ओडिशा में चक्रवात ‘दाना’ के प्रभाव को सीमित करने में मैंग्रोव वनों की भूमिका:
मामला क्या है?
- शुक्रवार को सुबह 3.30 बजे ओडिशा के भितरकनिका नेशनल पार्क और धामरा पोर्ट के करीब पहुंचे चक्रवात दाना ने बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया, जैसा कि कई लोगों ने आशंका जताई थी।
- उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार के प्रयासों से तबाही को सीमित करने में मदद मिली – उदाहरण के लिए, ओडिशा ने दस लाख लोगों को सुरक्षित चक्रवात आश्रय स्थलों तक पहुंचाया – हालांकि एक गैर-मानवीय कारक ने भी महत्वपूर्ण इसमें भूमिका निभाई है, वह है भितरकनिका का समृद्ध मैंग्रोव वन क्षेत्र।
मैंग्रोव वन क्या होते हैं?
- मैंग्रोव वन नमक-सहिष्णु पेड़ और झाड़ियां होते हैं जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय कटिबंधों में नदी मुहाने और अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जिसका अर्थ है कि वे उन क्षेत्रों में उगते हैं जहाँ मीठे पानी और खारे पानी का मिलन होता है।
- मैंग्रोव में आमतौर पर हवाई, सांस लेने वाली जड़ें और रसीले पत्ते होते हैं, और ये फूलदार पौधे होते हैं। मैंग्रोव के विभिन्न प्रकारों में लाल मैंग्रोव, अविसेनिया मरीना, ग्रे मैंग्रोव, राइजोफोरा आदि कुछ सामान्य मैंग्रोव वृक्ष हैं। मैंग्रोव के छोटे पौधे जिन्हें प्रोपेग्यूल्स कहा जाता है, पानी में गिरने से पहले मूल पेड़ पर अंकुरित होते हैं और फिर से मैंग्रोव के पेड़ के रूप में विकसित होते हैं।
भारत में मैंग्रोव वनों की स्थिति:
- भारत में, कई स्थानों पर मैंग्रोव पाए जाते हैं। सुंदरबन (भारत और बांग्लादेश में फैला हुआ) दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। आंध्र प्रदेश में गोदावरी कृष्णा डेल्टा, ओडिशा में भीतरकनिका क्षेत्र, अंडमान, केरल, गुजरात, तमिलनाडु आदि में मैंग्रोव वन इसके कुछ उदाहरण हैं।
- भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट (IFSR) 2021 के अनुसार, भारत में लगभग 4,992 वर्ग किमी मैंग्रोव वन हैं, जो नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में वितरित हैं, जिसमें पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक 2,114 वर्ग किमी का मैंग्रोव कवर है।
- IFSR रिपोर्ट यह भी बताती है कि मैंग्रोव कवर में 1987 में 4,046 वर्ग किमी से 2021 में 4,992 वर्ग किमी तक की वृद्धि हुई है।
- हालांकि, भारत में भी मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र तटीय क्षेत्रों में बढ़ती आबादी और भूमि, इमारती लकड़ी, चारा, ईंधन-लकड़ी और अन्य गैर-लकड़ी वन उत्पादों जैसे मत्स्य पालन की बढ़ती मांग के कारण लगातार दबाव का सामना कर रहा है।
मैंग्रोव चरम जलवायु घटनाओं से कैसे सुरक्षा करते हैं?
- दलदल और दलदली क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले मैंग्रोव एक तटीय वन पारिस्थितिकी तंत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और तटीय जैव विविधता के महत्वपूर्ण शरणस्थल हैं और चरम जलवायु घटनाओं जैसे चक्रवात एवं समुद्र के उभार से आने वाली तूफानी लहर के विरुद्ध जैव-ढाल के रूप में भी कार्य करते हैं।
- विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जब चक्रवात आते हैं, तो मैंग्रोव वन अपनी जड़ों और पत्तियों से पानी के प्रवाह को बाधित करके तूफानी लहरों के खिलाफ एक अवरोधक के रूप में कार्य करते हैं।
- इस रिपोर्ट से पता चला है कि कुछ मैंग्रोव प्रजातियाँ जैसे कि सोनेराटिया एपेटाला ने “50 मीटर से 2 किमी चौड़ी मैंग्रोव पट्टी, तूफानी लहर की ऊँचाई को 16.5 सेमी से घटाकर 4 सेमी कर देती है, और 50 मीटर या 100 मीटर चौड़े मैंग्रोव वनों के साथ लहरों के प्रवाह वेग में 29% से 92% तक कमी आ जाती है।
- इस रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जब मैंग्रोव को निर्मित बुनियादी ढांचे के साथ जोड़ा जाता है, तो चक्रवात के प्रभाव को और कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, तटबंध के सामने मैंग्रोव लगाने से जल प्रवाह वेग कम हो सकता है।
मैंग्रोव संरक्षण की ‘मिष्टी (MISHTI)’ योजना:
- ‘मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिट्स एंड टैंजिबल इनकम (मिष्टी) योजना केंद्र सरकार द्वारा संचालित एक पहल है जिसका उद्देश्य समुद्र तट और खारे पानी वाली भूमि पर मैंग्रोव कवर को बढ़ाना है।
- यह योजना मुख्य रूप से सुंदरबन डेल्टा, पश्चिम बंगाल, भारत में हुगली मुहाना और देश के अन्य खाड़ी भागों पर केंद्रित है, लेकिन इसमें देश की अन्य आर्द्रभूमि भी शामिल हैं।
- इस योजना का उद्देश्य मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित और पुनर्स्थापित करना है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने, तटीय कटाव को रोकने और स्थानीय आजीविका को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
ओडिशा का भीतरकनिका मैंग्रोव वन क्षेत्र?
- वर्तमान में, ओडिशा में 231 वर्ग किलोमीटर का मैंग्रोव वन क्षेत्र है, जिसका एक बड़ा हिस्सा भीतरकनिका में है। यह पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के बाद दूसरे स्थान पर है। भीतरकनिका में 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मैंग्रोव का घना फैलाव है, जबकि 95 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में मध्यम मैंग्रोव वन हैं।
- उल्लेखनीय है कि 672 वर्ग किलोमीटर में फैले तटीय क्षेत्र को 1975 में भीतरकनिका वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। इस अभयारण्य के 145 वर्ग किलोमीटर के मुख्य क्षेत्र को सितंबर 1998 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
- भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान ने अतीत में कई चक्रवातों के हमले को झेला है, जिसमें अक्टूबर 1999 में आया सुपर साइक्लोन भी शामिल है।
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