भारत – बांग्लादेश के मध्य तीस्ता जल बंटवारे से जुड़ा माद्दा:
चर्चा में क्यों हैं?
- बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की हाल की भारत यात्रा के दौरान, 22 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “बांग्लादेश में तीस्ता नदी के संरक्षण और प्रबंधन पर चर्चा करने के लिए एक तकनीकी टीम जल्द ही बांग्लादेश का दौरा करेगी”।
- इस टिप्पणी ने बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल बंटवारे की संधि के बारे में नई अटकलों को जन्म दिया, जो दोनों देशों के मध्य लंबित एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौता है जो एक दशक से अधिक समय से लंबित है।
‘तीस्ता संधि’ पर भारत का रुख क्या है?
- प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बाद विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने मीडिया को बताया कि “दोनों नेताओं के बीच चर्चा जल बंटवारे के बारे में कम और तीस्ता के भीतर जल प्रवाह के प्रबंधन के बारे में अधिक थी”।
- वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार के रुख पर सवाल उठाया और राज्य की भागीदारी के बिना बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं करने की बात की है।
‘तीस्ता संधि’ से पश्चिम बंगाल क्यों नाराज है?
- उल्लेखनीय भारत और बांग्लादेश के बीच कुल 54 नदियां प्रवाहित होती हैं और नदी जल का बंटवारा दोनों देशों में मध्य एक अहम द्विपक्षीय मुद्दा रहा है।
- फरक्का बैराज के निर्माण के बाद 1996 में भारत और बांग्लादेश गंगा के जल के बंटवारे पर सहमत हुए और 2010 के दशक में तीस्ता के बंटवारे का मुद्दा बातचीत के लिए आया।
- 2011 में, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन-II सरकार के दौरान, भारत और बांग्लादेश तीस्ता पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के करीब थे, लेकिन ममता बनर्जी इस समझौते से बाहर हो गईं और तब से यह समझौता लंबित है। ममता बनर्जी ने बताया कि अगर तीस्ता का पानी बांग्लादेश के साथ साझा किया जाता है, तो उत्तर बंगाल के लाखों लोग गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
तीस्ता नदी का प्रवाह तंत्र क्या है?
- तीस्ता नदी ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है, यह उत्तरी सिक्किम में लगभग 5,280 मीटर की ऊँचाई पर ‘त्सो ल्हामो’ झील से निकलती है। नदी सिक्किम से बहते हुए बंगाल पहुंचती है और वहां से बांग्लादेश चली जाती है। बांग्लादेश में यह ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।
- उल्लेखनीय है कि तीस्ता बांग्लादेश की चौथी सबसे बड़ी सीमा पार नदी है और इसका बाढ़ का मैदान बांग्लादेश में 2,750 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है। लेकिन नदी का 83% जलग्रहण क्षेत्र भारत में है और शेष 17% बांग्लादेश में है, जो इसकी 8.5% आबादी और 14% फसल उत्पादन का समर्थन करती है।
क्या है तीस्ता नदी परियोजना?
- तीस्ता नदी परियोजना तीन उद्देश्यों को सामने रखकर तैयार की गई है। इसमें बाढ़ पर अंकुश लगाना, कटाव रोकना और जमीन हासिल करना शामिल है।
- बांग्लादेश वाले हिस्से के अपस्ट्रीम में एक बहुउद्देशीय बैराज का निर्माण इस परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। बैराज के निचले हिस्से में नदी के बहाव को नियंत्रित कर उसे एक निश्चित आकार में लाने का प्रयास किया जाएगा। कुछ स्थानों पर नदी की चौड़ाई 5 किलोमीटर तक है, इसे कम किया जाएगा। ड्रेजिंग के जरिए नदी की गहराई बढ़ाई जाएगी। तटबंधों की मरम्मत कर उनको मजबूत बनाने का काम भी किया जाएगा।
- यह परियोजना पूरी होने पर तीस्ता के किनारे स्थित सैकड़ों एकड़ जमीन का पुनरुद्धार होगा। इतना ही नहीं बाढ़ और कटाव पर अंकुश लगने की वजह से तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों की मुश्किलें भी कम हो जाएंगी।
भारत और बांग्लादेश के बीच क्या है विवाद?
- बांग्लादेश तीस्ता नदी के पानी का 50 फीसदी हिस्सा चाहता है, खासकर शुष्क मौसम के दौरान जब नदी का प्रवाह काफी कम हो जाता है। यह पानी बांग्लादेश में सिंचाई, मछली पालन और पीने के पानी के लिए महत्वपूर्ण है।
- भारत ने बांग्लादेश के लिए 37.5 फीसदी और भारत के लिए 42.5 फीसदी हिस्सेदारी का प्रस्ताव रखा है, शेष 20 फीसदी पर्यावरणीय प्रवाह के लिए दिया है।
- साथ ही भारत ने पश्चिम बंगाल में सिंचाई के लिए नहरें बनाने की योजना बनाई है। बांग्लादेश का कहना है कि इससे उसके क्षेत्र में नदी का प्रवाह और कम हो जाएगा। इससे किसानों और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा।
तीस्ता प्रोजेक्ट पर चीन की नजर क्यों है?
- तीस्ता नदी से चीन का दूर तक कोई संबंध नहीं है, बावजूद इसके वह यहां नजरें जमाए बैठा है। असल में चीन ने बांग्लादेश को प्रस्ताव दिया है कि वह बांग्लादेश सरकार के इस एक बिलियन डॉलर की परियोजना की लागत का 15 प्रतिशत वहन करेगा, जबकि बाकी चीनी ऋण के रूप में होगा।
- चीन इस परियोजना पर भारी रकम लगाने के लिए यूं ही तैयार नहीं है। दरअसल, प्रोजेक्ट साइट चिकन्स नेक के करीब है। यह पश्चिम बंगाल में लगभग 28 किलोमीटर का वो हिस्सा है, जो पूर्वोत्तर को बाकी देश से जोड़ता है। इसके पास बांग्लादेश और नेपाल भी हैं। ऐसे में अगर चीन बांग्लादेश को अपनी तरफ मोड़ ले तो सुरक्षा के लिहाज से यह भारत के लिए खतरा है।
- फिलहाल तीस्ता नदी को लेकर जो कुछ भी चल रहा है उसमें भारत चीन से एक कदम आगे है। तीस्ता नदी के संरक्षण पर बातचीत के लिए भारतीय तकनीकी दल बांग्लादेश जाएगा। चीन को परियोजना से दूर रख भारत और बांग्लादेश नदी के जल के प्रबंधन और संरक्षण के लेकर साझा कार्य कर सकते हैं जो दोनों देशों के हित में है।
पश्चिम बंगाल फरक्का संधि (1996) की बात क्यों कर रहा है?
- उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के साथ गंगा जल बंटवारे की संधि 2026 में 30 साल पूरे करेगी और इस समझौते का नवीनीकरण किया जाएगा।
- मुख्यमंत्री ने बताया कि गंगा जल बंटवारे की फरक्का संधि (1996) ने कई वर्षों में भारत और बांग्लादेश के पूर्वी हिस्से में नदी की आकृति को बदल दिया है, जिससे पश्चिम बंगाल को नुकसान हुआ है और राज्य में पानी की उपलब्धता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे लाखों लोग अपने निवास स्थान से विस्थापित हो गए हैं, जिससे वे बेघर हो गए हैं और उनकी आजीविका भी खत्म हो गई है।
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