राज्य सरकार आवेदन की प्रतीक्षा किए बिना पात्र दोषियों की छूट पर विचार करने के लिए बाध्य: सुप्रीम कोर्ट
चर्चा में क्यों है?
- कैदियों के अधिकारों पर हाल में एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सजा में छूट नीतियों वाले राज्यों को निर्देश दिया कि वे कैदियों की समयपूर्व रिहाई पर विचार कर सकते हैं, भले ही वे लोग पहले से छूट के लिए आवेदन न करें।
- उल्लेखनीय है कि कुछ प्रकार के दोषियों के लिए अपवादों के साथ, राज्य सरकारों को भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत उनकी सजा पूरी होने से पहले कैदियों को रिहा करने का अधिकार है।
सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?
- न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने “पॉलिसी स्ट्रेटेजी फॉर ग्रांट ऑफ बेल” के मामले में यह फैसला सुनाया। यह एक स्वप्रेरणा मामला है जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में भीड़ से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए 2021 में खुद ही शुरू किया था।
- उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सजा में छूट के लिए उसके दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। क्योंकि 2013 के दो अलग-अलग फैसलों में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि राज्य स्वप्रेरणा (अपनी मर्जी से) सजा नहीं माफ कर सकते हैं और कैदी को पहले आवेदन करना होगा।
कैदियों की सजा माफ करने से जुड़ा कानून क्या कहता है?
- कैदी की सजा छूट की शक्ति से तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति की सजा की अवधि को कम करने की शक्ति से है जिसे किसी अपराध का दोषी पाया गया हो।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत प्रावधान:
- BNSS राज्य सरकारों को “किसी भी समय” सजा माफ करने की शक्ति प्रदान करती है।
- राज्य यह भी चुन सकते हैं कि क्या वे ऐसी शर्तें लागू करना चाहते हैं जिन्हें पूरा करके दोषी को अपनी सजा माफ करवानी होगी, जैसे कि नियमित अंतराल पर पुलिस अधिकारी को रिपोर्ट करना। यदि इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं होती है, तो प्रावधान में कहा गया है कि राज्य दी गई छूट को रद्द कर सकते हैं और बिना वारंट के दोषी को फिर से गिरफ्तार कर सकते हैं।
- राज्य सरकार की छूट की शक्ति पर लगाए गए प्रतिबंधों में से एक BNSS के तहत ही पाया जा सकता है। आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों और मृत्यु दंड अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर, राज्य उन्हें तब तक जेल से रिहा नहीं कर सकता जब तक कि कम से कम 14 साल की सजा पूरी न हो जाए।
- उल्लेखनीय है कि BNSS में छूट की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब “जब भी उपयुक्त सरकार को आवेदन किया जाता है”। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि यह आवेदन अब सख्ती से जरूरी नहीं है क्योंकि ज्यादातर राज्यों में छूट की नीतियां हैं जो पात्रता की शर्तें निर्धारित करती हैं।
- उल्लेखनीय है कि यह संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की सजा माफ करने की शक्ति से अलग है।
भारत में जेलों में कैदियों की संख्या कितनी है?
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर, 2022 तक, भारत की जेलों में 5,73,220 कैदी हैं, जो उनकी कुल क्षमता 4,36,266 का 131.4 प्रतिशत होता है।
- सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से इस आंकड़े में कमी आ सकती है, हालांकि भारत में अधिकांश कैदी विचाराधीन (75.8%) हैं और अभी भी अपने मामलों में अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
- उल्लेखनीय है कि कि इस बात का कोई आधिकारिक डेटा मौजूद नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में कितने कैदियों को छूट नीतियों से लाभ हुआ है, भारत में जेल सांख्यिकी रिपोर्ट (अंतिम बार वर्ष 2022 के लिए प्रकाशित) समय से पहले रिहा किए गए कैदियों की संख्या पर डेटा प्रदान करती है। 2020 में 2321 कैदियों को रिहा किया गया, 2021 में यह संख्या थोड़ी बढ़कर 2350 हो गई। 2022 में समय से पहले रिहा किए गए कैदियों की संख्या में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई, जो 5035 थी।
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