लोक अदालत आम लोगों के लिए उपलब्ध महत्वपूर्ण वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र के रूप में
- कानून और न्याय मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने 16 दिसंबर को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि लोक अदालत आम लोगों के लिए उपलब्ध महत्वपूर्ण वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र में से एक है। यह एक ऐसा मंच है जहां न्यायालय या पूर्व–मुकदमेबाजी के स्तर पर लंबित विवादों/मामलों का सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटारा/समझौता किया जाता है।
लोक अदालत क्या है?
- लोक अदालत मुख्य रूप से एक “जनता की अदालत“ है जिसमें दो या दो से अधिक विवादित पक्षों के बीच पारस्परिक रूप से स्वीकार्य शर्तों पर निर्णय लिए जाते हैं।
- कानूनी सेवा प्राधिकरण (एलएसए) अधिनियम, 1987 के तहत, लोक अदालत द्वारा किए गए एक फैसले को एक सिविल कोर्ट की डिक्री माना जाता है और यह सभी पक्षों के लिए अंतिम और बाध्यकारी होता है और किसी भी अदालत के समक्ष इसके खिलाफ कोई अपील नहीं होती है।
- अदालतों में लम्बित मामलों को कम करने के लिए और मुकदमेबाजी के पूर्व के स्तर पर विवादों को निपटाने के लिए, विधिक सेवा संस्थानों द्वारा उचित समझे जाने वाले अंतराल पर लोक अदालतों का आयोजन किया जाता है।
- लोक अदालत कोई स्थायी संस्था नहीं है। हालाँकि, एलएसए अधिनियम, 1987 की धारा 19 के अनुसार, आवश्यकता के अनुसार कानूनी सेवा संस्थानों द्वारा लोक अदालतों का आयोजन किया जाता है।
लोक अदालतों के प्रकार:
- राष्ट्रीय लोक अदालतें: राष्ट्रीय लोक अदालतें देश के सभी न्यायालयों में एक ही दिन, वर्ष में चार बार आयोजित की जाती हैं। राष्ट्रीय लोक अदालतों की तिथियां राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) द्वारा प्रत्येक कैलेंडर वर्ष की शुरुआत में तय की जाती हैं और सभी राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों (एसएलएसए) को परिचालित की जाती हैं।
- राज्य लोक अदालतें: राज्य लोक अदालतों की योजना और आयोजन राज्य के भीतर राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा किया जाता है। यह उनकी विशिष्ट आवश्यकता के अनुसार साप्ताहिक, मासिक, द्वैमासिक या त्रैमासिक आधार पर आयोजित किया जा सकता है।
- स्थायी लोक अदालतें: स्थायी लोक अदालतें दैनिक आधार पर या प्रति सप्ताह तय की गई बैठकों की संख्या के अनुसार आयोजित की जाती हैं। वर्तमान में, 37 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 344 स्थायी लोक अदालतें कार्य कर रही हैं।