लिविंग रूट ब्रिज छोटी धाराओं पर बने हुए सस्पेंशन ब्रिज हैं। वे जीवित पौधों की जड़ों का उपयोग करके बनाए जाते हैं। ये रूट ब्रिज मेघालय में आम हैं। वे हाथ से बने हुए हैं। वे अंजीर के पेड़ों के रबर का उपयोग करके बनाए गए हैं। वे स्थानीय जयंतिया और खासी लोगों द्वारा बनाए गए हैं। हाल ही में, भारत ने इन पुलों के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर टैग की मांग की है।
लिविंग रूट ब्रिज के बारे में रोचक तथ्य
- इन पुलों को स्थानीय रूप से जिंगजिएंग जरी (jingjieng jri) कहा जाता है।
- ये पुल समुद्र तल से 50 मीटर से 1150 मीटर ऊपर हैं।
- उनकी अधिकतम लंबाई लगभग 50 मीटर है।
- इनकी चौड़ाई करीब 5 मीटर है।
- वे इतने मज़बूत हैं कि वे 500 साल तक खड़े रह सकते हैं!
- यह पुल तभी तक स्वस्थ हैं जब तक वे पेड़ स्वस्थ हैं, जिनसे यह पुल बने हैं।
अन्य क्षेत्रों में रूट ब्रिज
रूट ब्रिज भी नागालैंड के लोगों द्वारा बनाए गए हैं। इसके अलावा, रूट ब्रिज जावा के बडु (Baduy) लोगों द्वारा बनाए गए हैं।
लिविंग रूट ब्रिज का निर्माण कैसे किया जाता है?
- ये पुल एक नदी/नाले के ऊपर फ़िकस इलास्टिका (Ficus elastica) की जड़ों के द्वारा बनते हैं। ये जड़ें समय के साथ बढ़ती और मजबूत होती हैं।
- इन पुलों को बनाने के लिए युवा जड़ों को घुमाया जाता है और एक साथ बांधा जाता है। लोग जड़ों को एक साथ बांधने के लिए इनोसक्यूलेशन (inosculation) की प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। इनोसक्यूलेशन का अर्थ दो या दो से अधिक पेड़ों की टहनियों और जड़ों को एक साथ उगाना/बढ़ाना है।
फ़िकस इलास्टिका (Ficus elastica)
यह सबसे आम पेड़ है जिसका उपयोग लिविंग रूट ब्रिज के निर्माण में किया जाता है। यह भारतीय रबड़ का पेड़ है। यह अमेरिका, श्रीलंका और वेस्ट इंडीज में आम है।
डबल डेकर
डबल डेकर लिविंग रूट ब्रिज रंगथिलियांग (Rangthylliang) गांव के पास पाया जाता है। नोंग्रियट (Nongriat) का लिविंग रूट ब्रिज भी एक डबल डेकर ब्रिज है। नोंग्रियट पुल अपने विस्तृत विस्तार और दो लेन के लिए जाना जाता है।
यूनेस्को
यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन है। यह शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति का निर्माण करना चाहता है। यूनेस्को (UNESCO) का पूरा नाम ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization)’ है। इस विशेष संस्था का गठन 16 नवंबर, 1945 को यूनेस्को के संविधान पर हस्ताक्षर हुआ लेकिन यह 4 नवंबर, 1946 को लागू हुआ। इसका उद्देश्य शिक्षा एवं संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय सहयोग से शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करना है, इसका मुख्यालय पैरिस, फ्रांस में स्थित है। तथा यूनेस्को के 27 क्लस्टर कार्यालय और 21 राष्ट्रीय कार्यालय हैं। यूनेस्को की जनरल कॉन्फ्रेंस के पहले सेशन का आयोजन पैरिस में 19 नवंबर से 10 दिसंबर, 1946 तक हुआ था। उसमें 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इन 30 देशों को यूनेस्को के मामलों पर वोट करने का अधिकार भी प्राप्त था। वर्तमान में यूनेस्को के 193 सदस्य और 11 सहयोगी सदस्य देश और दो पर्यवेक्षक सदस्य देश हैं।
यूनेस्को ने वर्ष 1976 में प्रलेखन पुस्तकालय तथा संग्रहालय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रलेखन तथा सूचना विभागों के सहयोग से UNISIST नामक कार्यक्रम का संचालन शुरू किया गया। फिर आगे चलकर इसके समन्वय से पीजीआई (General Information Programe) विभाग बन गया। बाद में प्रलेखन विभाग, यूनेस्को लाइब्रेरी तथा यूनेस्को संग्रहालय को संचालन की दृष्टि से पीजीआई से अलग कर दिया गया। अब पीजीआई तथा ऑपरेशन सर्विस डिवीजन को मिलाकर जनरल इन्फॉर्मेशन सर्विस विभाग का गठन कर दिया गया है। यूनेस्को के अन्य कार्यों में पुस्तकालय, प्रलेखन, सूचना, संग्रहालय, पुस्तक उत्पादन और कॉपीराइट के विषय शामिल हैं। विभिन्न विषयों का संचालन यूनेस्को के मुख्य कार्यालय के विभिन्न विभागों द्वारा किया जाता है।
यूनेस्को आरम्भ से ही पुस्तकालय, संग्रहालय, प्रलेखन तथा सूचना सेवाओं की प्रगति में यथासम्भव योगदान देता रहा है। यह एक प्रोत्साहक, सलाहकार तथा उत्प्रेरक संस्था के रूप में कार्य करता है। यूनेस्को अपनी तकनीकी सहायता कार्यक्रम (Technical Assistance Programme) तथा UNDP (United Nations Development Programme) के अन्तर्गत सेमिनार, कॉन्फ्रेन्स, मीटिंग, विशेषज्ञ व्यवस्था, उपकरण, फेलोशिप तथा सलाह प्रदान करने में सहायता, निदश मानकों के निर्माण तथा वांङ्गमय सूचियों के निर्माण का कार्य करता है।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.1PRE