मनरेगा में ‘उन्नति‘ को नजरअंदाज करना राज्यों को पड़ेगा भारी
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के मजदूरों के स्थायी जीविकोपार्जन के ‘उन्नति‘ जैसे प्रविधान को नजरअंदाज करना राज्यों को भारी पड़ सकता है।
- मनरेगा के मजदूरों के कौशल विकास विकास में लापरवाही पर केंद्र सरकार गंभीर है।
- उल्लेखनीय है कि मनरेगा में शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। योजना की ऐसी शिकायतों के लिए मंत्रालय ने पांच सूत्री निगरानी प्रणाली लागू की है। इनमें भी ‘उन्नति‘ उच्च प्राथमिकता दी गई है।
मनरेगा में ‘उन्नति‘ योजना:
- ‘उन्नति‘ योजना के तहत मनरेगा में एक वर्ष में सौ दिन काम करने वाले मजदूरों को जीविकोपार्जन के लिए स्थायी बंदोबस्त करने का प्रविधान किया गया है।
- इसमें केंद्र सरकार की ओर से ऐसे मजदूरों के कौशल विकास के लिए तीन महीने का मानदेय दिया जाता है। जबकि उसके प्रशिक्षण और रोजगार अथवा स्वरोजगार के लायक बनाने का प्रबंध राज्य सरकारों को करना है। लेकिन राज्यों की ओर से इसमें जबर्दस्त लापरवाही बरती जा रही है, जिसकी गवाही आंकड़े दे रहे हैं।
- मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020-21 से लेकर वर्ष 2021-22 तक एक सौ दिन का लक्ष्य पूरा करने वाले मनरेगा मजदूरों की संख्या लगभग सवा करोड़ है। इसके मुकाबले केवल36 लाख मजदूरों का कुशल बनाकर स्थायी रोजगार देने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। लेकिन हैरानी इस बात की है कि इसमें से केवल 25 हजार मजदूरों को ही कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया गया और केवल 1125 मजदूरों का प्लेसमेंट हो सका है।