प्रधानमंत्री मोदी की तीसरी पारी में भारत और विश्व संबंध:
परिचय:
- नरेंद्र मोदी सरकार की तीसरी पारी में विदेश नीति कैसी हो सकती है? उल्लेखनीय है कि विदेश मंत्रालय में शीर्ष पर कोई बदलाव न होने से मोटे तौर पर निरंतरता का संकेत मिलता है।
- हालांकि, बदलती वैश्विक स्थिति और भारतीय रणनीतिक अनिवार्यताओं के आधार पर, विशिष्ट क्षेत्रों के लिए एजेंडे में कुछ संशोधन और पुनर्निर्धारण किया जा सकता है।
पाकिस्तान को छोड़कर अन्य पड़ोसियों के साथ संबंध:
- भारत के पड़ोस के सात देशों – बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स – के नेता नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। हालांकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और म्यांमार को आमंत्रित नहीं किया गया।
- उल्लेखनीय है कि भारत को पड़ोस में अपनी कूटनीति में चुस्त-दुरुस्त रहना होगा और पारस्परिकता पर जोर दिए बिना एकतरफा उदार होना होगा। कई पड़ोसी एक संयमित और संवेदनशील मोदी 3.0 की उम्मीद कर रहे हैं, न कि एक दबंग नई दिल्ली की, जो अक्सर अपनी ताकत दिखाती है।
- अफ़ग़ानिस्तान के साथ संबंध: अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान के साथ कोई राजनयिक संबंध नहीं है। मानवीय सहायता में मदद करने के लिए नियुक्त एक तकनीकी टीम के माध्यम से निम्न-स्तरीय जुड़ाव है, लेकिन अभी उच्च-स्तरीय जुड़ाव से इनकार किया गया है। ऐसे में दोनों के मध्य कामकाजी संबंध जारी रहने की संभावना है।
- म्यांमार के साथ संबंध:
- म्यांमार के साथ संबंधों में चुनौती जुंटा सरकार से बातचीत करने की है, जो आंतरिक रूप से सशस्त्र प्रतिरोध में व्यस्त है। अक्टूबर 2023 में लड़ाई शुरू होने के बाद से म्यांमार की सरकारी सेना रक्षात्मक मुद्रा में है।
- भारतीय रणनीतिक हलकों में यह सुझाव दिया गया है कि सरकार के गिरने की संभावना को देखते हुए, नई दिल्ली को विपक्षी समूहों से बातचीत शुरू कर देनी चाहिए।
- मालदीव के साथ संबंध:
- राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़ू की यात्रा, जो “भारत को बाहर करो” के नारे के साथ सत्ता में आए थे, विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी।
- भारत द्वारा मालदीव में भारतीय वायु सेना की तैनाती करने वाले सैन्य कर्मियों की जगह प्रशिक्षित तकनीकी कर्मियों को नियुक्त करने के बाद, जैसा कि मुइज़ू सरकार ने अनुरोध किया था, नई दिल्ली और माले बातचीत के लिए तैयार दिखाई दिए।
- बांग्लादेश के साथ संबंध: “घुसपैठियों” के बारे में अभियान संबंधी बयानबाजी ने अक्सर ढाका के साथ संबंधों को खराब किया है। मोदी 3.0 के दौरान सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा अधिक संयम बरतना लाभकारी होने की संभावना है, क्योंकि दोनों पक्षों का उग्रवाद, कट्टरपंथ और आतंकवाद का मुकाबला करने में एक समान उद्देश्य है।
- भूटान के साथ संबंध: भारत अपनी पंचवर्षीय योजना, वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज और गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी परियोजना में सहायता के साथ थिम्पू का समर्थन करने के लिए तैयार है। यह जारी रहने की उम्मीद है, खासकर तब जब चीन अपनी शर्तों पर भूटान के साथ सीमा पर बातचीत करने की कोशिश कर रहा है। भारत भूटान को अपने पक्ष में करना चाहता है, जो दो एशियाई दिग्गजों के बीच फंसा हुआ है।
- नेपाल के साथ संबंध:
- नेपाल के साथ संबंध एक नाजुक चुनौती पेश कर रहे हैं। नेपाल में चीन की मजबूत राजनीतिक पकड़ है और नेपाली सरकार, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं, भारत के खिलाफ बीजिंग कार्ड का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है।
- नेपाल की एकतरफा रूप से फिर से बनाई गई सीमाओं को राष्ट्रीय मुद्रा पर रखने का निर्णय बताता है कि यह जारी रहेगा।
- ऐसे में भारत को नेपाली लोगों का विश्वास फिर से हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, जो 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद झटका खा गए थे।
- श्रीलंका के साथ संबंध:
- श्रीलंका के वित्तीय संकट में मदद करने के बाद वहां की सड़कों पर भारत द्वारा अर्जित सद्भावना दिखाई देने लगी हैं। हालांकि कच्चातिवु द्वीप विवाद एक खटास पैदा कर रहा है।
- ऐसे में वित्तीय सहायता के साथ-साथ निवेश के साथ श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना इस साल के अंत में उस देश में होने वाले चुनावों से पहले एक महत्वपूर्ण कार्य होगा।
- सेशेल्स और मॉरीशस के साथ संबंध:
- इन देशों में बंदरगाहों के बुनियादी ढांचे को उन्नत करने में मदद करने की भारत की योजना इसकी समुद्री कूटनीति और सुरक्षा प्रयास का हिस्सा है।
- मॉरीशस में अगलेगा द्वीप पर कुछ सफलता प्राप्त हुई है, लेकिन सेशेल्स में असम्पशन द्वीप को विकसित करना एक चुनौती बन गया है।
पाकिस्तान के साथ संबंधों की जटिलता:
- 2014 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज को आमंत्रित किया था। लेकिन 2016 में पठानकोट और उरी में हुए आतंकवादी हमलों के बाद यह संबंध और भी खराब हो गए।
- 2019 में पुलवामा आतंकी हमला और भारत का बालाकोट एयर स्ट्राइक ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को एक गंभीर झटका लगा। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक परिवर्तन अंतिम झटका था जिसके कारण राजनयिक संबंधों में गिरावट आई।
- तब से पाकिस्तान में हालात बदल गए हैं। 2019 में प्रधानमंत्री रहे इमरान खान जेल में हैं, अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है और शरीफ परिवार, जिन्हें अब सेना का समर्थन प्राप्त है, फिर से सत्ता में आ गए हैं। नवाज और उनके भाई प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उम्मीद और शांति का संदेश दिया है।
- मोदी सरकार ने जवाब दिया है कि “सुरक्षा” – यानी पाक समर्थित आतंकवाद का मुकाबला करना – भारत की प्राथमिकता है। पिछले नौ सालों से नई दिल्ली की नीति यही रही है कि “आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते”। पिछले कुछ दिनों में जम्मू-कश्मीर में हुए सिलसिलेवार आतंकी हमलों ने संभावित बातचीत के पक्ष में जनमत के निर्माण की संभावना को खत्म कर दिया है।
पश्चिमी देशों या ग्लोबल उत्तर के साथ सम्बन्ध:
- मोदी सरकार का पश्चिमी देशों के साथ जुड़ाव पिछली कई सरकारों की तुलना में ज़्यादा लेन-देन वाला रहा है। इसने अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत रणनीतिक संबंध भी विकसित किए हैं।
- अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को दोनों दलों का समर्थन प्राप्त है और नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से इस पर कोई असर पड़ने की उम्मीद नहीं है। रक्षा और अत्याधुनिक तकनीक ही आगे चलकर संबंधों को आगे बढ़ाएगी।
- फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों में सुधार हुआ है, और ब्रिटेन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने के लिए उत्सुक है। भारत और यूरोपीय संघ भी अपनी अर्थव्यवस्थाओं के पारस्परिक लाभ के लिए FTA करने के इच्छुक हैं।
- कनाडा के साथ राजनीतिक संबंध – जब से प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर एक और खालिस्तानी अलगाववादी की हत्या में हाथ होने का आरोप लगाया है, तब से गिरावट की स्थिति में हैं – कम से कम 2025 के कनाडाई चुनावों तक तनावपूर्ण बने रहने की संभावना है।
- ऐसे में भारत के दृष्टिकोण से, आदर्श परिदृश्य यह होगा कि भारतीय हितों की रक्षा की जाए और पश्चिमी पूंजी और प्रौद्योगिकी से लाभ उठाया जाए, जबकि उसे अपने घरेलू मामलों पर व्याख्यान नहीं दिया जाए। इटली में G-7 में प्रधानमंत्री की भागीदारी इस दिशा में कदम उठाने का संकेत दे सकती है।
चीन के साथ चुनौतीपूर्ण संबंध:
- दोनों देशों के बीच सीमा पर गतिरोध अपने पांचवें साल में प्रवेश करने वाला है और मोदी 3.0 के सामने चुनौती कठिन और पेचीदा है। भारत का कहना है कि जब तक सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, तब तक सब कुछ ठीक नहीं हो सकता।
- भारत LAC के दोनों तरफ से सेना को पूरी तरह से पीछे हटना चाहता है और फिर तनाव कम करना चाहता है, और सीमा के दोनों ओर से 50,000-60,000 सैनिकों और हथियारों को हटाने में बहुत समय लगेगा।
- ऐसे में उच्च स्तरीय बैठकें, खासकर जुलाई के पहले सप्ताह में कजाकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मोदी की बैठक, इस स्थिति को खोलने की संभावना पैदा कर सकती है।
रूस के साथ संबंधों को लेकर दुविधा:
- यूक्रेन में युद्ध के कारण रूस के साथ भारत के संबंधों की परीक्षा हो रही है। रक्षा आवश्यकताएँ भारत की रूस पर निर्भरता का मुख्य कारण हैं, और सस्ते तेल की उपलब्धता ने अब ऊर्जा की आपूर्ति में इजाफा कर दिया है।
- वहीं पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद भी रूस ध्वस्त नहीं हुआ है, और अब इसे व्यापक रूप से युद्ध में बढ़त प्राप्त है।
- उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा स्विट्जरलैंड में 15-16 जून को यूक्रेन संघर्ष को लेकर होने वाले उच्चतम स्तर के शांति सम्मेलन में भाग न लेने की संभावना है, क्योंकि रूस उस कमरे में नहीं होगा। लेकिन भारत से आधिकारिक स्तर पर प्रतिनिधित्व करने और संवाद और कूटनीति पर जोर देने की उम्मीद है।
पश्चिम एशिया में भारत का महत्वपूर्ण हित दाव पर:
- मोदी 1.0 और 2.0 सरकार ने सऊदी अरब से लेकर इजरायल, यूएई से लेकर ईरान, कतर से लेकर मिस्र तक इस क्षेत्र के देशों और नेताओं के साथ संबंध बनाए। इन संबंधों में ऊर्जा सुरक्षा, निवेश और इस क्षेत्र में मौजूद 90 लाख भारतीय प्रवासी भारत के लिए प्रमुख राष्ट्रीय हित रहें हैं।
- पश्चिम एशिया के भविष्य को लेकर, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), I2U2, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण पारगमन गलियारा (INSTC) सभी को गेम चेंजर माना जाता है, लेकिन इजरायल-हमास संघर्ष ने अनिश्चितता पैदा कर दी है।
- ऐसे में भारत गाजा में युद्ध का जल्द से जल्द अंत देखना चाहेगा।
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