिक्षाविदों, विषय विशेषज्ञों आदि के साथ परामर्श की एक श्रृंखला के बाद अंतिम रूप दिया गया था। प्रामाणिक प्रकाशित डेटा और अन्य प्रमुख सिद्धांतों की उपलब्धता को देखते हुए संकेतकों के सेट को 135 से 58 की एक बड़ी सूची से तैयार किया गया है।

सूचकांक और रैंक की गणना करने के लिए जिलों ने अंतिम 58 संकेतकों के आधार पर उनका प्रदर्शन देखकर डाटा संयोजन का एक विस्तृत अभ्यास किया, जिसके बाद उपयुक्त डाटा को अलग किया गया। मानक और परीक्षण किए गए डाटा सामान्यीकरण तथा स्कोरिंग विधियों का उपयोग करके अंतिम सूचकांक गणना प्रक्रिया चल रही है। इसके परिणामस्वरूप जिलों की डिवीजन-वार और जिले-वार रैंक सामने आएंगी। जहां समग्र 10 क्षेत्रों के आधार पर जिलों की एक व्यापक रैंक होगी, वहीं डीजीजीआई जिलों के संकेतक-वार प्रदर्शन पर एक विंडो भी जारी।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1PRE

 

2021 की दिलचस्प वैज्ञानिक घटनाएं

पर्सिवियरेंस रोवर : मंगल पर कदम रखने के लिए बड़ी पहल

मंगल ग्रह पर कदम रखने के लिए इंसान लंबे समय से तैयारी करता रहा है लेकिन अब यह सपना पर्सिवियरेंस रोवर की बदौलत हक़ीक़त में तब्दील हो गया है। नासा के परज़ेवेरेंस रोवर ने साल 2021 में मंगल की सतह पर पहली बार कदम रखा।

छह पहियों पर दौड़ने वाला यह रोवर अगले दो सालों तक मंगल ग्रह की सतह का जायज़ा लेगा, वहां मौजूद चट्टानों की ड्रिलिंग कर उनके नमूने इकट्ठा करेगा और इस ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की तलाश करेगा।

मंगल ग्रह पर पहली बार ‘इनजेन्यूटी’ नाम के एक हेलीकॉप्टर ने भी उड़ान भरी।

ये उड़ान एक मिनट से भी कम समय के लिए थी। लेकिन बड़ी बात यह है कि इससे पहले कभी इंसान द्वारा बनाए किसी हेलीकॉप्टर को किसी अन्य ग्रह पर नहीं उड़ाया गया है।

6 सितंबर को नासा के पर्सिवियरेंस रोवर ने अपने पहले चट्टान के नमूने को इकट्ठा करने में कामयाबी हासिल की। कुछ दिनों के बाद इसने और अधिक चट्टानों के नमूने इकट्ठे किए। बाद में इस रोवर को जेज़ेरो क्रेटर से बेडरॉक के नमूने हासिल करने में भी कामयाबी मिली। माना जा रहा है कि यह शुरुआत है क्योंकि आने वाले वक्त में परज़ेवेरेंस 24 और चट्टानों के नमूने एकत्र करने की योजना पर काम कर रहा है।

मंगल ग्रह से एकत्र किए गए नमूनों को इस दशक के अंदर ही अमेरिका और यूरोपीय देशों के समन्वित प्रयासों से धरती पर लाया जाएगा।

सूरज की बाहरी सतह को छूकर गुज़रा पार्कर प्रोब

नासा के अंतरिक्षयान पार्कर सोलर प्रोब ने पहली बार सूरज के पर्यावरण की बाहरी सतह को स्‍पर्श किया। सूरज के वातावरण की सतह जिसे कोरोना के नाम से जाना जाता है, उसे छूने में इस मिशन ने सफलता पाई। अब तक इस सतह तक पहुंचा नहीं जा सका था।

यह अभूतपूर्व घटना बीते साल के अप्रैल महीने में घटी थी लेकिन कोरोना को छूकर गुज़रने की बात आंकड़ों के विश्लेषण के बाद ही सामने आ पाई।

पार्कर प्रोब को इस दौरान भारी विकिरण और भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा, लेकिन सूरज किस तंत्र के तहत संचालित होता है यह आंकड़ा इसने हासिल कर लिया।

नासा में सोलर फ़िजिक्स के निदेशक निकोला फ़ॉक्स के मुताबिक, “सूर्य के वातावरण तक पहुंचना इंसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। यह जानकारी पृथ्वी के सबसे नज़दीक के तारे सूरज को लेकर हमारी समझ को बढ़ाएगा। इससे हमें सौर मंडल पर सूर्य के प्रभाव को समझने में भी आसानी होगी”।

सरे ग्रह पर ज़िंदगी की पहेली को सुलझाने के लिए विशाल दूरबीन

पृथ्वी पर अब तक का सबसे बड़ा जेम्स वेब टेलिस्कोप 25 दिसंबर को फ्रांस के गुयाना से अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया था।

यह सुपर टेलिस्कोप ब्रह्मांड को अच्छे से समझने में मदद करेगा और पृथ्वी के अलावा कहीं और जीवन है या नहीं इस बारे में जानकारी इकट्ठा करने की मदद करेगा।

यह टेलिस्कोप 13.5 अरब साल पहले ब्रह्मांड में चमकने वाले तारों की रोशनी को मापने में मददगार साबित होगा। इतना ही नहीं, जेम्स वेब टेलिस्कोप दूसरे ग्रहों की वायुमंडलीय परतों में मौजूद अणुओं की भी जांच करेगा और बाहरी अंतरिक्ष में जीवन के अस्तित्व का पता लगाएगा।

बृहस्पति की ओर चला मिशन लूसी

अक्टूबर में लॉन्च किया गया ‘मिशन लूसी’ हमारे सौर मंडल के जीवाश्म माने जाने वाले छोटे ग्रह समूहों (क्षुद्र ग्रहों) का अध्ययन करेगा।

छोटे ग्रहों का एक समूह बृहस्पति की परिक्रमा करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये छोटे ग्रह अपने आप में आदिकालीन चीज़ों को समेटे हुए होंगे जो हमारे सौर मंडल के जन्म और विकास की पहेली को सुलझाने की क्षमता रखते हैं।

इसे समझने के लिए ही लूसी मिशन को बृहस्पति ग्रह की ओर प्रक्षेपित किया गया था।

अंतरिक्ष यात्रा बनेगा पर्यटन

ब्रिटेन के व्यवसायी रिचर्ड ब्रैनसन हमेशा अंतरिक्ष की यात्रा करने की ख़्वाहिश रखते थे और उनका यह सपना 71 साल की उम्र में सच हो गया।

उनकी कंपनी वर्ज़िन गेलेक्टिक ने यूनिटी नाम का एक रॉकेट शटल बनाया, जिसने लगभग 85 किलोमीटर की ऊंचाई तक यात्रा की। ये यान बाहरी अंतरिक्ष में वह दाख़िल हुआ और इसने 90 मिनट में सफलतापूर्वक अपनी अंतरिक्ष उड़ान पूरी कर ली।

दूसरी ओर, अमेज़ॉन के संस्थापक जेफ़ बेजोस ने अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा ब्लू ओरिज़िन कंपनी के बनाए रॉकेट न्यू शेपर्ड से पूरी की।

इस यात्रा में बेज़ोस के साथ उनके भाई मार्क बेज़ोस, 82 साल की पूर्व पायलट वैली फ़ंक और 18 साल के छात्र ओलिवर डायमेन भी गए थे। ये सभी 10 मिनट और 10 सैकेंड के बाद पैराशूट के जरिए धरती पर वापस लौट आए। उनका रॉकेट 106 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा था।

एलन मस्क ने तो स्पेस एक्स के ज़रिए स्टारशिप नाम का दुनिया का सबसे बड़ा रॉकेट डिज़ाइन किया है। इस साल कंपनी के बनाए एक रॉकेट में चार अंतरिक्ष पर्यटक अपनी यात्रा पूरी तक धरती पर लौटे।

अल्ज़ाइमर के लिए वियाग्रा ?

अमेरिकी शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि वियाग्रा, जिसका इस्तेमाल पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फ़ंक्शन के इलाज के लिए किया जाता है, उसका उपयोग अल्ज़ाइमर रोग के उपचार में किया जा सकता है।

हालांकि मस्तिष्क के टिशू पर वियाग्रा के असर का अध्ययन अभी किया जा रहा है।

एचआईवी का प्रतिरोध करता है मानव शरीर

अर्जेंटीना की एक महिला बिना किसी दवा के ही एचआईवी से ठीक हो गईं। यह दुनिया में अब तक का इस तरह का दूसरा मामला है।

डॉक्टरों का मानना है कि इस महिला के इम्यून सिस्टम ने वायरस को ख़त्म कर दिया।

इंटरनल मेडिसिन जर्नल की मानें तो महिला के शरीर से एक अरब से अधिक कोशिकाओं का विश्लेषण करने के बाद भी उनमें एचआईवी का एक भी निशान नहीं मिला।

इंसानों के लिए सुअर की किडनी

अमेरिका में एक सुअर की किडनी को ब्रेन डेड हो चुके एक शख़्स में प्रत्यारोपित किया गया, जो आर्टिफ़िशियल लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम पर था।

हालांकि इंसानी शरीर में सुअर की किडनी को स्वीकार कराने के लिए कुछ आनुवांशिक परिवर्तन किए गए थे।

स्टेराइल न्यूट्रिनो नहीं मिला

इस परिकल्पना के आधार पर कि ‘स्टेराइल न्यूट्रिनो’ पदार्थ की मूलभूत इकाई हो सकती है, और वैज्ञानिक इस कण की खोज लंबे समय से कर रहे थे।

इसे लेकर ज़बर्दस्त खोज की कोशिशें एक बार फिर व्यर्थ चले जाने के बाद वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के जन्म की व्याख्या करने के लिए इससे भी दिलचस्प परिकल्पनाओं को आगे बढ़ाया है।

ब्लैक होल से रोशनी ?

अमेरिकी और यूरोपीय टेलिस्कोप की खोज ने दुनिया को यह बताया है कि अंतरिक्ष में ब्लैक होल के आसपास बहुत तेज विकिरण एक्स-रे उत्सर्जन होता है। यह पहली बार है जब किसी ब्लैक होल से प्रकाश की खोज की गई है।

इस रिसर्च में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से एक्सएमएम-न्यूटन और नासा से नूस्टार-न्यूक्लियर स्पेक्ट्रोस्कोपिक टेलीस्कोप ऐरे का इस्तेमाल किया गया था।

अमेरिका में स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के डैन विल्किंस ने इस रिसर्च के दौरान अंतर्राष्ट्रीय टीम का नेतृत्व किया।

नर पक्षी के बगैर अंडे दे सकती है मादा पक्षी

कैलिफ़ोर्निया की दो मादा गिद्धों ने बिना नर क्रोमोज़ोम के और बगैर किसी नर की मदद के अंडे दिए और उनसे बच्चे भी पैदा किए।

इस घटना की खोज अमेरिकी वन्यजीव शोधकर्ताओं ने की थी। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कैलिफ़ोर्निया के गिद्ध लुप्त होने की कगार पर हैं।

24,000 सालों के बाद फिर जिंदा हुआ जीव

साइबेरियन बर्फ़ में पिछले 24,000 वर्षों से जमे हुए एक सूक्ष्म बहुकोशिकीय जीव में फिर से जान आ गई। बेडेलॉइड रोटिफ़र नामक जीव को रूस के आर्कटिक क्षेत्र में एलिसा नदी से खोद कर निकाला गया था।

हज़ारों सालों तक जमे रहने की स्थिति (जिसे क्रिप्टोबायोसिस कहा जाता है) के बाद यह जीव बर्फ़ के पिघलने के साथ ही वापस ज़िंदा हो गया। वैज्ञानिकों को यह भी पता चला कि यह अलैंगिक या बिना सहवास के भी प्रजनन करने में सक्षम है।

SOURCE-BBC NEWS

PAPER-G.S.3

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