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भारत का क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर रुख की समीक्षा की आवश्यकता:

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भारत का क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर रुख की समीक्षा की आवश्यकता:

चर्चा में क्यों है?

  • नीति आयोग के CEO ने हाल ही में कहा कि भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल होना चाहिए, जबकि कई साल पहले भारत ने चीन समर्थित एशियाई व्यापार ब्लॉक से बाहर निकलने का फैसला किया था। इसी तरह का सुझाव इस वर्ष सितम्बर माह में विश्व बैंक द्वारा उसके इंडिया आउटलुक रिपोर्ट में भी दिया गया था।
  • दूसरी तरफ एक प्रमुख थिंक टैंक, GTRI का मानना है कि विश्व बैंक का सुझाव भारत जैसे विकासशील देशों से जुड़ी जटिलताओं को ध्यान में नहीं रखता है तथा भारत द्वारा 2019 में RCEP में शामिल न होने का फैसला रणनीतिक दृष्टि से बिल्कुल सही था।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) क्या है?

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) आसियान के सदस्य देशों और इसके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों के बीच एक समझौता है। इस समझौते का उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं, बौद्धिक संपदा आदि के व्यापार को कवर करना है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में RCEP दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक है और इसमें चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के 10 सदस्य-राज्यों सहित 15 एशिया-प्रशांत अर्थव्यवस्था शामिल हैं।

RCEP में चीन की भूमिका:

  • RCEP को बीजिंग ने 2012 में आगे बढ़ाया था ताकि उस समय चल रहे एक अन्य FTA: ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) का मुकाबला किया जा सके। अमेरिका के नेतृत्व वाली TPP में चीन को शामिल नहीं किया गया था।
  • हालांकि, 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने देश को TPP से वापस ले लिया। तब से, RCEP चीन के लिए उसके साथ व्यापार को रोकने के अमेरिकी प्रयासों का मुकाबला करने का एक प्रमुख साधन बन गया है।

भारत ने RCEP से बाहर रहने का फैसला क्यों किया?

  • 4 नवंबर, 2019 को भारत ने RCEP व्यापार समझौते में शामिल न होने का फैसला किया, यह कहते हुए कि “इस समझौते का वर्तमान स्वरूप RCEP की मूल भावना और सहमत मार्गदर्शक सिद्धांतों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करता है”।

  • उल्लेखनीय है कि भारत में यह डर था कि उसके उद्योग चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ होंगे और चीनी सामान भारतीय बाजारों में भर जाएगा। भारत के किसान भी चिंतित थे क्योंकि वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में असमर्थ होंगे।
  • जबकि भारतीय उद्योग जगत के एक वर्ग का मानना ​​है कि RCEP का हिस्सा बनने से देश को एक बड़े बाजार तक पहुंच बनाने का मौका मिलेगा। फार्मास्यूटिकल्स, कॉटन यार्न और सेवा उद्योग जैसे कुछ लोगों को भरोसा है कि इससे उन्हें काफी लाभ होगा।

भारत को RCEP में शामिल होना चाहिए तो क्यों?

  • सरकार की घोषित स्थिति से अलग हटकर नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम का तर्क है कि “भारत को RCEP और CPTPP का हिस्सा बनना चाहिए और इसका सदस्य बनना चाहिए”। उन्होंने कहा कि “व्यापार ब्लॉकों में शामिल होने से भारत को अपने विनिर्माण आधार को बढ़ाने और छोटे और मध्यम फर्मों द्वारा निर्यात बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो देश के निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं”।
  • बीवीआर सुब्रमण्यम का कहना कि भारत के उच्च टैरिफ के कारण वैश्विक कंपनियों द्वारा चीन के बाहर कारखाने बनाने के प्रयासों से भारत को बहुत लाभ नहीं हुआ है। हाल के वर्षों में, कई कंपनियों ने चीन के बाहर नई विनिर्माण इकाइयां बनाने के लिए “चीन प्लस वन” रणनीति अपनाई है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमने चीन प्लस वन अवसर का उतना लाभ उठाया है जितना हम उठा सकते थे। वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, तुर्की, मैक्सिको जैसे देशों को संभवतः ‘चीन प्लस वन’ से हमसे अधिक लाभ हुआ है”।

भारत को RCEP में शामिल नहीं होना चाहिए तो क्यों?

  • थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने हाल ही में कहा कि भारत का व्यापार ब्लॉक RCEP से बाहर निकलने का फैसला रणनीतिक रूप से सही था क्योंकि देश का चीन के साथ सबसे बड़ा व्यापार घाटा और विश्वास का मुद्दा है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 85 अरब डॉलर से अधिक था। अगर भारत RCEP में शामिल होता, तो स्थिति काफी खराब हो सकती थी, क्योंकि उसे चीन से शून्य-टैरिफ आयात का सामना करना पड़ता, जिससे असंतुलन का जोखिम और बढ़ जाता।
  • 2019 में भारत ने घोषणा की थी कि वह RCEP में शामिल नहीं होगा क्योंकि वार्ता भारत के लंबित मुद्दों और चिंताओं को हल करने में विफल रही थी।
  • GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, “RCEP से बाहर निकलने का भारत का निर्णय रणनीतिक रूप से सही था, क्योंकि बाद के घटनाक्रमों ने संभावित आर्थिक असंतुलन पर उसकी चिंताओं को पुष्ट किया है, जो अन्य सदस्य देशों की तुलना में चीन के पक्ष में है”।
  • उल्लेखनीय है कि RCEP के बाद यह प्रवृत्ति बेहतर होने के बजाय और भी खराब हो गई है। चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा 2020 में 81.7 अरब डॉलर से बढ़कर 2023 में 135.6 अरब डॉलर हो गया। जापान का घाटा दोगुना हो गया है और पहली बार दक्षिण कोरिया को इस साल चीन के साथ व्यापार घाटा होने का अनुमान है।
  • यह दर्शाता है कि RCEP के लाभ चीन की ओर अनुपातहीन रूप से झुके हुए हैं, जिससे अनुचित प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल रहा है और भारत की यह आशंका सही साबित हो रही है कि इसमें शामिल होने से चीनी आयात में उछाल आएगा और कोई लाभ नहीं होगा।
  • साथ ही भारत के पास पहले से ही न्यूजीलैंड और चीन को छोड़कर RCEP के 15 में से 13 सदस्यों के साथ मजबूत मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं। नतीजतन, RCEP से भारत को मिलने वाले अपेक्षित लाभ सीमित होंगे, खासकर चीन की अपारदर्शी व्यापार प्रथाओं और सब्सिडी वाले सामानों से बाजारों को भरने के उसके इतिहास को देखते हुए।

 

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