सेबी प्रमुख पर हिंडेनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट:
चर्चा में क्यों है?
- अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच के खिलाफ कई आरोप लगाए जाने के एक दिन बाद, सेबी अपने अध्यक्ष के बचाव में सामने आया और कहा कि नियामक के पास हितों के टकराव से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए पर्याप्त आंतरिक तंत्र हैं, जिसमें प्रकटीकरण ढांचा और अस्वीकृति का प्रावधान शामिल है। साथ ही सेबी के अध्यक्ष द्वारा अपने प्रतिभूतियों की होल्डिंग और उनके हस्तांतरण के संदर्भ में आवश्यक प्रासंगिक प्रकटीकरण समय-समय पर किए गए हैं।
हिंडनबर्ग की नवीनतम रिपोर्ट में क्या दावा किया गया?
- अपनी नवीनतम रिपोर्ट में, हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया कि माधबी पुरी बुच और उनके पति के पास अडानी मनी साइफनिंग घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ऑफशोर फंड में हिस्सेदारी थी।
- शॉर्ट-सेलर ने आरोप लगाया कि दंपति ने ग्लोबल डायनेमिक ऑपर्च्युनिटीज फंड (GDOF) में निवेश किया था, जिसमें गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी ने निवेश किया था। उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट में दावा किया है कि बरमूडा स्थित ग्लोबल ऑपर्च्युनिटीज फंड के उप-निधियों में से एक में बुच और उनके पति 2015 निवेशक थे।
सेबी प्रमुख ने आरोपों को खारिज किया:
- सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति ने भी हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा उन पर लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए इसे “चरित्र हनन” का प्रयास बताया। एक संयुक्त बयान में माधबी पुरी बुच और धवल बुच ने कहा कि आरोप “निराधार” और “किसी भी सच्चाई से रहित” हैं, और उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका वित्त एक खुली किताब है।
- अपने दूसरे बयान में उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अपने नवीनतम आरोपों में उल्लिखित ऑफशोर फंडों में उनका निवेश 2015 में किया गया था, जब वे दोनों सिंगापुर में रहने वाले ‘निजी नागरिक’ थे। इसमें कहा गया है कि यह निवेश सेबी में पूर्णकालिक सदस्य के रूप में शामिल होने से लगभग 2 साल पहले किया गया था।
हिंडनबर्ग के आरोपों पर सेबी का ज़बाब:
- बाजार नियामक सेबी ने अपने अध्यक्ष का समर्थन करते हुए कहा कि अध्यक्ष ने संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से भी खुद को अलग कर लिया है।
- सेबी का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बाजार नियामक के बोर्ड में आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ, कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव मनोज गोविल और आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव के अलावा चार पूर्णकालिक निदेशक भी शामिल हैं। सेबी के बड़े फैसले बोर्ड की बैठकों में लिए जाते हैं।
- सेबी के अनुसार उसने पिछले कुछ वर्षों में एक मजबूत नियामक ढांचा तैयार किया है जो न केवल सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप है बल्कि निवेशकों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। ऐसे में सेबी ने निवेशकों को ऐसी रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया देने से पहले शांत रहने और उचित अध्ययन करने की सलाह भी दी।
- सेबी का कहना है कि निवेशक इस रिपोर्ट में दिए गए अस्वीकरण पर भी ध्यान दे सकते हैं, जिसमें कहा गया है कि पाठकों को यह मान लेना चाहिए कि हिंडनबर्ग रिसर्च के पास रिपोर्ट में शामिल प्रतिभूतियों में शॉर्ट पोजीशन हो सकती है।
अडानी मामले के जाँच को लेकर सेबी का ज़बाब:
- साथ ही सेबी द्वारा अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की विधिवत जांच की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 जनवरी, 2024 के अपने आदेश में उल्लेख किया कि सेबी ने अडानी समूह में 24 में से 22 जांच पूरी कर ली है। इसके बाद, मार्च 2024 में एक और जांच पूरी हो गई, और एक शेष जांच पूरी होने के करीब है।
- इस मामले में चल रही जांच के दौरान जानकारी मांगने के लिए 100 से अधिक समन, करीब 1,100 पत्र और ईमेल जारी किए गए हैं। हिंडनबर्ग को जारी कारण बताओ नोटिस पर सेबी ने कहा कि यह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करके जारी किया गया है। इस मामले में कार्यवाही जारी है और इसे स्थापित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन में निपटाया जा रहा है।
‘हितों के टकराव’ का मुद्दा क्या होता है?
- हितों का टकराव तब होता है जब कोई संस्था या व्यक्ति, व्यक्तिगत हितों और पेशेवर कर्तव्यों या जिम्मेदारियों के बीच टकराव के कारण अविश्वसनीय हो जाता है।
- जब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, तो हितों के टकराव वाले पक्ष को आमतौर पर खुद को हटाने के लिए कहा जाता है या कानूनी तौर पर खुद को अलग करने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
- कभी-कभी, किसी स्थिति से खुद को अलग करने के बजाय, आप बस हितों के टकराव का खुलासा कर सकते हैं।
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