सुप्रीम कोर्ट ने ‘अवैध तोड़फोड़’ रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए:
मामला क्या है?
- सुप्रीम कोर्ट ने 13 नवंबर, 2024 को इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति की संपत्ति को ‘कानून की उचित प्रक्रिया’ का पालन किए बिना, केवल अपराध में उनकी कथित संलिप्तता के आधार पर ध्वस्त करना असंवैधानिक है।
- न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की खंडपीठ ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए सार्वजनिक अधिकारियों पर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कई “बाध्यकारी निर्देश” जारी किए।
- उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिनमें कुछ राज्य प्राधिकारियों द्वारा संपत्ति के मालिकों की किसी अपराध में कथित संलिप्तता के दंड के रूप में संपत्ति को ध्वस्त करने का मुद्दा उठाया गया था।
‘कानून के शासन’ एवं ‘प्राकृतिक न्याय’ का उल्लंघन:
- न्यायमूर्ति बी आर गवई और के वी विश्वनाथन की सर्वोच्च न्यायालय के पीठ ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा:
- यदि कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को सिर्फ इस आधार पर ध्वस्त कर देती है कि उस पर अपराध का आरोप है, तो यह कानून के शासन के सिद्धांतों के विपरीत है।
- ऐसे मामलों में कानून को अपने हाथ में लेने वाले सरकारी अधिकारियों को इस तरह की मनमानी कार्रवाई के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
- जब प्रशासनिक अधिकारी प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहे हैं और उचित प्रक्रिया के सिद्धांत का पालन किए बिना काम करते है, तो बुलडोजर द्वारा इमारत को ध्वस्त करने का भयावह दृश्य एक अराजक स्थिति की याद दिलाता है, जहां ‘शक्ति ही सही है’।
- हमारे संविधान में, जो ‘कानून के शासन’ की नींव पर टिका है, इस तरह के अत्याचारी और मनमाने कार्यों के लिए कोई जगह नहीं है।
- हमारे संवैधानिक लोकाचार और मूल्य प्राधिकार के ऐसे किसी भी दुरुपयोग की अनुमति नहीं देंते और इस तरह के दुस्साहस को अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकती।
शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन:
- सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने आगे कहा कि “कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती और यह तय नहीं कर सकती कि आरोपी व्यक्ति दोषी है और इसलिए, उसकी संपत्तियों को ध्वस्त करके उसे दंडित किया जाए। कार्यपालिका का ऐसा कृत्य उसकी सीमाओं का उल्लंघन होगा। यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है”।
अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के अधिकार का उल्लंघन:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 के पहलुओं में से एक है। ऐसे निर्दोष लोगों से आश्रय छीनकर उनके जीवन के अधिकार से वंचित करना, पूरी तरह से असंवैधानिक होगा।
- यहां तक कि अभियुक्तों या दोषियों को भी संवैधानिक प्रावधानों और आपराधिक कानून के रूप में कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं”।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के तहत दिशानिर्देश जारी किये:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “स्थानीय कानूनों के उल्लंघन के कारण ध्वस्त किए जाने वाले मकानों के संबंध में मुद्दे पर विचार करते समय, हम पाते हैं कि नगरपालिका कानूनों में भी कानून के शासन के सिद्धांतों पर विचार किए जाने की आवश्यकता है”।
- “कार्यपालिका द्वारा पारदर्शी तरीके से कार्य करने के लिए, ताकि मनमानी की बुराई से बचा जा सके, कुछ बाध्यकारी निर्देश होने चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी अधिकारी मनमानी, मनमाने और भेदभावपूर्ण तरीके से काम न करें”।
- तदनुसार, पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया और संपत्तियों को ध्वस्त करने से पहले अनुपालन करने के लिए कुछ निर्देश जारी किए।
- हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि “ये निर्देश किसी सार्वजनिक स्थान जैसे सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन से सटे या किसी नदी या जल निकाय पर कोई अनधिकृत संरचना होने पर लागू नहीं होंगे, और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां अदालत द्वारा ध्वस्तीकरण का आदेश दिया गया हो”।
ध्वस्तीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश क्या हैं?
- इन दिशा-निर्देशों में घर के मालिक के लिए आदेश को चुनौती देने या बेदखल किए जाने से पहले अपने मामलों को देखने के लिए अनिवार्य 15-दिवसीय नोटिस अवधि शामिल है, जिसमें नोटिस में ध्वस्तीकरण के कारणों और कार्रवाई को चुनौती देने के लिए सुनवाई की तारीख का संकेत दिया गया है।
- इस तरह के नोटिस को घर के मालिक को पंजीकृत डाक से भेजा जाना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त, संबंधित प्राधिकारी को विध्वंस अभियान के साथ आगे बढ़ने से पहले कम से कम दो गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित एक विस्तृत निरीक्षण रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।
- अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पूरी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया की पूरी तरह से वीडियोग्राफी की जाए। इसके बाद, एक विस्तृत ध्वस्तीकरण रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए, जिसमें ऑपरेशन में शामिल पुलिस अधिकारियों और कर्मियों के नाम निर्दिष्ट किए जाएं। इस रिपोर्ट को नगर आयुक्त के समक्ष रखने और सार्वजनिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल पोर्टल पर अपलोड करने का भी आदेश दिया गया।
- इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर अवमानना की कार्यवाही हो सकती है और मुआवज़े के साथ-साथ, ध्वस्तीकरण का आदेश देने वाले अधिकारियों को संपत्ति की बहाली के लिए खुद भुगतान करने के लिए कहा जा सकता है।
क्या है ‘बुलडोजर न्याय’?
- ‘बुलडोजर न्याय’, जिसे बुलडोजर राजनीति के रूप में भी जाना जाता है, कथित अपराधियों, सांप्रदायिक हिंसा के दंगाइयों और आरोपी अपराधियों के घरों को ध्वस्त करने के लिए भारी-भरकम मशीनरी का उपयोग करने की प्रथा को संदर्भित करता है।
- ‘बुलडोजर न्याय’ के हिस्से के रूप में, पूरे भारत में घरों, दुकानों और छोटे प्रतिष्ठानों को बुलडोजर से गिराया गया है, खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र राज्यों में।
- हालांकि, इस प्रथा की कड़ी आलोचना हुई है, जिसमें कई लोगों ने सवाल उठाया है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप साबित होने से पहले ही कार्रवाई कैसे की जा सकती है।
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