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भारत के तीन आर्द्रभूमि स्थल, ‘रामसर सूची’ में शामिल:

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भारत के तीन आर्द्रभूमि स्थल, ‘रामसर सूची’ में शामिल:

चर्चा में क्यों है?

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस महीने की शुरुआत में तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में तीन नए रामसर स्थलों की घोषणा की, जिससे भारत में ऐसे स्थलों की कुल संख्या 85 हो गई।
  • नए स्थलों में तमिलनाडु में नंजरायण पक्षी अभयारण्य और काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य तथा मध्य प्रदेश में तवा जलाशय शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि रामसर स्थलों को अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में भी जाना जाता है। रामसर सम्मेलन, प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाने में एक मील का पत्थर रहा है।

आर्द्रभूमियाँ क्या होती हैं?

  • रामसर कन्वेंशन के अनुसार, आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) में दलदल, कच्छ क्षेत्र, अपगामी नदियां, झीलें, लवण कच्छ, मडफ्लैट (ज्वारीय आर्द्रभूमि), मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियां, दलदल, पीट बोग (आशिक रूप से सड़ चुकी वनस्पति या कार्बनिक पदार्थ का संचय), या जलाशय शामिल है चाहे वे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, स्थायी हो या अस्थायी।
  • इन क्षेत्रों में कम ज्वार पर छह भीटर की गहराई तक ताजा या खारा जल स्थिर या प्रवाहमय हो सकता है। यहां तक कि अनेक आर्द्रभूमि क्षेत्र भूमिगत भी है।

आर्द्रभूमियाँ क्यों महत्वपूर्ण होती है?

  • उल्लेखनीय है कि वेटलैंड्स कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन (पृथक्करण) के माध्यम से जलवायु स्थितियों को विनियमित करने में मदद करते हैं, अर्थात, वायुमंडल से कार्बन को ग्रहण करने और भंडारण करने में। वेटलैंड्स में पौध समुदाय और मिट्टी कार्बन को वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में छोड़ने के बजाय उसे पकड़ लेते हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारकों में से एक है।
  • उल्लेखनीय है कि आर्द्रभूमि अतिरिक्त वर्षा को अवशोषित करके और चरम मौसम की घटनाओं के प्रभाव के खिलाफ बफर के रूप में कार्य करके बाढ़ और तूफान से पर्यावरण की रक्षा करती है। यह और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने ऐसी घटनाओं की गंभीरता को प्रभावित करना शुरू कर दिया है।
  • वेटलैंड्स या आर्द्रभूमि दुनिया के सबसे अधिक उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्रों में से हैं, जिनकी तुलना वर्षावनों और प्रवाल भित्तियों से की जा सकती है। सूक्ष्मजीवों, पौधों, कीड़ों, उभयचरों, सरीसृपों, पक्षियों, मछलियों और स्तनधारियों की प्रजातियों की एक विशाल विविधता इस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हो सकती है।

आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन:

  • आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) पर कन्वेंशन पर हस्ताक्षर 1971 में ईरान के एक छोटे शहर रामसर में हुए थे। तब से आर्द्रभूमि पर कन्वेंशन को ‘रामसर कन्वेंशन’ के रूप में जाना जाता है।
  • रामसर कन्वेंशन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में आर्द्रभूमि के नुकसान को रोकना और जो शेष हैं उनका विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग और प्रबंधन के माध्यम से संरक्षण करना है। इसके अंतर्गत नदियों से लेकर प्रवाल भित्तियों तक विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यावासों को आर्द्रभूमि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • किसी आर्द्रभूमि को रामसर साइट के रूप में नामित करने के साथ देश आर्द्रभूमि के संरक्षण और इसके विवेकपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक प्रबंधन ढांचे की स्थापना और देखरेख करने पर सहमत होते हैं।
  • कन्वेंशन के तहत विवेकपूर्ण उपयोग को मोटे तौर पर आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप को बनाए रखने के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • रामसर आर्द्रभूमि के मानदंड:
  • रामसर कन्वेंशन के तहत, किसी आर्द्रभूमि को रामसर वेटलैंड साइट के रूप में घोषित किया जाता है अगर वह वेटलैंड कन्वेंशन के तहत निर्धारित नौ मानदंडों में से किसी एक को पूरा करती है।
  • पहला मानदंड प्रतिनिधि, दुर्लभ या अद्वितीय आर्द्रभूमि प्रकार वाली साइटों को संदर्भित करता है, और अन्य आठ जैविक विविधता के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय महत्व की साइटों को कवर करते हैं।

भारत में नए जोड़े गए रामसर स्थल कौन से हैं?

नंजरायण पक्षी अभयारण्य:

  • तमिलनाडु में नंजरायण पक्षी अभयारण्य नोय्याल नदी के तट पर स्थित है। मूल रूप से सिंचाई के लिए एक जलाशय, यह तब से एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र बन गया है, जो विभिन्न प्रकार के पक्षियों का समर्थन करता है।
  • यूरेशियन कूट, स्पॉट-बिल्ड डक और कई प्रकार के बगुलों जैसी प्रजातियों का घर, यह आर्द्रभूमि मध्य एशियाई फ्लाईवे के साथ उड़ने वाले विभिन्न प्रवासी पक्षियों की भी पड़ाव स्थल है, जो इसे जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में स्थापित करती है।
  • यह मछली पकड़ने के माध्यम से स्थानीय लोगों की आजीविका में भी योगदान देता है।

काज़ुवेली अभयारण्य:

  • कोरोमंडल तट पर स्थित काज़ुवेली अभ्यारण्य दक्षिण भारत में सबसे बड़े खारे पानी के आर्द्रभूमियों में से एक है।
  • काज़ुवेली पक्षी अभयारण्य मध्य एशियाई फ्लाईवे में स्थित है और यह पक्षियों की प्रवासी प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव स्थल है
  • जल संचयन में, यह बाढ़ नियंत्रण और भूजल पुनर्भरण में भी मदद करता है, जिससे क्षेत्र के जलस्तर को बनाए रखने में मदद मिलती है।

तवा जलाशय:

  • तवा जलाशय का निर्माण तवा और देनवा नदियों के संगम पर किया गया है। तवा नदी, छिंदवाड़ा जिले में महादेव पहाड़ियों से निकलती है, बैतूल जिले से होकर बहती है और नर्मदापुरम जिले में नर्मदा नदी में मिल जाती है। यह नर्मदा नदी की सबसे लंबी सहायक नदी (172 किलोमीटर) है।
  • तवा जलाशय इटारसी शहर के पास स्थित है। तवा नदी पर बांध बनाकर बनाया गया यह जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए सर्दियों का विशाल मैदान बन गया। यह खेतों को सिंचाई का पानी, स्थानीय समुदायों को पीने का पानी और आस-पास के मत्स्य पालन को बनाए रखता है।
  • यह मध्य प्रदेश राज्य का सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है।

आर्द्रभूमि के लिए क्या खतरे हैं?

  • उल्लेखनीय है कि, आर्द्रभूमि को बड़े खतरों का सामना करना पड़ रहा है। रामसर कन्वेंशन के ग्लोबल वेटलैंड आउटलुक (2018) के अनुसार, 1970 और 2015 के बीच वैश्विक आर्द्रभूमि का 35% हिस्सा नष्ट हो गया, जिसमें मानवीय गतिविधियां उनके विनाश में योगदान दे रही हैं। आर्द्रभूमि को प्रभावित करने वाले मुख्य खतरे निम्नलिखित हैं:
  • असतत विकास: पिछले 300 वर्षों में दुनिया की 87% आर्द्रभूमि आवास, उद्योग और कृषि के लिए भूमि उपलब्ध कराने के लिए खो गई है;
  • प्रदूषण: वैश्विक अपशिष्ट जल का लगभग 80% बिना उपचार के आर्द्रभूमि में छोड़ दिया जाता है, कारखानों, उर्वरकों, कीटनाशकों और बड़े रिसावों से होने वाला प्रदूषण पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है;
  • आक्रामक प्रजातियां: आर्द्रभूमि में वन्यजीव विशेष रूप से आक्रामक प्रजातियों के लिए असुरक्षित हैं, जिन्हें अक्सर मनुष्य द्वारा लाया जाता है, क्योंकि पानी उन्हें फैलने और बढ़ने के लिए आसान मार्ग प्रदान करता है।
  • जलवायु परिवर्तन: वर्षा पैटर्न और तापमान में परिवर्तन आर्द्रभूमि और उनमें रहने वाले वनस्पतियों और जीवों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करते हैं।
  • पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में भी अतिक्रमण, प्रदूषण और तेजी से शहरीकरण के कारण भारत में आर्द्रभूमि के क्षरण और सिकुड़ने को दर्शाती हैं। जल निकायों में कृषि और औद्योगिक अपवाह आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाता है, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब होती है।

 

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