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कांचोठ उत्सव

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हाल ही में, भद्रवाह के लोगों ने प्राचीन कांचोठ उत्सव (Kanchoth Festival) मनाया, जो प्राचीन नाग संस्कृति का प्रतीक है।

कांचोठ उत्सव (Kanchoth Festival)

  • भारी बर्फबारी और अत्यधिक शीत लहर की स्थिति के बीच यह त्योहार मनाया गया।
  • महिलाओं सहित स्थानीय निवासियों ने पारंपरिक वस्त्र पहन कर उपवास रखा। इसके बाद वे पूजा-अर्चना के लिए मंदिरों में उमड़ पड़े।
  • यह सदियों पुराना त्योहार हिंदुओं, विशेष रूप से नाग अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।
  • नाग अनुयायियों का मानना है कि इस दिन गौरी तृतीया के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस त्योहार के दौरान बर्फबारी एक अच्छा शगुन माना जाता है।

जतनई गांव में समारोह

इस त्योहार के मुख्य कार्यों में से एक चिंचोरा पंचायत के पहाड़ी चोटी जतनई गांव (Jatanai village) में मनाया गया। यह भद्रवाह से 30 किमी दूर है। इस समारोह में हर उम्र की महिलाएं दुल्हन की वेशभूषा में नजर आईं।

अन्य स्थानों पर समारोह

भद्रवाह के अलावा, कोटली, घाटा, मथोला, गुप्त गंगा, खाखल, कपरा, चिनोट, भेजा, भालरा, चिंचोरा और क्षेत्र के अन्य मंदिरों में यह उत्सव मनाया गया। विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना के लिए यह त्योहार मनाया गया।

यह त्यौहार कब तक मनाया जाता है?

यह पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस अवधि के दौरान, विवाहित महिलाएं धर्म, उम्र, पंथ और जाति और लिंग के बावजूद सभी को ‘थेल’ (सम्मान) देने के लिए पड़ोस में जाती हैं। बदले में, उन्हें ‘सुहागन भो’ (पति की लंबी उम्र की कामना) का आशीर्वाद मिलता है।

पर्व का महत्व

विवाहित महिलाओं के लिए यह दिन पवित्र माना जाता है। वे देवी गौरी से उनके पति के लंबे और स्वस्थ जीवन की प्रार्थना करती हैं। दुल्हन के सूट, चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर और मेहंदी ‘को पवित्र माना जाता है और देवी को अर्पित किया जाता है। इसे व्रत रखने वाली महिलाएं पहनती हैं।

SOURCE-GK TODAY

PAPER-G.S.1PRE

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