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देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव को रोकने के लिए सुधार की आवश्यकता:

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देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में रिसाव को रोकने के लिए सुधार की आवश्यकता:

परिचय:

  • एक मशहूर कहावत है: “किसी व्यक्ति को एक मछली दो, और आप उसे एक दिन के लिए भोजन दोगे। लेकिन यदि किसी व्यक्ति को मछली पकड़ना सिखा देते हो, तो आप उसे जीवन भर खिलाने का काम कर रहे हो”।
  • उपर्युक्त संदर्भों में अगर भारत के सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की तुलना करें तो, कुछ अर्थशास्त्री ऐसे हैं जो सोचते हैं कि खाद्य सब्सिडी – वित्त वर्ष 2022-23 में 2.7 लाख करोड़ रुपये – के एक हिस्से को भारत में कृषि-अनुसंधान, कौशल विकास, ग्रामीण सड़कों आदि में निवेश के रूप में, पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिए, जो खाद्य सब्सिडी की तुलना में बहुत अधिक रिटर्न देने वाला होगा। जबकि कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि खाद्य सब्सिडी निवेश है, न कि बर्बादी, इसलिए यह जारी रहना है। इस संदर्भ में, तीन प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालना महत्व है।

भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी समस्या:

  • सबसे पहले, अगर देश में संचालित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का उद्देश्य गरीब लोगों को सहायता देना है, तो क्या लगभग 57 प्रतिशत आबादी को इस समर्थन करने की आवश्यकता है, जो कि मुफ़्त भोजन के लिए वर्तमान कवरेज है?
  • दूसरा, इस सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में लगभग 28 प्रतिशत मुफ़्त भोजन कभी भी इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाता है?
  • तीसरा, क्या मुफ़्त चावल और गेहूँ पोषण सुरक्षा की समस्या को हल कर सकते हैं, खासकर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच, जो कि खाद्य और पोषण सुरक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा है?

PDS के तहत आवश्यकता से अधिक लोगों का कवरेज:

  • उल्लेखनीय है कि देश में गरीब लोगों के सटीक संख्या को लेकर मतभेद हो सकता है लेकिन विभिन्न आंकड़े देश में गरीबी जनसँख्या को आबादी के लगभग 15 के आसपास रखते हैं।
  • उदाहरण के रूप में विश्व बैंक (2022) के आंकड़ों से पता चलता है कि 12.9 प्रतिशत भारतीय आबादी प्रतिदिन 2.15 डॉलर (PPP), जो गरीबी का चरम स्तर है, से कम पर गुजारा करती है। नीति आयोग की रिपोर्ट (2024) कहती है कि पिछले 9 वर्षों में 24.8 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं, 2013-14 से 2022-23 के बीच बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MDPI) 29.17 प्रतिशत से घटकर 11.28 प्रतिशत हो गया है।
  • ऐसे में अगर सरकार 15 प्रतिशत आबादी को भी मुफ्त भोजन देना चाहती है, जो बेहद गरीब है, तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत वर्तमान कवरेज आबादी का लगभग 57 प्रतिशत है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लीकेज की समस्या:

  • प्रो अशोक गुलाटी के अनुसार लेकिन देश PDS प्रणाली से जुडी अधिक गंभीर समस्या, इस प्रणाली से जुड़े लीकेज की है।
  • उन्होंने इसको लेकर अपने व्याख्या में अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के दौरान घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) के इकाई-स्तरीय आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जो PDS के तहत लोगों को मिले चावल और गेहूं की मात्रा के साथ-साथ राज्य सरकारों द्वारा किए गए किसी भी टॉप-अप का विवरण देता है। इसके बाद इसकी तुलना PMGKAY के तहत वितरण के लिए भारतीय खाद्य निगम (FCI) से की गई उठान, साथ ही गैर-PMGKAY राज्य-स्तरीय आवंटन से की किया है।
  • उनका मानना है कि निष्कर्षों से एक महत्वपूर्ण विसंगति का पता चलता है – आवंटित अनाज का 28 प्रतिशत, जो लगभग 19.69 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) चावल और गेहूं है, इच्छित प्राप्तकर्ताओं तक पहुंचने में विफल रहता है।
  • उल्लेखनीय है कि चावल और गेहूं के 28 प्रतिशत के लीकेज का मतलब लगभग 69,108 करोड़ रुपये का नुकसान है। और यह एक वार्षिक घाटा है, जो लागत बढ़ने के साथ-साथ साल दर साल बढ़ता ही रहेगा। ऐसे में यह सबसे बड़े वार्षिक घोटालों में से एक है, जिसे गरीबों की मदद के नाम पर दबा दिया जाता है।
  • प्रो गुलाटी का मानना है कि भारत सरकार PDS में बड़े लीकेज के बारे में जानती है और इसको रोकने को लेकर प्रयासरत भी है, जैसा कि अनाज प्रबंधन पर उच्चाधिकार प्राप्त शांता कुमार समिति ने अपनी 2015 की रिपोर्ट में बताया था। उस समय, 2011-12 के HCES के आधार पर लीकेज का अनुमान लगभग 46 प्रतिशत था। 2016 में, भारत सरकार ने बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और वास्तविक समय के लेनदेन ट्रैकिंग को एकीकृत करके लीकेज को रोकने के लिए उचित मूल्य की दुकानों पर पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीनें पेश कीं। आज, देश भर में लगभग 90 प्रतिशत उचित मूल्य की दुकानें PoS मशीनों से लैस हैं। इससे लीकेज को 46 प्रतिशत से घटाकर 28 प्रतिशत करने में मदद मिली है, लेकिन यह अभी भी बहुत अधिक है।
  • प्रो गुलाटी ने आगे कहा कि PDS से संबंधित यह लीकेज राज्यों में काफी अलग-अलग है। PDS लीकेज के मामले में अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और गुजरात शीर्ष तीन राज्य हैं।

PDS से जुड़ी पोषण सुरक्षा की समस्या:

  • HCES के आंकड़ों से पता चलता है कि 2011-12 की तुलना में 2022-23 में दालों और सब्जियों पर खर्च में कमी आई है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) के आंकड़ों से पता चलता है कि पाँच साल से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे ठिगने (स्टंट) हैं, 19.3 प्रतिशत वेस्टेड (Wasted) हैं और 32.1 प्रतिशत कम वजन के हैं।
  • ऐसे में कुपोषण को दूर करने के लिए, हमें कम से कम कुछ FPS को “पोषण केंद्रों” में बदलने की ज़रूरत है। वे अनाज के साथ-साथ अंडे, दालें, बाजरा और फलों सहित विविध प्रकार की उपज की पेशकश कर सकते हैं।
  • डिजिटल खाद्य कूपन प्रणाली का उपयोग करके, लाभार्थी पोषण केंद्रों पर इन कूपन को पौष्टिक विकल्पों की विस्तृत श्रृंखला के लिए भुना सकते हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार का आगे का रास्ता:

  • संक्षेप में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार की आवश्यकता है। 57 प्रतिशत आबादी को मुफ्त भोजन देने की योजना पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अंत्योदय (अत्यंत गरीब) से ऊपर के लोगों को MSP का कम से कम आधा भुगतान करना होगा। इन बचतों को कृषि में लगाया जा सकता है।
  • PDS में लीकेज को रोकने के लिए, लाभार्थियों के खातों में सीधे नकद हस्तांतरण एक विकल्प है। सार्वजनिक खाद्य दुकानों के पोषण केंद्रों के माध्यम से अधिक पौष्टिक भोजन के लिए डिजिटल कूपन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

 

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