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Current Affairs 6 January 2022

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Current Affairs – 6 January, 2022

अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आज अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएनएसटीएस) के लिये हरित ऊर्जा कॉरिडोर (जीईसी) चरण-II की योजना को मंजूरी दे दी। इसके तहत लगभग 10,750 सर्किट किलोमीटर पारेषण लाइन तथा सब-स्टेशनों की लगभग 27,500 मेगा वोल्ट-एम्पियर (एमवीए) ट्रांसफार्मर क्षमता को अतिरिक्त रूप से जोड़े जाने को मंजूरी दी गई है। इस योजना से सात राज्यों- गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में ग्रिड एकीकरण और लगभग 20 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा की बिजली निकासी परियोजनाओं को मदद मिलेगी।

इस योजना को कुल 12,031.33 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) परियोजना के 33 प्रतिशत के बराबर, यानी 3970.34 करोड़ रुपये होगी। पारेषण प्रणाली को वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक की पांच वर्ष की अवधि के दौरान तैयार किया जायेगा। केंद्रीय वित्तीय सहायता से राज्यांतरिक पारेषण शुल्कों का समायोजन करने में मदद मिलेगी और इस तरह बिजली की कीमत को कम रखा जा सकेगा। लिहाजा, बिजली के अंतिम उपयोगकर्ता – देश के नागरिकों को ही सरकारी सहयोग से फायदा पहुंचेगा।

इस योजना से 2030 तक 450 गीगावॉट स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।

यह योजना देश में दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करेगी तथा कार्बन उत्सर्जन को कम करके पारिस्थितिक रूप से सतत वृद्धि को बढ़ावा देगी। इससे बिजली और अन्य सम्बंधित सेक्टरों में कुशल और अकुशल, दोनों तरह के कामगारों के लिये बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होंगे।

यह योजना जीईसी-चरण-I के अतिरिक्त है, जो ग्रिड एकीकरण तथा लगभग 24 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा निकासी के संदर्भ में आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिल नाडु में पहले से चल रही है। उम्मीद है कि 2022 तक यह पूरी हो जायेगी। जिन सब-स्टेशनों के पास 4056.67 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) सहित 10,141.68 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली पारेषण परियोजनाएं हैं, यह योजना उन सब-स्टेशनों में 9,700 सर्किट किलोमीटर अतिरिक्त पारेषण लाइनों और उनमें 22,600 एमवीए की अतिरिक्त क्षमता जोड़ने के लिये है।

परियोजना का महत्व

इन परियोजनाओं के तहत पारेषण नेटवर्क विस्तार बिजली अधिशेष क्षेत्रों (power surplus regions) से बिजली की कमी वाले क्षेत्रों में बिजली के निर्बाध हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करेगा। इस प्रकार, यह उत्पादन संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करेगा और बिना किसी प्रसारण सीमा के अंतिम उपभोक्ताओं की मांगों को पूरा करेगा। इससे अक्षय ऊर्जा आधारित क्षमता के विकास में और मदद मिलेगी।

क्या होती है नवीकरणीय ऊर्जा?

  • यह ऐसी ऊर्जा है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन, ज्वार, जल और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को शामिल किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि यह कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है और इसे लगातार नवीनीकृत किया जाता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों (जो कि दुनिया के काफी सीमित क्षेत्र में मौजूद हैं) की अपेक्षा काफी विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं और ये सभी देशों को काफी आसानी हो उपलब्ध हो सकते हैं।
  • ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि इनके साथ कई प्रकार के आर्थिक लाभ भी जुड़े होते हैं।
  • इसमें निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
    • वायु ऊर्जा
    • सौर ऊर्जा
    • हाइड्रोपावर
    • बायोमास
    • जियोथर्मल

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की स्थिति

  • स्वच्छ पृथ्वी के प्रति ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए भारत ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी।
  • साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायो-पावर से 10 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5 गीगावाट क्षमता प्राप्त करना शामिल है।
  • इस महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के साथ ही भारत विश्व के सबसे बड़े स्वच्छ ऊर्जा उत्पादकों की कतार में शामिल हो जाएगा। यहाँ तक कि वह कई विकसित देशों से भी आगे निकल जाएगा।
  • वर्ष 2018 में देश की कुल स्थापित क्षमता में तापीय ऊर्जा की 84 फीसदी, नाभिकीय ऊर्जा की 1.95 फीसदी, पनबिजली की 13.09 फीसदी और नवीकरणीय ऊर्जा की 21.12 फीसदी हिस्सेदारी थी।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.3

 

वीर गाथा परियोजना

गणतंत्र दिवस 2022 कई मायनों में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में मनाया जा रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में, गणतंत्र दिवस समारोह में पहली बार कई नए कार्यक्रम किये जा रहे हैं। जीवन के सभी क्षेत्रों से उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करके इसे लोगों का उत्सव बनाने का प्रयास किया गया है। साथ ही गणतंत्र दिवस के आयोजनों की तैयारी की प्रक्रिया में भी लोगों में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना पैदा करें या फिर से जगाने की कोशिश करें।

वीर गाथा एक ऐसी अनूठी परियोजना है जिसे हमारे देश के स्कूली बच्चों को युद्ध नायकों और बहादुर लोगों की कहानियों से प्रेरित करने के लिए शुरू किया गया है, और इसे पूरे देश से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह के हिस्से के रूप में, रक्षा मंत्रालय ने यह सोच रखी है कि स्कूली छात्रों को वीरता पुरस्कार विजेताओं के आधार पर परियोजनाओं/ गतिविधियों को करने के लिए प्रेरित किया जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने पूरे देश में 21 अक्टूबर से 21 नवंबर, 2021 तक वीर गाथा परियोजना का आयोजन किया।

28 राज्यों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों में फैले 4,788 स्कूलों के 8,03,900 से अधिक छात्रों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और निबंध, कविता, चित्र और मल्टीमीडिया प्रस्तुतियों के रूप में अपनी प्रेरणादायक कहानियों को साझा किया। कई दौर के मूल्यांकन के बाद, 6 जनवरी, 2022 को ‘सुपर 25’ को चुना गया और विजेता घोषित किया गया। एक राष्ट्रीय स्तर की समिति ने सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टियों का चयन किया है।

विजेताओं को 10,000/- रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा और 25 जनवरी, 2022 को उनके नई दिल्ली आगमन पर सम्मानित किया जाएगा और वे रक्षा मंत्रालय के विशेष अतिथि के रूप में गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेंगे। रक्षा मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय और भारत सरकार सभी प्रतिभागियों को वीर गाथा परियोजना के प्रति उनके उत्साह के लिए बधाई और धन्यवाद देता है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1PRE

 

ब्रांड इंडिया अभियान

भारत का वाणिज्य मंत्रालय नए बाजारों में सेवाओं के साथ-साथ उत्पादों के निर्यात को गति देने के लिए “Brand India Campaign” शुरू करने की योजना बना रहा है।

Brand India Campaign

  • वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का निर्यात 400 बिलियन डॉलर को पार करने जा रहा है, से देखते हुए “Brand India Campaign” लांच किया जा रहा है।
  • “Brand India Campaign” भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए एक “छाता अभियान” (umbrella campaign) के रूप में काम करेगा।
  • यह अभियान रत्न और आभूषण, कपड़ा; चाय, कॉफी और मसाले जैसे वृक्षारोपण उत्पाद; स्वास्थ्य सेवा; शिक्षा, इंजीनियरिंग और फार्मा इत्यादि पर फोकस किया जायेगा।
  • यह गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी, विरासत, मूल्य और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • ब्रांड इंडिया अभियान इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (IBEF) द्वारा चलाया जाएगा।

अभियान का विज़न

इस अभियान के विज़न में हैं:

  1. नए संभावित बाजार
  2. भारतीय प्रतिभा
  3. परंपरा और आधुनिकता
  4. डिजिटल चैनलों और अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों के माध्यम से प्रचार कार्यक्रम

इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (IBEF)

IBEF वैश्विक बाजारों में भारतीय उत्पादों के वितरण और बिक्री के लिए 1996 में स्थापित एक भारत सरकार की निर्यात प्रोत्साहन एजेंसी है। यह वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत वाणिज्य विभाग द्वारा स्थापित किया गया था। यह भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है।

SOURCE-GK TODAY

PAPER-G.S.1PRE

 

खुंटकट्टी कानून

हाल ही में झारखंड के सिमडेगा के बेसराजारा बाजार टांड (Besrazara Bazaar Tand) में ग्रामीणों ने एक व्यक्ति की पिटाई कर दी और बाद में पुलिस की मौजूदगी में उसे जिंदा जला दिया।

मुख्य बिंदु

  • कथित तौर पर पेड़ों को अवैध रूप से काटने और उन्हें बाजार में बेचने के लिए उस व्यक्ति को जिंदा जला दिया गया था, जिसे ‘खुंटकट्टी’ कानून का उल्लंघन माना जाता है।
  • ग्रामीणों के अनुसार, ग्राम सभा की बैठकों के दौरान मृतक को कम से कम दो बार चेतावनी दी गई थी। उसे पेड़ों को काटने से रोकने के लिए कहा गया, लेकिन उसने चेतावनियों को नहीं सुना। इस प्रकार, ग्रामीणों ने उसे सबक सिखाने का फैसला किया।

खुंटकट्टी प्रणाली क्या है? (What is Khuntkatti System?)

‘खुंटकट्टी’ प्रणाली आदिवासी लोगों द्वारा भूमि का संयुक्त स्वामित्व है। इस प्रणाली के तहत, मुंडा आदिवासी आमतौर पर जंगलों को साफ करते हैं और भूमि को खेती के लिए उपयुक्त बनाते हैं। खेती योग्य भूमि पर पूरे कबीले का स्वामित्व होता है न कि किसी व्यक्ति विशेष का।

खुंटकट्टी प्रणाली का इतिहास

अंग्रेजों और बाहरी-जमींदारों के आगमन के साथ, इस प्रणाली को 1874 तक जमींदारी प्रणाली से बदल दिया गया था। यह आदिवासियों के बीच कर्ज और जबरन मजदूरी का कारण बना। ऋणग्रस्तता के परिणामस्वरूप, बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा आदिवासी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया था।

विद्रोह का प्रभाव

बिरसा मुंडा आंदोलन ने उनकी समस्याओं के प्रति सरकार के रवैये को जमीनी स्तर पर प्रभावित किया। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सरकार ने 1902 और 1910 के दौरान उनके लिए सर्वेक्षण और बंदोबस्त संचालन किया। अंत में, सरकार ने अनिवार्य बेगार प्रणाली को समाप्त करने का निर्णय लिया और 1903 का काश्तकारी अधिनियम पारित किया। 1903 के काश्तकारी अधिनियम ने मुंडारी खुंटकट्टी प्रणाली (Mundari Khuntkatti System) को मान्यता दी। सरकार ने 1908 में छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम भी पारित किया।

SOURCE-DANIK JAGRAN

PAPER-G.S.2

 

‘Plan Bee’

प्लान बी (Plan Bee) को उत्तरी सीमांत रेलवे द्वारा लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य हाथियों को रेल की पटरियों से दूर रखना है। इस योजना ने हाल ही में भारतीय रेलवे से सर्वश्रेष्ठ नवाचार पुरस्कार (Best Innovation Award) जीता।

प्लान बी क्या है?

यह योजना रेलवे पटरियों के साथ कुछ उपकरणों को स्थापित करती है। ये उपकरण मधुमक्खियों के झुंड की भिनभिनाहट की आवाज़ पैदा करते हैं। मधुमक्खियों की भिनभिनाहट से हाथी चिड़चिड़े हो जाते हैं। और आवाज से दूर रहने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार, भिनभिनाहट की आवाज पैदा करके, यह उपकरण हाथियों को ट्रैक से दूर रखता है। इस डिवाइस द्वारा उत्पन्न ध्वनि 400 मीटर की दूरी से सुनी जा सकती है।

डिवाइस के बारे में

यह उपकरण सबसे पहले असम में कामाख्या स्टेशन के पास स्थापित किया गया था। और आज यह डिवाइस 56 से अधिक स्थानों पर स्थापित किया जा चुका है। ये स्थान उत्तर सीमांत रेलवे के अधिकार क्षेत्र में हैं। ‘प्लान बी’ ने अब तक 950 हाथियों को बचाया है।

योजना की आवश्यकता

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, 2009 से 2021 के बीच, ट्रेन दुर्घटनाओं में 186 से अधिक हाथियों की मौत हुई। इनमें से असम में ट्रेन हादसों के कारण सबसे ज्यादा हाथियों की मौत हुई। इसके बाद पश्चिम बंगाल और ओडिशा का स्थान है।

रेल हादसों में हाथियों की बचाव के अन्य उपाय

पटरियों के किनारे की वनस्पति को अक्सर साफ किया जाता है। यह लोको पायलट (ट्रेन चालक) को एक बेहतर दृश्य प्रदान करता है। हाथी क्षेत्रों के बारे में लोको पायलट को सचेत करने के लिए साइनेज बोर्ड का उपयोग किया जाता है। हाथियों की सुरक्षित आवाजाही के लिए रेलवे ओवरपास और अंडरपास बनाता है। लोको पायलटों को सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच संवेदनशील हिस्सों में ट्रेन की गति कम करने का निर्देश दिया गया है।

ट्रेन हादसों में हाथियों की मौत को रोकने के लिए ईको-ब्रिज (Eco – Bridge) समाधान क्या है?

इको ब्रिज प्राकृतिक गलियारे हैं। वे आवास में लिंक हैं जो दो बड़े वन्यजीव क्षेत्रों को जोड़ते हैं। वे आमतौर पर हाथी गलियारों में निर्मित होते हैं। कभी-कभी, हाथी गलियारे के माध्यम से सड़क और रेलवे निर्माण हाथियों के एक आवास से दूसरे आवास में जाने में बाधा डालता है। ऐसे मामलों में, सड़क और रेलवे ट्रैक के ऊपर या नीचे एक प्राकृतिक लिंक उन्हें गलियारे को पार करने में मदद करता है।

SOURCE-GK TODAY

PAPER-G.S.1PRE

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