जीनोम एडिटिंग को तेज करने प्रक्रिया की खोज
- भोपाल के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आइसर) ने जीनोम एडिटिंग तकनीक में जटिल रासायनिक कंपाउंड रेप्साक्स का नए तरीके से उपयोग कर इस प्रक्रिया को पांच गुना तेज करने का रास्ता खोजा है।
- इससे जीन एडिटिंग का दायरा बढ़ेगा और कैंसर व एचआइवी जैसे रोगों का उपचार आसान होगा।
- आइसर के बायोलाजिकल साइंस विभाग के सहायक प्राध्यापक डा. अजित चांदे के नेतृत्व में सात विज्ञानियों की टीम ने नए तरीके से रेप्साक्स का उपयोग किया तो नतीजे चौंकाने वाले आए। इस कंपाउंड की गतिविधियां आश्चर्यजनक तरीके से पांच गुना बढ़ गईं।
- माना जा रहा है कि यह चिकित्सा जगत में मील का पत्थर साबित होगा। सिकेल सेल जैसी असाध्य बीमारी का इलाज भी इससे आसान हो सकेगा।
- वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से न सिर्फ जीन में बदलाव कर बीमारियों का इलाज किया जा सकता है, बल्कि शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा रहने वाली टी-कोशिकाओं की क्षमता को बढ़ाकर प्रतिरक्षा प्रणाली को और मजबूत करने का काम भी किया जा सकता है। सरल शब्दों में समझें तो प्रतिरक्षा प्रणाली इस हद तक मजबूत हो जाएगी कि वह कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को पहचान कर खुद उसकी कोशिकाओं को नष्ट कर देगी।
- वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक से अनुवांशिक बीमारियों की रोकथाम में भी मदद मिलेगी। जीन एडिटिंग की मदद से गर्भ में ही बच्चे के जीनोम में बदलाव किया जा सकता है, जो वंशानुगत संक्रमण रोकने में कारगर सिद्ध हो सकता है।
जीन एडिटिंग:
- जीन एडिटिंग ऐसी तकनीक है जिसमें जीन को बदला जा सकता है। इस तकनीक से जीनोम में विशेष स्थानों पर अनुवांशिक सामग्री को जोडऩे, घटाने या फेरबदल करने का काम किया जाता है।
- इसमें क्रिस्पर कैश-9 तकनीक से संपूर्ण आनुवंशिक कोड में से विशिष्ट हिस्सों को हटाया जा सकता है या विशेष स्थान पर डीएनए की एडिटिंग की जा सकती है।
रेप्साक्स:
- रेप्साक्स एक जटिल रासायनिक कंपाउंड है, जो लाखों अणुओं के मिलने से बनता है।
- इसका मानव कोशिकाओं पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है।
- यह केवल उसी कोशिका पर असर दिखाता है जिसके लिए डिज़ाइन किया गया है।
- इससे तय कोशिकाओं का अनियंत्रित तरीके से बढऩा रोका जा सकता है।
Note: यह सूचना प्री में एवं मेंस के GS-3, के “विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण” वाले पाठ्यक्रम से जुड़ा हुआ है।