हैदराबाद के मुचिन्तल गांव में रामानुजाचार्य की मूर्ति बन कर तैयार है। इस बनाने वाले लोगों का कहना है कि ये भारत की दूसरी और विश्व की 26वीं सबसे ऊंची मूर्ति है।
मुचिन्तल गांव हैदराबाद के बाहरी इलाक़े शमशाबाद में स्थित है। तेलुगू भाषी राज्यों में लोकप्रिय वैष्णव संप्रदाय के संन्यासी त्रिदंडी चिन्ना जीयर स्वामी के आश्रम में इस मूर्ति को लगाया जा रहा है। मूर्ति बनाने की योजना साल 2014 से चल रही थी और 2021 में पूरी हुई।
भारत के महान संतों में माने जाने वाले रामानुजाचार्य की 1000वीं जयंती के मौके पर सहस्त्राबदी समारोह का आयोजन किया जा रहा है।
मूर्ति की विशेषताएं
मूर्ति की लंबाई 108 फीट है। उनके हाथ में लिया गया त्रिदंडम (जिसे वैष्णव पीठाधिपति अपने साथ रखते हैं) 135 फीट ऊंचा है। जिस सतह पर मूर्ति बनी है उसकी ऊंचाई 54 फीट है। पद्म (कमल) पीतम की ऊंचाई 27 फीट है। इस सतह को भद्र पीतम के नाम से जाना जाता है। नीचे की सतह को मिलाकर इस मूर्ति की कुल लंबाई 216 फीट है।
पीतम जिस पर मूर्ति बनाई गई है उसकी 54 पंखुड़ियां हैं और उसके नीचे 36 हाथियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। कमल की पत्तियों पर 18 शंख और 18 चक्र बने हैं। इस मूर्ति तक पहुंचने के लिए 108 सीढ़ियां हैं।
इस मूर्ति में विभिन्न द्रविड़ साम्राज्यों की मूर्तिकला से जुड़ी चित्रकारी की गई है। मूर्ति के नाखूनों से लेकर त्रिदंडम तक को बहुत सावधानी से बनाया गया है। इस मूर्ति में रामानुजाचार्य ध्यान में बैठे हैं।
भद्रपीतम में 120 किलो सोने से ये मूर्ति बनाई जा रही है। 120 किलो सोना लेने की वजह ये है कि रामानुजाचार्य 120 सालों तक जीवित रहे थे।
इस मूर्ति के साथ-साथ परिसर में 108 दिव्यदेश बनाए गए हैं। वैष्णव परंपरा के मुताबिक भगवान विष्णु के 108 अवतार और मंदिर माने जाते हैं। परिसर में बने 108 मंदिर इन्हीं दिव्यदेशों के प्रतिरूप हैं। इनका निर्माण होयसल शैली में किया गया है। इसमें कुल 468 स्तंभ होंगे। विभिन्न स्थानों के मूर्तिकारों और विशेषज्ञों ने इसके लिए काम किया है।
मूर्ति और मंदिरों के अलावा यहां रामानुजम की ज़िंदगी को दिखाती एक गैलरी भी होगी। एक वैदिक पुस्तकालय, सेमिनार के लिए ऑडिटोरियम और विशेषज्ञों की बैठकें और एक ओमनिमैक्स थियेटर भी होगा। यहां पर एक संगीतमय फव्वारा भी लगाया जा रहा है। यहां हर नित्य अभिषेक की व्यवस्था भी की जा रही इस मूर्ति का नाम समता मूर्ति (अंग्रेज़ी में स्टैच्यू ऑफ़ इक्वैलिटी) रखा गया है।
कौन थे रामानुजाचार्य?
“हर किसी की पीड़ा को कम करने के लिए भले ही मुझे अकेले नरक में जाना पड़े, मैं खुशी से ऐसा करूंगा। भगवान के सामने सभी समान हैं। हर जाति को उनका नाम लेने का अधिकार है। मंदिर में प्रवेश सभी के लिए खुला है।” रामानुजाचार्य ने अलग-अलग मौकों पर ये संदेश दिए हैं।
रामानुजाचार्य हिंदू भक्ति परंपरा से आते हैं। वह एक विचारक थे। उनका जन्म 1017 ईसवी में हुआ था और वो 1137 ईसवी तक जीवित रहे थे। तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदुर में एक ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म हुआ था। वो वरदराज स्वामी के भक्त थे। श्रीरंगम उनकी कर्मभूमि रही। उनकी समाधी अभी भी श्रीरंगम में श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर में है।
उन्होंने विशिष्टाद्वैत सिद्धांत दिया था। इस सिद्धांत के अनुयायी श्री वैष्णव के नाम से जाने जाते हैं। उनके माथे पर दो सीधी लकीरों वाला टीका लगा होता है और वो अपने कंधे पर हमेशा शंख चक्र प्रतीक रखते हैं। इस संप्रदाय के जो लोग संन्यास लेते हैं उन्हें जीयर कहा जाता है। उनके कई नाम होते हैं जैसे इलाया पेरूमल, एमबेरूमनार, यथीराज भाष्यकरा आदि।
उनके कामों में वीदर्धा संग्राहाम, श्री भाष्यम, गीता भाष्यम आदि शामिल हैं। वह शंकराचार्य के अद्वैत विचार से पूरी तरह असहमति रखते थे। श्री वैष्णव के शब्दों में, “अद्वैत विचार में ये नियम है कि अष्ठाक्षरी मंत्र किसी को नहीं बताया जाता लेकिन रामानुजम ने इससे असहमति जताते हुए गोपुरम मंदिर से मंत्र का उच्चारण किया था ताकि सब उसे सुन सकें। उन्होंने स्वेच्छा से उस नियम का उल्लंघन किया कि जो भी मंत्र को सुनता है उस पर कृपा होती है और जो दूसरों के लिए मंत्र बोलता है उससे शाप लगता है।
उनका कहना था कि अगर सभी पर कृपा होती है तो वो शाप लेने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कुछ मंदिरों में दलितों के प्रवेश को लेकर काम किया। उन्होंने लोगों को निचली जातियों से वैष्णव में बदला। उन्होंने इन जातियों से कुछ पुजारी भी बनाए।”
SOURCE-BBC NEWS
PAPER-G.S.1