केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा इसरो की चार बड़ी अंतरिक्ष परियोजनाओं को मंजूरी:
परिचय:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 18 सितंबर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की चार बड़ी अंतरिक्ष परियोजनाओं को मंजूरी दी, जिनमें अगला चंद्र मिशन, शुक्र ग्रह के लिए मिशन, चल रहे गंगायान मिशन के अनुवर्ती कार्य और एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना तथा ‘नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV)’ का निर्माण करने की परियोजना भी शामिल है।
- इन सभी परियोजनाओं की स्वीकृति, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा निर्धारित विजन 2047 के अनुरूप हैं।
चंद्रयान-4 मिशन:
- चंद्रयान-4 मिशन की बात करें तो इस परियोजना को 36 महीनों के लिए 2,014 रुपये में मंजूरी दी गई थी। बजट में अंतरिक्ष यान का विकास और निर्माण, दो LVM3 प्रक्षेपण, बाहरी डीप स्पेस नेटवर्क सहायता और डिजाइन सत्यापन के लिए विशेष परीक्षण आयोजित करना शामिल है, जिससे अंततः चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग होगी और एकत्रित चंद्र नमूनों के साथ पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी होगी।
- डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्र नमूना संग्रह और विश्लेषण को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रमुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया जाएगा। उद्योग और शिक्षा जगत की भागीदारी से इस मिशन के अनुमोदन के 36 महीनों के भीतर पूरा होने की उम्मीद है।
- उल्लेखनीय है कि भारत की योजना 2040 तक मानव को चंद्रमा पर भेजने की है।
वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM):
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) को मार्च 2028 में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है – जब पृथ्वी और शुक्र सबसे करीब होंगे।
- VOM शुक्र की कक्षा में एक वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान भेजने पर ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि इसकी सतह और उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सके।
- कैबिनेट ने VOM के लिए 1,236 करोड़ रुपये आवंटित किए, जिनमें से 824 करोड़ रुपये अंतरिक्ष यान पर खर्च किए जाएंगे।
- 2014 में मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) के बाद VOM भारत का दूसरा अन्तर्ग्रही मिशन होगा।
- माना जाता है कि शुक्र का निर्माण पृथ्वी के समान परिस्थितियों में हुआ था। यह ग्रह यह समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है कि ग्रहों का वातावरण किस तरह से बहुत अलग तरीके से विकसित हो सकता है। अंतरिक्ष विभाग द्वारा पूरा किया जाने वाला VOM शुक्र की कक्षा में एक वैज्ञानिक अंतरिक्ष यान की परिक्रमा करने के लिए परिकल्पित है।
- इसका उद्देश्य शुक्र के परिवर्तन के अंतर्निहित कारणों का अध्ययन करना है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह कभी रहने योग्य था और पृथ्वी के काफी समान था। यह अन्वेषण शुक्र और पृथ्वी दोनों सिस्टर ग्रहों के विकास को समझने में एक अमूल्य सहायता होगी।
गगनयान मिशन तथा भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना:
- भारत सरकार ने अमृत काल के दौरान भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक विस्तारित दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन) और 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय लैंडिंग की परिकल्पना की गई है।
- इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गगनयान मिशन को जारी रखने और 20,193 करोड़ रुपये की लागत से भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना को भी मंजूरी दी। इसरो ने BAS के पहले मॉड्यूल के सभी प्रक्षेपणों और संचालन को पूरा करने के लिए दिसंबर 2029 की समय सीमा तय की है।
- इस परियोजना में आठ मिशन होंगे, जिनमें से अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए चार मिशन शामिल होगें। यह गगनयान मिशन के तहत पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए पहले से स्वीकृत दो मानव रहित और एक मानवयुक्त मिशन के अतिरिक्त होगा।
‘नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV)’ का निर्माण:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी पाने वाली चौथी परियोजना ‘नेक्स्ट जनरेशन लॉन्च व्हीकल (NGLV)’ का निर्माण है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में इसरो की लॉन्च क्षमता को मौजूदा 10T से बढ़ाकर 30T तक ले जाएगा।
- इस NGLV का विकास भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और संचालन तथा 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय चालक दल के उतरने की क्षमता विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
- NGLV में वर्तमान LVM3 की तुलना में सिर्फ 1.5 गुना लागत के साथ तीन गुना अधिक पेलोड क्षमता होगी, तथा इसमें पुन: प्रयोज्यता भी होगी, जिसके परिणामस्वरूप अंतरिक्ष तक कम लागत में पहुंच और मॉड्यूलर ग्रीन प्रोपल्शन सिस्टम उपलब्ध होंगे।
- स्वीकृत कुल निधि 8240.00 करोड़ रुपये है और इसमें विकास लागत, तीन विकासात्मक उड़ानें, आवश्यक सुविधा स्थापना, कार्यक्रम प्रबंधन और प्रक्षेपण अभियान शामिल हैं। इसमें 96 महीने लगेंगे – पहला लॉन्च 84 महीनों में होगा।
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