विदेशों में जमा काले धन पर रोक लगाने के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम
- भारत सरकार ने विदेशों में जमा काले धन पर रोक लगाने के लिए कई कदम उठाएं हैं जिसके सकारात्मक परिणाम हुए हैं। सरकार द्वारा उठाए गए कदम इस प्रकार है:–
- वित्तीय सूचनाओं को साझा करने के लिए एक बहुपक्षीय व्यवस्था, इसके तहत सूचनाओं के स्वत: आदान–प्रदान की व्यवस्था (एईओआई) की गई है। इसकी शुरुआत 2017 में हुई थी। इसके जरिए सरकार को अन्य देशों में बसे भारतीयों के वित्तीय खातों की जानकारी मिलती है।
- भारत सरकार ने कई विदेशी सरकारों के साथ दोहरी कराधान निवारण संधि, कर सूचनाओं के आदान-प्रदान से जुड़ी संधि करों से जुड़े मामलों में प्रशासनिक सहयोग से जुड़े बहुपक्षीय समझौतों तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन से जुड़े बहुस्तरीय समझौते करने के मामलों में पहल की है।
- भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरा कराधान निवारण संधि की गई है। यह 29 दिसंबर, 1994 से लागू हो चुकी है। दोनों देशों के बीच वित्तीय खातों से जुड़ी जानकारियां साझा करने का भी समझौता हुआ है जो 1 जनवरी, 2018 से प्रभावी हो चुका है। इसके तहत भारत सरकार स्विट्जरलैंड के बैंकों में खाता रखने वालों के बारे में जानकारी हासिल कर सकती है।
- काले धन का पता लगाने के लिए भारत सरकार की ओर से मई 2014 में एक विशेष जांच दल का गठन किया गया। यह दल काले धन और कर चोरी के मामलों की सख्त निगरानी कर रहा है।
- काले धन पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 2015 में काला धन (अघोषित विदेशी आय और परिसंपत्तियां) तथा कराधान कानून बनाया जो 1 जुलाई, 2015 से प्रभावी हो चुका है।
- विदेशों में जमा काले धन से जुड़े किसी भी मामले में प्रमाणिक जानकारी मिलने पर सरकार द्वारा तुरंत कार्रवाई की जाए। एचएसबीसी, आईसीआईजे, पैराडाइज और पनामा पेपर्स जैसे मामले इसका उदाहरण हैं।