ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) ने जोरहाट, असम में भारत का पहला वाणिज्यिक-ग्रेड ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र कमीशन किया है।
मुख्य बिंदु
- हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिए, यह संयंत्र ऑयल इंडिया के 500kW सौर संयंत्र पंप स्टेशन से अक्षय ऊर्जा का उपयोग करेगा।
- असम राज्य में हाइड्रोजन बसें चलाने के लिए उत्पादित हाइड्रोजन को प्राकृतिक गैस के साथ मिश्रित किया जाएगा।
- इस नए शुरू किए गए पायलट प्रोजेक्ट की दैनिक उत्पादन क्षमता 10 किग्रा है, जिसे बढ़ाकर 30 किग्रा प्रति दिन किया जाएगा।
- हरित हाइड्रोजन में जीवाश्म ईंधन की जगह लेने की क्षमता है।
प्लांट
इस प्लांट को रिकॉर्ड तीन महीने के समय में कमीशन किया गया है। इस प्लांट में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन उस बिजली से किया जा रहा है जो मौजूदा 500 kW सोलर प्लांट द्वारा 100 kW अनियन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (AEM) इलेक्ट्रोलाइजर एरे का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है। यह संयंत्र ऊर्जा स्वतंत्रता हासिल करने के देश के लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है।
IIT गुवाहाटी के साथ सहयोग
प्राकृतिक गैस और ग्रीन हाइड्रोजन के सम्मिश्रण और मौजूदा OIL बुनियादी ढांचे पर इसके प्रभाव पर ऑयल इंडिया द्वारा IIT गुवाहाटी के सहयोग से एक विस्तृत अध्ययन शुरू किया गया है। कंपनी द्वारा मिश्रित ईंधन के वाणिज्यिक अनुप्रयोगों का अध्ययन करने की योजना है।
क्या है ग्रीन हाइड्रोजन और कैसे बनती है
जब पानी से बिजली गुजारी जाती है तो हाइड्रोजन पैदा होती है। इस हाइड्रोजन का इस्तेमाल बहुत सारी चीजों को पावर देने में होता है। अगर हाइड्रोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली किसी रिन्यूएबल सोर्स से आती है, मतलब ऐसे सोर्स से आती है जिसमें बिजली बनाने में प्रदूषण नहीं होता है तो इस तरह बनी हाइड्रोजन को ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है।
ग्रीन हाइड्रोजन से होंगे क्या फायदे
देखा जाए तो अभी पवनचक्की और सोलर पावर से जरिए एनर्जी पैदा की जा रही है, जिनसे प्रदूषण नहीं होता है, लेकिन हर इंडस्ट्री में यह काम नहीं आती हैं। मान लिया कि तमाम गाड़ियां चलाने, ट्रेनें चलाने और बहुत सी फैक्ट्रियों में भी इनसे काम आसानी से हो जाता है, लेकिन आज भी स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों में कोयले की जरूरत पड़ रही है। वहीं एयरलाइंस और पानी के जहाजों के लिए लिक्विड फ्यूल की जरूरत पड़ रही है। देखा जाए तो सिर्फ सोलर एनर्जी या उससे मिली बिजली से ये सब नहीं चल पाएंगे। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि लंबी दूरी की यात्रा रिन्यूएबल एनर्जी पर निर्भर रहते हुए नहीं की जा सकती। ऐसे में जरूरत पड़ती है हाइड्रोजन की, जिसका इस्तेमाल स्टील-सीमेंट इंडस्ट्री समेत एयरलाइंस और पानी के जहाजों में लंबी दूरी के लिए हो सकता है। इसे स्टोर किया जा सकता है और फिर जरूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी ग्रीन हाइड्रोजन के बहुत सारे फायदे हैं।
ग्रीन हाइड्रोजन के नुकसान
भले ही ग्रीन हाइड्रोजन के तमाम फायदे हैं, लेकिन इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। इसके साथ सुरक्षा का भी रिस्क है और अर्थव्यवस्था का भी। बात अगर सुरक्षा की करें तो हाइड्रोजन बहुत अधिक ज्वलनशील होती है। यानी अगर डीजल-पेट्रोल का टैंक लीक हो जाए तो वह जमीन पर फैल जाएगा, लेकिन हाइड्रोजन टैंक में एक छोटी सी चिंगारी या लीक का अंजाम भयानक हो सकता है।
- 1937 में एक बड़े एयरशिप हिंडेनबर्ग में आग लग गई थी, जिसकी वजह से उसमें सवार 97 लोगों में से 36 लोगों की जान चली गई। उसके बाद एयरशिप को असुरक्षित कहा जाने लगा और इसी वजह से एयरशिप इंडस्ट्री डूब गई।
- 2011 में जापान में भूकंप आया और सूनामी आई। इसकी वजह से फुफुशिमा न्यूक्लियर पावर स्टेशन में हाइड्रोजन की वजह से एक बड़ा धमाका हुआ, जिससे रेडियोएक्टिव लीकेज हुआ। लाखों लोगों को वहां से हटाया गया और अभी भी उसके असर देखने को मिलते हैं।
- 1986 में चर्नोबिल परमाणु दुर्घटना ने भी हजारों लोगों की जान ले ली थी।
ग्रीन हाइड्रोजन पर सरकार जिस लेवल की तैयारी कर रही है, उससे एक बात तो साफ है कि सरकार को तमाम बड़ी कंपनियों को भारी सब्सिडी देनी होगी। ऐसे में सरकार पर काफी बोझ पड़ेगा, जो दरअसल अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला बोझ है। अगर ग्रीन हाइड्रोजन पर खेला गया दाव सही निशाने पर लगा तो इकनॉमी में तगड़ा बूम आएगा, लेकिन अगर हम फेल हुए तो यह भी तय है कि अर्थव्यवस्था को गंभीर चोट पहुंचेगी।
SOURCE-DANIK JAGRAN
PAPER-G.S.3