भारत में गरीबी अनुमान ऐतिहासिक रूप से पांच प्रतिशत से नीचे पहुंचा:
चर्चा में क्यों है?
- SBI रिसर्च द्वारा 3 जनवरी को जारी एक अध्ययन के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में तेजी से कमी आई है, क्योंकि ग्रामीण गरीबी अनुपात पहली बार 5 प्रतिशत से नीचे गिरकर वित्त वर्ष 2022-23 में 7.2 प्रतिशत से 4.86 प्रतिशत हो गया है। इसकी तुलना में, इसी अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी अनुपात 4.6 प्रतिशत से घटकर 4.09 प्रतिशत हो गया।
- इस रिपोर्ट में ग्रामीण गरीबी में तेज कमी का श्रेय निम्न आय वर्ग के बीच खपत वृद्धि को दिया गया है, जिसे मजबूत सरकारी समर्थन से बल मिला है।
ग्रामीण गरीबी अनुपात में कमी का क्या कारण है?
ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत भौतिक अवसंरचना:
- उल्लेखनीय है कि सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के नवीनतम घरेलू उपभोग सर्वेक्षण (HCES) के परिणामों पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि उन्नत भौतिक अवसंरचना ग्रामीण गतिशीलता में एक नई कहानी लिख रही है।
- क्योंकि यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच तेजी से घटते क्षैतिज आय अंतर और ग्रामीण आय वर्गों के भीतर ऊर्ध्वाधर आय अंतर के कारणों में से एक है।
ग्रामीण क्षेत्र में सरकार की विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन:
- इसके अलावा, इस रिपोर्ट में ग्रामीण-शहरी अंतर में कमी का कारण ग्रामीण क्षेत्र में सरकार की विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन बताया गया है।
- ग्रामीण प्रति व्यक्ति मासिक व्यय (MPCE) का लगभग 30 प्रतिशत ग्रामीण पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्जात कारकों द्वारा समझाया गया है। इस तरह के अंतर्जात कारक ज्यादातर DBT हस्तांतरण, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण, किसानों की आय बढ़ाने, ग्रामीण आजीविका में उल्लेखनीय सुधार के मामले में सरकार द्वारा की गई पहलों के कारण हैं।
रिपोर्ट में तेंदुलकर समिति के गरीबी रेखा को आधार बनाया गया:
- उल्लेखनीय है कि SBI रिपोर्ट ने दशकीय मुद्रास्फीति और सुरेश तेंदुलकर द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा में आरोपण कारक को समायोजित करते हुए, वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 1,632 रुपये प्रति माह और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये की नई गरीबी रेखा का अनुमान लगाया है।
- उल्लेखनीय है कि तेंदुलकर समिति के अनुसार, 2011-12 में भारत की कुल आबादी के 21.9 % लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते थे।
- तेंदुलकर समिति ने अपनी रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में रह रहे परिवारों के संदर्भ में गरीबी रेखा को 1000 रुपए (33 रुपए प्रतिदिन ) और ग्रामीण परिवारों के लिये इसे 816 रुपए (27 रुपए प्रतिदिन) निर्धारित किया था।
SBI रिसर्च रिपोर्ट की आलोचना:
- हालांकि, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर आर रामकुमार का कहना है कि SBI रिपोर्ट 2022-23 और 2023-24 के लिए गरीबी रेखा बनाने के लिए तेंदुलकर समिति की गरीबी रेखा को मुद्रास्फीति के साथ अपडेट करके एक दोषपूर्ण गरीबी रेखा का उपयोग किया है।
- सबसे पहले, तेंदुलकर समिति की गरीबी रेखा गरीबी रेखा नहीं है, बल्कि सिर्फ एक “हताशा रेखा” है और पिछली सरकार को सी रंगराजन समिति का गठन करना पड़ा था। साथ ही, यह की रिपोर्ट गरीबी रेखा को अपडेट करने के लिए एक ऐसी विधि का उपयोग करती है जो परिवारों की खपत टोकरी में बदलावों को ध्यान में नहीं रखती है। ऐसे आश्चर्य की बात नहीं है कि वे गरीबी का बहुत कम स्तर प्राप्त करते हैं।
- इसके अलावा SBI रिपोर्ट NSS के क्रमिक दौर के सर्वेक्षण में पद्धतिगत बदलावों की भी ध्यान नहीं रखती है।
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