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परिसीमन आयोग

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न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सर्वोच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश) की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग, जिसके पदेन सदस्य श्री सुशील चंद्रा (मुख्य चुनाव आयुक्त) और श्री के. के. शर्मा (राज्य चुनाव आयुक्त, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर) हैं, की आज केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आदेश को अंतिम रूप देने के लिए बैठक हुई। इसके लिए राजपत्र अधिसूचना भी आज प्रकाशित की गई है।

परिसीमन क्या है तथा इसकी आवश्यकता क्यों है?

  • लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं को पुनर्निर्धारित करने के कार्य को परिसीमन कहते हैं जिसका उद्देश्य परिवर्तित जनसंख्या का समान प्रतिनिधित्व तय करना होता है।
  • इस प्रक्रिया के कारण लोकसभा में अलग-अलग राज्यों को आवंटित सीटों की संख्या और किसी विधानसभा की कुल सीटों की संख्या में परिवर्तन भी आ सकता है।
  • परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के समान खंडों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना है।
  • इसका लक्ष्य भौगोलिक क्षेत्रों का उचित विभाजन करना भी है ताकि चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों पर अनुपयुक्त लाभ की स्थिति प्राप्त न हो।

विधिक दर्जा

  • परिसीमन का कार्य एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग (Delimitation Commission- DC) द्वारा किया जाता है।
  • संविधान इसके आदेश को अंतिम घोषित करता है और इसे किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अनिश्चितकाल के लिये चुनाव को बाधित करेगा।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission)

अनुच्छेद 82 के तहत संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम लागू करती है। अधिनियम लागू होने के बाद, परिसीमन आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा यह आयोग निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर कार्य करता है।

संघटन

  • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
  • मुख्य निर्वाचन आयुक्त
  • संबंधित राज्य के निर्वाचन आयुक्त

कार्य

  • सभी निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या को समान करने के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या और सीमा को निर्धारित करना।
  • ऐसे क्षेत्र जहाँ सापेक्षिक रूप से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या अधिक है, को उनके लिये आरक्षित करना।
  • यदि आयोग के सदस्यों के विचारों में मतभेद है तो निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाएगा।
  • भारत का परसीमन आयोग एक शक्तिशाली निकाय है जिसके निर्णय क़ानूनी रूप से लागू किये जाते हैं तथा ये निर्णय किसी भी न्यायालय में वाद योग्य नहीं होते।
  • ये सभी निर्धारण नवीनतम जनगणना के आँकड़े के आधार पर किये जाते हैं।

कार्यान्वयन

  • परिसीमन आयोग के मसौदा प्रस्तावों को सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिये भारत के राजपत्र, संबंधित राज्यों के आधिकारिक राजपत्रों और कम से कम दो राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाता है।
  • आयोग द्वारा सार्वजनिक बैठकों का आयोजन भी किया जाता है।
  • जनता की बात सुनने के बाद यह बैठकों के दौरान लिखित या मौखिक रूप से प्राप्त आपत्तियों और सुझावों पर विचार करता है और यदि आवश्यक समझता है तो मसौदा प्रस्ताव में इस बाबत परिवर्तन करता है।
  • अंतिम आदेश भारत के राजपत्र और राज्य के राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है तथा राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से लागू होता है।

अतीत में कितनी बार परिसीमन किया गया है?

  • वर्ष 1950-51 में राष्ट्रपति द्वारा (चुनाव आयोग की सहायता से) पहला परिसीमन कार्य किया गया था।
  • उस समय संविधान में इस बात का प्रावधान नहीं था कि लोकसभा सीटों में राज्यों के विभाजन का कार्य कौन करेगा।
  • यह परिसीमन अल्पावधिक और अस्थायी रहा क्योंकि संविधान में प्रत्येक जनगणना के बाद सीमाओं के पुनर्निर्धारण का प्रावधान किया गया था। अतः वर्ष 1951 की जनगणना के बाद एक और परिसीमन की स्थिति बनी।

परिसीमन आयोग को अधिक स्वतंत्रता क्यों?

  • भारतीय निर्वाचन आयोग ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि पहले परिसीमन ने कई राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को असंतुष्ट किया है, साथ ही सरकार को सलाह दी गई कि भविष्य के सभी परिसीमन एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किये जाने चाहिये।
  • इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया और वर्ष 1952 में परिसीमन अधिनियम लागू किया गया।
  • वर्ष 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित हुए।
  • वर्ष 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन का कार्य नहीं हुआ।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.2

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