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पंडित शिवकुमार शर्मा

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रख्यात संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।

एक ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा;

‘‘पंडित शिवकुमार शर्मा जी के निधन से हमारे सांस्कृतिक जगत को गहरी क्षति पहुंची है। उन्होंने वैश्विक स्तर पर संतूर को लोकप्रिय बनाया। उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों को मंत्रमुग्ध करता रहेगा। मुझे उनके साथ हुआ अपना वार्तालाप याद है। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति अपनी संवेदना व्‍यक्‍त करता हूं। ॐ शांति।

पंडित शिवकुमार शर्मा ने 5 साल की उम्र में पहले गायन सीखा फिर तबला। अपने पिता के कहने पर उन्होंने संतूर की तरफ रुख़ किया। उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा बनारस घराने के बड़े गायक थे।

चूंकि शिवकुमार शर्मा गाना जानते थे, तबला जानते थे इसलिए उनके लिए संतूर सीखना ज्यादा मुश्किल नहीं था।

मुश्किल था, जम्मू और कश्मीर की संस्कृति में बसे इस प्राचीन शततंत्री वाद्य (सौ तार वाले वाद्य) की तरंग को दुनिया भर के लोगों के दिलों तक पहुंचाना।

अपनी युवावस्था में जब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर संतूर वादन की प्रस्तुति दी तो उनके सामने बड़े ग़ुलाम अली खान, अमीर ख़ान, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, रसूलनबाई, सिद्धेश्वरी देवी, अली अकबर खां, विलायत ख़ां, पंडित किशन महाराज जैसे कलाकार बैठे थे। पंडित शिवकुमार शर्मा ये बात कई जगह कह चुके हैं कि उन्हें घबराहट नहीं हुई क्योंकि उनका लक्ष्य साफ़ था।

प्रस्तुति के बाद उनकी तारीफ हुई मगर साज़ को लेकर कुछ सवाल उठाए गए। लेकिन शिवकुमार शर्मा को साज़ और सुरों की शुद्धता पर भरोसा था। धीरे-धीरे उनका समर्पण और संतूर की कोमलता लोगों तक पहुंचने लगी और पंडित शिवकुमार शर्मा और संतूर एक दूसरे के पर्याय बन गए। पंडित शर्मा मानते थे कि संगीत केवल मनोरंजन भर नहीं है बल्कि ईश्वर से जुड़ने का एक साधन है क्योंकि संगीत रूह को ताज़गी देता है। इसलिए उनके फिल्म संगीत में भी वह ताज़गी महसूस होती है।

संतूर

संतूर भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है।

संतूर एक वाद्य यंत्र है। संतूर का भारतीय नाम ‘शततंत्री वीणा’ यानी सौ तारों वाली वीणा है जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला।

  • संतूर की उत्पत्ती लगभग 1800 वर्षों से भी पूर्व ईरान में मानी जाती है बाद में यह एशिया के कई अन्य देशों में प्रचलित हुआ जिन्होंने अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति के अनुसार इसके रूप में परिवर्तन किए।
  • संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं।
  • एक सुर से मिलाये गये धातु के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या 60 होती है।
  • आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है।
  • संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था।

संतूर का भारतीय नाम था शततंत्री वीणा यानी सौ तारों वाली वीणा जिसे बाद में फ़ारसी भाषा से संतूर नाम मिला। यह अपने आप में एक अनोखा वाद्य है जो कि तार का साज़ होने के बावजूद लकड़ी की छोटी छड़ों से बजाया जाता है।

यह मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य है जिसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था। यह एक सीमित समुदाय के बीच ही इस्तेमाल होता था। केवल वादी-ए-कश्मीर में इसका चलन था। बाकी तो जम्मू सहित और जगहों पर लोग इसके बारे में जानते ही नहीं थे।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1

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