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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) का पद और उसकी भूमिका:

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लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) का पद और उसकी भूमिका:

चर्चा में क्यों हैं? 

  • 10 साल बाद लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष (LoP) होगा क्योंकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी यह भूमिका संभालेंगे। 2014 और 2019 में लोकसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस इस पद का दावा नहीं कर सकी क्योंकि निचले सदन में उसके पास कुल सीटों का 10 प्रतिशत से भी कम हिस्सा था।
  • उल्लेखनीय है कि 543 सदस्यीय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) का पद पाने के लिए किसी विपक्षी दल को कम से कम 55 सीटों की आवश्यकता होती है।

लोकसभा 10 वर्षों बाद मिला है किसी को नेता प्रतिपक्ष का पद:

  • 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपनी सत्ताधारी हैसियत और विपक्ष का नेता पद दोनों खो दिए और 44 सीटें ही हासिल कर पाई।
  • 2019 में कांग्रेस ने 52 सीटें जीतीं, जो फिर से LoP पद हासिल करने के लिए आवश्यक संख्या से कम थी। अब 2024 के चुनाव में 99 सीटें जीतकर बेहतर प्रदर्शन के साथ कांग्रेस ने देश में प्रमुख विपक्ष की भूमिका का दावा किया है।

नेता प्रतिपक्ष (LoP) का पद क्या होता है?

  • नेता प्रतिपक्ष (LoP) एक संवैधानिक पद न होकर एक वैधानिक पद है, जिसे संसद में नेता प्रतिपक्ष के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977 द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह अधिनियम नेता प्रतिपक्ष को लोकसभा या राज्यसभा के उस सदस्य के रूप में परिभाषित करता है जो सरकार के विरोध में सबसे अधिक संख्या बल वाले दल का नेतृत्व करता है।
  • नेता प्रतिपक्ष का पद स्वतंत्रता-पूर्व युग में निहित है। इस प्रारंभिक मान्यता ने भारतीय संसदीय प्रणाली में इस पद की औपचारिक स्थापना के लिए आधार तैयार किया। आजादी के बाद भी नेता प्रतिपक्ष देश के संसदीय लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाता रहा। लोकसभा में पहले नेता प्रतिपक्ष डॉ. राम सुभग सिंह थे, जो 1969 से 1971 तक इस पद पर रहे।
  • वरीयता क्रम में, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता, केंद्रीय कैबिनेट मंत्रियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के साथ सातवें स्थान पर आते हैं।

संसदीय प्रणाली में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका क्या होती है?

  • नेता प्रतिपक्ष संसदीय प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ये सत्तारूढ़ सरकार पर आवश्यक नियंत्रण और संतुलन प्रदान करते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि 2012 में संसद पर प्रकाशित एक आधिकारिक पुस्तिका में कहा गया है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को “एक छाया प्रधानमंत्री के रूप में माना जाता है, जिसके पास एक छाया मंत्रिमंडल होता है, जो सरकार के इस्तीफा देने या सदन में हारने की स्थिति में प्रशासन संभालने के लिए तैयार रहता है”।
  • पुस्तिका में कहा गया है, “सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने में उनकी सक्रिय भूमिका सरकार की भूमिका जितनी ही महत्वपूर्ण है”।
  • विभिन्न समितियों में भूमिका:
  • नेता प्रतिपक्ष लोक लेखा समिति का अध्यक्ष होता है, साथ ही उसे सार्वजनिक उपक्रम, प्राक्कलन, कई संयुक्त संसदीय समितियों आदि सहित महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य होने का अधिकार है।
  • वह केन्द्रीय सतर्कता आयोग, केन्द्रीय सूचना आयोग, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा लोकपाल जैसे वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार विभिन्न चयन समितियों का सदस्य होने का भी हकदार है।
  • वह चीफ इलेक्शन कमिश्नर सहित चुनाव आयोग के दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति का चयन करने वाले प्रमुख पैनल का हिस्सा होता है।
  • लोकसभा में किसी मान्यता प्राप्त नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति में इन समितियों में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को चयन समिति में शामिल किया जाता है।

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