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दक्षिण भारत के राज्यों में वृद्ध होती जनसंख्या की चुनौती और उसका समाधान:

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दक्षिण भारत के राज्यों में वृद्ध होती जनसंख्या की चुनौती और उसका समाधान:

चर्चा में क्यों है?

  • आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में कहा है कि उनकी सरकार राज्य के निवासियों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए एक कानून पर काम कर रही है।
  • इससे पहले, जब इंडियन एक्सप्रेस ने मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से दक्षिणी राज्यों की चिंताओं के बारे में पूछा कि उनकी कम आबादी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद संसद में उनके प्रतिनिधित्व को प्रभावित कर सकती है, तो उन्होंने कहा था कि “कम प्रजनन दर के साथ दक्षिण भारत पहले से ही बुढ़ापे की समस्या का सामना कर रहा है, और यह धीरे-धीरे उत्तर भारत को भी प्रभावित करेगा”।

उम्र बढ़ने और कुल जनसंख्या पर डेटा क्या कहता है?

  • 2021 की जनगणना में देरी के साथ, उपलब्ध सबसे हालिया जनसंख्या अनुमान केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के भीतर एक तकनीकी समूह की 2020 की रिपोर्ट में हैं।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार भारत की आबादी हर गुजरते साल के साथ बढ़ती जा रही है। 60+ आयु वर्ग के लोगों का अनुपात (प्रतिशत) सभी जगह बढ़ेगा – भले ही उत्तरी राज्यों में वृद्धि दक्षिण की तुलना में कम होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिकांश दक्षिणी राज्यों ने उत्तरी राज्यों की तुलना में कम प्रजनन दर देखा गया है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के अगले साल प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर को प्राप्त करने का अनुमान है, जबकि आंध्र प्रदेश दो दशक पहले ही यह कर चुका है।

रिपोर्ट में और क्या अनुमान लगाया गया:

  • 2011 से 2036 तक के 25 वर्षों में भारत की जनसंख्या में 31.1 करोड़ की वृद्धि होगी। इसमें 17 करोड़ – पांच राज्यों में जुड़ेगी: बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश। 2011-36 के दौरान कुल जनसंख्या वृद्धि का 19% यूपी में होने की उम्मीद है।
  • 2011-2036 के दौरान कुल जनसंख्या वृद्धि में पांच दक्षिणी राज्यों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु – का योगदान केवल 2.9 करोड़ या 9% होने की उम्मीद है।
  • प्रजनन क्षमता में गिरावट और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के साथ, जनसंख्या में वृद्ध व्यक्तियों की संख्या 2011 में 10 करोड़ से 2036 में 23 करोड़ तक दोगुनी से अधिक होने की उम्मीद है, इस अवधि के दौरान जनसंख्या में उनका हिस्सा 8.4% से बढ़कर 14.9% हो जाएगा।
  • केरल में, जहाँ अन्य राज्यों की तुलना में कम प्रजनन और मृत्यु दर बहुत जल्दी प्राप्त की गई थी, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों का अनुपात 2011 में 13% से बढ़कर 2036 में 23% हो जाएगा – या लगभग 4 में से 1 व्यक्ति।
  • इसके विपरीत, यूपी की आबादी तुलनात्मक रूप से युवा होने की उम्मीद है – राज्य की आबादी में 60+ व्यक्तियों की हिस्सेदारी 2011 में 7% से बढ़कर 2036 में 12% होने की उम्मीद है।

वृद्ध होती और अपेक्षाकृत कम होती आबादी चिंता का विषय क्यों है?  

  • वृद्ध होती आबादी और कम होती आबादी दो अलग-अलग चिंताएँ हैं। आमतौर पर, अगर कुल आबादी का दो-तिहाई हिस्सा कामकाजी आयु वर्ग में है, तो इसका मतलब है कि “जनसांख्यिकीय लाभांश” की स्थिति है – क्योंकि निर्भरता अनुपात 50% से कम है।
  • लेकिन किसी राज्य की कुल आबादी का दूसरे राज्यों की तुलना में कम होना अलग बात है। चुनावी परिसीमन पर सार्वजनिक चर्चाओं में यह मुद्दा काफ़ी चर्चा में आया है – जहाँ यह आशंका व्यक्त की गई है कि दक्षिणी राज्यों को उत्तरी राज्यों से पहले जनसांख्यिकीय परिवर्तन करने के कारण लोकसभा में कम सीटों के रूप में दंडित होना पड़ सकता है।

मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू द्वारा दिए गए बयान का क्या महत्व है?

  • मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का यह बयान जनसंख्या के सवाल पर राजनेताओं, खासकर दक्षिणी राज्यों के, द्वारा अपनाए गए रुख में भारी बदलाव को दर्शाते हैं।
  • लगभग पाँच दशक पहले, भारत के सामने मुख्य चिंता तीब्र जनसंख्या वृद्धि थी, जो प्रजनन दर के उच्च स्तर से प्रेरित थी।
  • हालांकि, पिछले कुछ दशकों में भारत जनसंख्या वृद्धि की गति को रोकने में सक्षम रहा है – एक ऐसी उपलब्धि जिसका नेतृत्व कई दक्षिणी राज्यों ने किया है।
  • आंध्र प्रदेश ने 2004 में प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर – यानी प्रति महिला औसतन 2.1 बच्चे – हासिल किया, जिससे यह केरल (1988), तमिलनाडु (2000), हिमाचल प्रदेश (2002) और पश्चिम बंगाल (2003) के बाद ऐसा करने वाला पाँचवाँ भारतीय राज्य बन गया।
  • उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश में एक कानून था जो दो से अधिक बच्चे होने पर लोगों को स्थानीय चुनाव लड़ने से रोकता था; हालांकि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इसे निरस्त कर दिया है।

क्या प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली सरकारी नीतियाँ कारगर रहीं हैं? 

  • मुख्यमंत्री नायडू ने अपने बयान में कुछ देशों का ज़िक्र किया – जैसे जापान, चीन और यूरोप के देश – जो बुजुर्ग आबादी से जूझ रहे हैं और उनके द्वारा इसको लेकर प्रयास किये जा रहे हैं। लेकिन इस बात का कोई वास्तविक सबूत नहीं मिला है कि जो लोग समृद्धि और शिक्षा के एक निश्चित स्तर पर पहुँच चुके हैं, उन्हें ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया में कहीं भी – जापान, चीन, कोरिया, फ्रांस आदि – प्रजनन-समर्थक नीतियाँ कारगर नहीं रहीं। एकमात्र जगह जहां ऐसी नीतियों का कुछ हद तक असर हुआ और उन्होंने प्रजनन दर को बहुत कम स्तर तक गिरने नहीं दिया, वे स्कैंडिनेवियाई देश थे।
  • यहाँ नीतियाँ परिवार सहायता, चाइल्डकैअर सहायता, लैंगिक समानता, पितृत्व अवकाश आदि के रूप में ज़्यादा थीं। ऐसे में केवल वित्तीय सहायता परिवारों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है।

जनसंख्या के बारे में चिंताओं को दूर करने का आगे का रास्ता क्या है?

  • इसको लेकर सबसे सरल समाधान (आंतरिक) प्रवास है। उल्लेखनीय है कि कुल जनसंख्या में तीन योगदानकर्ता हैं: प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर और प्रवास। ऐसे में विशेषज्ञों के अनुसार प्रवास उत्तर और दक्षिण भारत के बीच जनसांख्यिकीय परिवर्तन की गति में बेमेल के कारण होने वाले असंतुलन को संतुलित कर सकता है।
  • बेशक, इस तरह का प्रवास पहले से ही चल रहा है। इस आंतरिक प्रवास से गंतव्य राज्यों को युवा आबादी के पोषण, उनकी शिक्षा आदि पर खर्च करने की ज़रूरत नहीं है; वे सीधे कामकाजी उम्र की प्रवासी आबादी से लाभ उठा सकते हैं।
  • यह वह मॉडल है जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका ने दशकों से अपनाया है। वहां अप्रवासियों की आर्थिक उत्पादन क्षमता और प्रजनन क्षमता ने दुनिया भर में अमेरिका के आर्थिक प्रभुत्व को बनाए रखने में मदद की है।
  • अतः विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि अधिक बच्चे पैदा करने के बजाय, भारत के लिए चिंता का विषय अपने श्रम बल की आर्थिक उत्पादकता को बढ़ावा देना होना चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चल रहे जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरा लाभ उठाया जाए।

साभार: द इंडियन एक्सप्रेस

 

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