CURRENTS AFFAIRS – 9th MAY 2021
गोपाल कृष्ण गोखले
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा कि राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित उनका जीवन देशवासियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
पाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 – फरवरी 19, 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का ‘ग्लेडस्टोन’ कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
अफ्रीका से लौटने पर महात्मा गांधी भी सक्रिय राजनीति में आ गए और गोपालकृष्ण गोखले के निर्देशन में ‘सर्वेट्स ऑफ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना की, जिसमें सम्मिलित होकर लोग देश-सेवा कर सकें, पर इस सोसाइटी की सदस्यता के लिए गोखले जी एक-एक सदस्य की कड़ी परीक्षा लेकर सदस्यता प्रदान करते थे। इसी सदस्यता से संबंधित एक घटना है – मुंबई म्युनिस्पैलिटी में एक इंजीनियर थे अमृत लाल वी. ठक्कर। वे चाहते थे कि गोखले जी की सोसाइटी में सम्मिलित होकर राष्ट्र-सेवा से उऋण हो सकें। उन्होंने स्वयं गोखले जी से न मिलकर देव जी से प्रार्थना-पत्र सोसाइटी में सम्मिलित होने के लिए लिखवाया। अमृतलाल जी चाहते थे कि गोखले जी सोसाइटी में सम्मिलित करने की स्वीकृति दें तो मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दे दिया जाए, पर गोखले जी ने दो घोड़ों पर सवार होना स्वीकार न कर स्पष्ट कहा कि यदि सोसाइटी की सदस्यता चाहिए तो पहले मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दें। गोखले की स्पष्ट और दृढ़ भावना के आगे इंजीनियर अमृतलाल वी. ठक्कर को त्याग-पत्र देने के उपरांत ही सोसाइटी की सदस्यता प्रदान की गई। यही इंजीनियर महोदय गोखले जी की दृढ़ नीति-निर्धारण के कारण राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत सेवा-क्षेत्र में भारत विश्रुत ‘ठक्कर बापा’ के नाम से जाने जाते हैं।
गोखले जी 1905 में आजादी के पक्ष में अंग्रेजों के समक्ष लाला लाजपतराय के साथ इंग्लैंड गए और अत्यंत प्रभावी ढंग से देश की स्वतंत्रता की वहां बात रखी। 19 फ़रवरी 1915 को गोपालकृष्ण गोखले इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गए।
Source- PIB
गुरुदेव टैगोर
एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा कि “टैगोर जयंती पर, मैं महान गुरुदेव टैगोर को नमन करता हूं। उनके अनुकरणीय आदर्श ऐसे भारत के निर्माण के लिये हमें शक्ति और प्रेरणा देते रहें, जिसका उन्होंने स्वप्न देखा था।“
बीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (बंगाली: রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর रबीन्द्रनाथ ठाकुर) (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं – भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बाँग्ला’ गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ वर्ष की आयु में लिखी थी और सन् १८७७ में केवल सोलह वर्ष की आयु में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी।
टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक और सहस्रो गाने भी लिखे हैं। वे अधिकतम अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते हैं। गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही हैं। टैगोर ने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखी थीं। टैगोर के यात्रावृन्त, निबंध, और व्याख्यान कई खंडों में संकलित किए गए थे, जिनमें यूरोप के जटरिर पत्रों (यूरोप से पत्र) और ‘मनुशर धर्म’ (मनुष्य का धर्म) शामिल थे। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, “वास्तविकता की प्रकृति पर नोट”, बाद के उत्तरार्धों के एक परिशिष्ट के रूप में सम्मिलित किया गया है।
टैगोर के १५० वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का एक (कालनुक्रोमिक रबीन्द्र रचनाबली) नामक एक संकलन वर्तमान में बंगाली कालानुक्रमिक क्रम में प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण है। २०११ में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व-भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों की सबसे बड़ी संकलन द एसेंटियल टैगोर, को प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया है यह फकराल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित की गयी थी और टैगोर के जन्म की १५० वीं वर्षगांठ की निशानी हैं।
गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया। टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां गान्धी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। टैगोर ने गान्धीजी को महात्मा का विशेषण दिया था। एक समय था जब शान्तिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस समय गान्धी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।
जीवन के अन्तिम समय ७ अगस्त १९४१ से कुछ समय पहले इलाज के लिए जब उन्हें शान्तिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हाँ पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा।
न्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य के साथ बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। इससे बंगाली साहित्य क्लासिकल संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। टैगोर की रचनायें बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इनमे चोखेर बाली, घरे बहिरे, गोरा आदि शामिल है। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया। 1913 ईस्वी में गीतांजलि के लिए इन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला जो कि एशिया मे प्रथम विजेता साहित्य मे है। मात्र आठ वर्ष की उम्र मे पहली कविता और केवल 16 वर्ष की उम्र मे पहली लघुकथा प्रकाशित कर बांग्ला साहित्य मे एक नए युग की शुरुआत की रूपरेखा तैयार की। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्मवाद तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है। उनकी कविता पढ़ने से उपनिषद की भावनाएं परिलक्षित होती है।
SOURCE-PIB
Global Task Force on Pandemic
Global Task Force on Pandemic ने हाल ही में घोषणा की कि वह तीन तत्काल कार्रवाई करने के लिए यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (US-India Strategic Partnership Forum) और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल (US-India Business Council) के साथ मिलकर काम कर रही है।
3 तत्काल कार्य क्या हैं?
हजार वेंटिलेटर डिलीवर करना।
25,000 ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर भेजा।
Chief Human Resources Officer India Action Group का निर्माण करना। यहसमूह भारतीय लोगों की मदद करने के लिए व्यावहारिक जानकारी और विचार प्रदान करेगा।
Global Task Force on Pandemic Response
लगभग 40 शीर्ष अमेरिकी कंपनियों Global Task Force on Pandemic Response के गठन के लिए हाथ मिलाया है। यह बल भारत को बड़े पैमाने पर COVID-19 आपातकालीन राहत सामग्री प्रदान करेगा।
इसका गठन संसाधनों को जुटाने और वितरित करने के लिए किया गया है।
Global Task Force on Pandemic Response एक नई सार्वजनिक-निजी साझेदारी है। यह यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स (US Chamber of Commerce) द्वारा आयोजित किया जाता है और बिजनेस राउंडटेबल (Business Roundtable) द्वारा समर्थित है।
हाल ही में तीन भारतीय-अमेरिकी इस बल में शामिल हुए हैं। वे हैं :
- गूगल से सुंदर पिचाई
- डेलॉयट से पुनीत रेनजेन
- एडोबी से शांतनु नारायण
- टास्क फोर्स वेंटीलेटर पहल में 16 से अधिक बिज़नस शामिल हुए हैं।
- सभी व्यवसाय भारत की स्वास्थ्य सेवा को 30 मिलियन डालर की सहायता प्रदान करेंगे।
- यूएस कॉरपोरेट सेक्टर द्वारा योगदान
- अमेरिका के कॉरपोरेट सेक्टर ने अब तक 25,000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स भेजे हैं।
भारत को अमेरिका की COVID मदद
United States Agency for International Development (USAID) ने हाल ही में घोषणा की कि यह भारत को 100 मिलियन डालर की सहायता भेजेगी। इसमें 440 ऑक्सीजन सिलेंडर, 9,60,000 रैपिड डायग्नोस्टिक परीक्षण शामिल हैं। इसके अलावा, अमेरिका ने भारत को एस्ट्राजेनेका विनिर्माण आपूर्ति की 20 मिलियन COVID-19 खुराक को भेजा है। साथ ही, अमेरिका एंटी वायरल दवा रेमेडेसिविर के 20,000 ट्रीटमेंट कोर्स प्रदान करेगा।
SLTRO
भारतीय रिज़र्व बैंक ने हाल ही में घोषणा की कि वह लघु वित्त बैंकों (Small Finance Banks) के लिए 10,000 करोड़ रुपये के पहले विशेष दीर्घकालिक रेपो ऑपरेशन (Special Long Term Repo Operation – SLTRO) का संचालन करेगा।
योजना क्या है?
मई 2021 से शुरू होने वाले प्रत्येक महीने के लिए RBI द्वारा SLTRO का संचालन किया जायेगा। यह अक्टूबर, 2021 तक जारी रहेगा। यह SLTRO तीन वर्षों के लिए वैध होगा। सभी लघु वित्त बैंक SLTRO में भाग लेंगे। हालांकि, इन बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि RBI से उधार ली गई राशि केवल असंगठित क्षेत्रों और छोटी व्यावसायिक इकाइयों जैसे क्षेत्रों में उधार दी जानी चाहिए।
पृष्ठभूमि
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उपायों की घोषणा की थी। इसमें रेपो रेट 4% पर 50,000 करोड़ रुपये की ऑन-टैप लिक्विडिटी विंडो खोलना, बैंकों को COVID लोन बुक बनाने के लिए कहना, लघु वित्त बैंकों के लिए SLTRO का संचालन करना शामिल है।
Special Long Term Repo Operations (SLTRO) क्या है?
इसे आम तौर पर दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Long-Term Repo Operations) भी कहा जाता है। Special Long Term Repo Operations एक ऐसा उपकरण है जिसके तहत आरबीआई रेपो रेट पर बैंकों को पैसा मुहैया कराता है। यह सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक (collateral) के रूप में स्वीकार करता है। यह आमतौर पर एक साल से तीन साल की अवधि के लिए प्रदान किया जाता है।
SLTRO का महत्व
यह बैंकों के लिए बेहद फायदेमंद है क्योंकि उन्हें कम दरों पर लंबी अवधि के फंड मिलते हैं। इससे बैंक कर्ज लेने वाले लोगों के लिए कम ब्याज की सुविधा देते हैं। इस प्रकार, Special Long Term Repo Operations भारतीय रिज़र्व बैंक को यह सुनिश्चित करने में मदद करेंगे कि बैंक पॉलिसी दरों को कम किए बिना अपनी उधार दरों को कम करें।
SOURCE-GK TODAY
2-DG
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drugs Controller General of India) ने हाल ही में COVID-19 के इलाज के लिए एक मौखिक दवा (oral drug) को मंजूरी दी है जिसे 2-DG कहा जाता है। 2-डीजी को रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (Defence Research Development Organisation) द्वारा आपातकालीन उपयोग के लिए विकसित किया गया है। 2-DG का अर्थ 2-Deoxy – D – Glucose है। इसे डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज (Dr Reddy’s Laboratories) के सहयोग से विकसित किया गया है।
2-DG दवा
यह दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों की तेजी से रिकवरी सुनिश्चित करती है और नैदानिक परीक्षणों के दौरान पूरक ऑक्सीजन निर्भरता (supplemental oxygen dependence) को कम करेगी।
यह संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है और वायरल संश्लेषण को रोकती है।
दवा पाउच रूप में पाउच में आती है। पानी में घोलकर इसका सेवन मौखिक रूप से किया जाता है।
इसे इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) द्वारा विकसित किया गया था। INMAS DRDO के तहत संचालित होने वाली एक प्रयोगशाला है।
कोविड-19 के गंभीर रोगियों के लिए DGCI ने इस दवा के आपातकालीन उपयोग की अनुमति दी है।
2-डीजी एक जेनेरिक मॉलिक्यूल है और इस प्रकार आसानी से देश में प्रचुर मात्रा में निर्मित व उपलब्ध कराया जा सकता है।
ट्यूमर के लिए 2-DG
कैंसर की कोशिकाओं में ग्लूकोज अधिक होता है। इस प्रकार, जब 2-डीजी को कैंसर रोगियों में इंजेक्ट किया जाता है, तो यह कैंसर कोशिकाओं के लिए एक अच्छे मार्कर के रूप में कार्य करती है।
महाराणा प्रताप सिंह
महाराणा प्रताप सिंह (Maharana Pratap Singh) मेवाड़ (वर्तमान राजस्थान) के 13वें राजा थे। वे भारत के सबसे यशस्वी राजाओं में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 9 मई, 1540 को हुआ था। आज उनकी जयंती मनाई जा रही है।
राणा और मुगल
अकबर मेवाड़ के माध्यम से गुजरात के लिए एक सुरक्षित मार्ग स्थापित करना चाहता था। इसलिए, उसने महाराणा प्रताप सिंह को अन्य राजपूतों की तरह एक जागीरदार बनाने के लिए कई दूत भेजे। राणा ने मना कर दिया। इसलिए हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया।
हल्दीघाटी का युद्ध (Battle of Haldighati)
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा को उनकी बहादुरी के लिए जाना जाता है। यह लड़ाई 18 जून, 1576 को महाराणा और अकबर की सेनाओं के बीच लड़ी गई थी। राणा ने मुगल सेना के 2 लाख सैनिकों के खिलाफ 22,000 सैनिकों के साथ लड़ाई लड़ी। मुगलों का नेतृत्व मान सिंह ने किया था। इस युद्ध में राणा की सेना परास्त हो गईं।
पुनर्विजय
उन्होंने 1582 में 6 साल बाद मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। मुगलों को भयानक हार का सामना करना पड़ा और इसके बाद अकबर ने मेवाड़ के खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को रोक दिया।
इसके अलावा, जब अकबर उत्तर पश्चिमी मोर्चे पर ध्यान केंद्रित कर रहा था, तब राणा ने उदयपुर, गोगुन्दा और कुंभलगढ़ को अपने नियंत्रण में कर लिया।
SOURCE-GK TODAY